Zafar Iqbal Shayari: जफर इकबाल उर्दू के मशहूर शायर हैं. उन्होंने अपनी कलम से क्लासिकी गजल को नई ऊंचाई तक पहुंचाया. उन्होंने इसके नए सांचे बनाए.
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Zafar Iqbal Shayari: जफर इकबाल उर्दू शायरी में बड़ा नाम है. उनकी पैदाईश 27 सितंबर 1933 को ओकारा, पाकिस्तान में हुई थी. वह पेशे से वकील थे और कई समाचार पत्रों से भी जुड़े रहे. यहां मुसलसल उनके लेख छपते रहे. जफर इकबाल अपने अलग किस्म के शेर के लिए जाने जाते हैं. उनकी गजलों का लहजा पारंपरिक उर्दू शायरी से बिल्कुल अलग है जो उन्हें बाकियों से अलग करता है.
रास्ते हैं खुले हुए सारे
फिर भी ये ज़िंदगी रुकी हुई है
घर नया बर्तन नए कपड़े नए
इन पुराने काग़ज़ों का क्या करें
तुझ को मेरी न मुझे तेरी ख़बर जाएगी
ईद अब के भी दबे पाँव गुज़र जाएगी
ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए
ये तमाशा अब सर-ए-बाज़ार होना चाहिए
सफ़र पीछे की जानिब है क़दम आगे है मेरा
मैं बूढ़ा होता जाता हूँ जवाँ होने की ख़ातिर
सफ़र पीछे की जानिब है क़दम आगे है मेरा
मैं बूढ़ा होता जाता हूँ जवाँ होने की ख़ातिर
अब के इस बज़्म में कुछ अपना पता भी देना
पाँव पर पाँव जो रखना तो दबा भी देना
अब के इस बज़्म में कुछ अपना पता भी देना
पाँव पर पाँव जो रखना तो दबा भी देना
बदन का सारा लहू खिंच के आ गया रुख़ पर
वो एक बोसा हमें दे के सुर्ख़-रू है बहुत
उस को भी याद करने की फ़ुर्सत न थी मुझे
मसरूफ़ था मैं कुछ भी न करने के बावजूद
थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते
कुछ और थक गया हूँ आराम करते-करते
यहां किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला
किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला
फिर आज मय-कदा-ए-दिल से लौट आए हैं
फिर आज हम को ठिकाने का हम-सबू न मिला
उस को आना था कि वो मुझ को बुलाता था कहीं
रात भर बारिश थी उस का रात भर पैग़ाम था