White and Christian becoming less in England : ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स ने कहा है कि इंग्लैंड और वेल्स में अपने जातीय समूह को गोरों के तौर पर पहचानने वाले लोगों की तादाद में एक दशक में लगभग 500,000 की गिरावट दर्ज की गई है.
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लंदनः इंग्लैंड के जिन गोरे लोगों ने दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में शासन किया था, आज अपने ही मुल्क के कुछ इलाकों में उनकी आबादी घटती जा रही है. स्थानीय मीडिया ने मंगलवार को आधिकारिक आंकड़ों के हवाले से दावा किया है कि इंग्लैंड और वेल्स में गोरे और ईसाइयों की तादाद लगातार कम होती जा रही है. डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स (ओएनएस) ने कहा है कि इंग्लैंड और वेल्स में अपने जातीय समूह को गौरों के तौर पर पहचानने वाले लोगों की तादाद में एक दशक में लगभग 500,000 की गिरावट दर्ज की गई है.
पिछले 10 सालों में कम हुई है आबादी
इंग्लैंड और वेल्स में 81.7 फीसदी लोगों ने 2021 की जनगणना में खुद को श्वेत बताया था, जो एक दशक पहले 86 फीसदी थे. डेली मेल ने बताया कि दूसरा सबसे आम जातीय समूह एशियाई, एशियाई ब्रिटिश या एशियाई वेल्श 9.3 फीसदी था, जो 2011 में 7.5 फीसदी के करीब था. ओएनएस ने यह भी खुलासा किया है कि लंदन के दो-तिहाई लोग अब जातीय अल्पसंख्यक के तौर पर पहचाने जाते हैं. एक ऐसे समूह से जो 'श्वेत ब्रिटिश’ नहीं है, लेकिन जिसमें दूसरे नेशनलिटी के गोरे लोग शामिल हैं और लगभग 200 साल पहले जनगणना शुरू होने के बाद पहली बार आधे से भी कम लोगों ने कहा कि वह ईसाई हैं. डेली मेल ने बताया कि एक तिहाई से ज्यादा अब कहते हैं कि उनका कोई मजहब नहीं है.
लंदन में सबसे ज्यादा जातीय विविधता
ओएनएस ने यह भी खुलासा किया कि जहां इंग्लैंड और वेल्स की जातीय बनावट बदल रही है, वहीं 90 फीसदी से ज्यादा ने कहा कि वह खुद को ब्रिटिश महसूस करते हैं. जनगणना के उप निदेशक जॉन व्रोथ-स्मिथ ने कहा, ’’आज के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे बहु-सांस्कृतिक समाज पर प्रकाश डालते हैं, जिसमें हम रहते हैं. श्वेत तौर पर अपने जातीय समूह की पहचान करने वाले लोगों का प्रतिशत वेल्श, स्कॉटिश, उत्तरी आयरलैंड में घटता जा रहा है. जबकि दूसरे जातीय समूह के लोगों की तादाद में इजाफा जारी है.लंदन इंग्लैंड का जातीय रूप से सबसे ज्यादा डइवरसिटी वाला इलाका बना हुआ है.
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