डियर जिंदगी : दुख का संगीत!
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डियर जिंदगी : दुख का संगीत!

अपने भीतर एक ऐसी दुनिया का निर्माण हम करते जाते हैं, जो हमसे ही लडऩे के लिए, हमें ही हराने के लिए कमर कसे हुए हैं.

डियर जिंदगी : दुख का संगीत!

दुख के बिना सुख की कोई अनुभूति नहीं. सुख का कोई अस्तित्‍व ही नहीं. उसे अपने बने रहने के लिए दुख की ओर देखना ही है. 

असल में सुख और दुख पर्यायवाची हैं! एक के बिना दूसरे का बोध नहीं, इतने गहरे भीतर तक एक दूसरे से गुथे हुए. लेकिन जीवन यात्रा में हम इनको विरोधाभाषी मान बैठे हैं. यहीं से जीवन का संघर्ष शुरू हो जाता है. हम किसी और से नहीं, बल्कि खुद को स्‍वयं के विरोध में तैयार करते चले जाते हैं.

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यह सब इतने यंत्रवत तरीके से होता चला जाता है कि हमें इस बात का अहसास ही नहीं होता कि हम असल में अपने दिमाग को अपने ही विरुध तैयार करते जा रहे हैं. अपने भीतर एक ऐसी दुनिया का निर्माण हम करते जाते हैं, जो हमसे ही लड़ने के लिए, हमें ही हराने के लिए कमर कसे हुए हैं.

‘डियर जिंदगी’ को कुछ दिन पहले दिल्‍ली से एक नियमित पाठक का ई-मेल मिला. इसमें जो कुछ उन्होंने लिखा, उससे पता चलता है कि वह स्‍वयं को ‘दुख के संगीत’ में इस तरह रमा चुकी हैं कि किसी दूसरे रस की महफि‍ल ही उनके लिए बेईमानी हो चुकी है. 

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आइए, उनकी स्‍थि‍ति पर सहृदयतापूर्वक विचार करें. बस ध्‍यान इतना रहे कि हमारी दृष्टि इस दौरान इसमें किरदार की जगह दर्शक की होनी चाहिए.

यह एक ऐसे परिवार की महिला की कहानी है. जो एक निजी कंपनी में एक ‘अच्‍छी’ नौकरी पर हैं. पति सरकारी नौकरी में हैं. तीन बच्‍चे हैं. दो बेटियों की शादी हो चुकी है. बेटियों ने पिता के नितांत रुखे व्‍यवहार के कारण घर आना जाना बंद कर दिया. पत्‍नी और बेटियों के अनुसार उनका व्‍यवहार शुरू से बेहद एकाकी और स्‍वार्थी रहा है. उन्‍हें अपने अतिरिक्‍त किसी अन्‍य से कोई सरोकार नहीं. उन्‍हें बच्‍चे, पत्‍नी को डॉक्‍टर के पास ले जाना भी धन, समय की बर्बादी लगता रहा है. बेटे पर धीरे-धीरे वही रंग चढ़ गया.

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यह सब एक मां, पत्‍नी के नजरिए से उन्होंने लिखा है. इसमें उनका दुख यह है कि पति उम्र बढ़ने के साथ और जटिल होते जा रहे हैं. बेटियों ने नाता तोड़ लिया, बेटा पति की ‘राह’ पर चला गया, अब जीवन में कोई उत्‍साह, उमंग नहीं. उसमें कोई नवीनता नहीं, कोई आगे की राह नहीं.

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यहां कुछ चीजें नोट कर लीजिए…
1. वह आर्थिक रूप से स्‍वतंत्र हैं.
2. वह अपने निर्णय ले सकती हैं, हां नहीं ले रही हैं यह दूसरी बात है.
3. अभी नौकरी काफी है. बेटियों ने घर आना-जाना बंद कर दिया और इन्‍होंने पति के रवैए के कारण उनसे मिलना-जुलना बंद कर दिया.
4. पति से संवाद न के बराबर है और इसी तरह बीते एक दशक से वह एक ‘कठपुलतली’ जैसा जीवन जी रही हैं.

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सारी चीजों पर गहराई, सूक्ष्‍मता से विचार करने पर आप समझ सकते हैं कि उनने परिवार को बचाने, साथ रहने के लिए अपनी ओर से पूरे प्रयास कर लिए. अब उनका धैर्य समाप्‍ति की ओर है. वह गहरी उदासी, डिप्रेशन की ओर बढ़ रही हैं. तो क्‍या करना चाहिए उनको. जो उनको लिख भेजा, वही यहां साझा कर रहा हूं.

1. किसी अच्‍छे मनोचिकित्‍सक को तुरंत दिखाइए. मनोचिकित्‍सक को दिखाने का अर्थ यह नहीं कि कुछ ‘अलग’ हैं, बल्कि यह है कि आपके मन पर गहरे घाव हैं और आपको डॉक्‍टर की जरूरत है, तुरंत.

2. रिश्‍तों को सुधारने के लिए भरपूर प्रयास करने चाहिए. लेकिन हर प्रयास की सीमा होनी चाहिए. आखिर कब तक!

3. जैसे सुख का संगीत लुभावना, आकर्षक होता है. ठीक वैसा ही दुख का संगीत होता है. हम दुख के राग में इतने उलझते चले जाते हैं, उसे सुलझाते रहने में ही सुख मिलने लगता है.

4. सोच समझ कर निर्णय करने का अर्थ यह नहीं कि कभी निर्णय किया ही न जाए. निर्णय न करना अपने ही विरुध अपराध है.

5. इसलिए तय करिए कि आप चाहती क्‍या हैं. सवाल केवल साथ रहने का नहीं, स्‍वयं के साथ रहने का है. स्‍वयं के साथ प्रसन्‍न रहने, सुखी रहने का प्रश्‍न कहीं अधिक महत्‍व का है.
 
6. अंत में यह हमेशा ध्‍यान रहे कि आपका जीवन भी उतना ही छोटा, मूल्‍यवान है, जितना किसी और का. और आपको भी उसे दूसरे जितनी प्रसन्‍नता, आनंद से जीने का मौलिक अधिकार है, जितना किसी और को.

खुद को प्रसन्‍न, संतुष्‍ट और सुखी रहने की सबसे पहली और जरूरी कोशिश आपको करनी होगी. इसलिए स्‍वयं को कभी दूसरी प्राथमिकता पर न रखें.
शुभकामना सहित

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(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)

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