भरपूर विविधता के बाद भी हमारी अंतर्यात्रा, अवचेतन के सुर कहीं न कहीं मिलते ही हैं. अपरिचितों के यही सुर जब आपस में मिल जाते हैं, तो वह 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' से होते हुए, ‘हमारा’ सुर बन जाते हैं. इससे ही जिंदगी प्रिय होगी.
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‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ तो आपको याद ही होगा! दूरदर्शन पर प्रसारित किए गए इस गीत को देखने, सुनने में जो मजा उस समय था, आज भी वैसा ही है. इसके हर दृश्य में भारत के हर कोने की आवाज को एक सूत्र में पिरोने का काम किया गया. पंद्रह अगस्त 1988 से निरंतर हमें ऊर्जा देता हुआ यह हमारी स्मृतियों में तैर रहा है.
‘डियर जिंदगी’ को इसकी याद कैसे आई! वह ऐसे कि देश के अलग-अलग हिस्सों से इसके मराठी, गुजराती और बांग्ला अनुवाद को पढ़ते हुए पाठकों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. इस संवाद में विविधता के साथ मन के तारों में कुछ समानता भी है. हमारी अंतर्यात्रा, अवचेतन के सुर कहीं न कहीं मिलते ही हैं. एक आदमी की कहानी निजी होते हुए भी उसमें कुछ न कुछ सुर ऐसे होते हैं, जो दूसरों के जीवन राग से जुड़ते ही हैं. यही सुर जब आपस में मिल जाते हैं, तो वह 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' से होते हुए, ‘हमारा’ सुर बन जाते हैं. इससे ही जिंदगी प्रिय होगी.
आपके जो सूत्र मुझ तक पहुंचे हैं. उन पर अगले कुछ अंकों में हम बात, संवाद जारी रखेंगे.
आज हर बात होगी, 'सुर' पर! भारत में जिस तरह से शादी, जीवनसाथी के चयन का चलन है. उस पूरी प्रक्रिया में 'सुर' का चयन तो छोड़िए, 'सुर' की पहचान, 'सुर' का मेल बहुत दूर की कौड़ी हो जाते हैं. इसका परिणाम हम शादी के बाद दांपत्य जीवन में आने वाली उन जटिलताओं के रूप में देखते हैं, जिसे हम सरल भाषा में अनबन के नाम से जानते हैं.
एक-दूसरे को समझे, जाने बिना, जिंदगी की नाव में सवार होना सरल तो है, लेकिन अक्सर इससे सफर में सुनामी आने की आशंका बनी रहती है. दुनिया की खिड़की तो हमारे आंगन में खुल गई है लेकिन अवचेतन मन की गहराई में बैठे सुरों को मिलाए बिना सुर सधते नहीं!
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कितना मुश्किल है, अलग-अलग परिवेश से आने वाले दो विविध व्यक्तियों का मेल होना! आप कह सकते हैं, इसमें नया क्या है, यह तो सदियों से चल आ रहा है. दशकों से आप भी इसके साक्षी रहे हैं. यही एक ऐसा मोड़ है, जिसके आगे आपको मन की पुरानी उतरन एक ओर फेंक कर एकदम नए वस्त्र पहनने की दरकार है.
हमारे लिए दुनिया की खिड़की जितनी आज खुली है, पहले कभी नहीं खुली थी. यह खुलापन कुछ ऐसे जिंदगी में आया कि इसने हमारे बीच बहुत से अंतर मिटा दिए. इसने अनंत विकल्प खोल दिए. स्त्री-पुरुष समानता, जेंडर के प्रश्न पर जितनी संवेदनशीलता आज है, पहले कभी नहीं थी.
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इसका सबसे सकारात्मक असर समाज, जीवन पर यह हुआ कि बच्चियों, महिलाओं के जीवन में सब ओर से उजियारा आना शुरू हुआ. उन पर थोपी गई बंदिशें, जकड़नें बहुत नहीं, लेकिन कुछ हद तक शिथिल हुईं.
लेकिन पुरुष! उसके मन, विचार में बैठे ‘सामंती’ आचरण, सोच की पहरन को उतरने में बहुत वक्त बाकी है! यह ‘पहरन’ रिश्तों के लिए बहुत मुश्किल पैदा कर रही है! इसलिए दांपत्य जीवन के सूत्र बिखरते जा रहे हैं. स्त्री-पुरुष के सुर जब तक एक नहीं होंगे, जीवन से तनाव, उदासी की छाया का दूर होना बहुत मुकिश्ल है.
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दोनों का एक-दूसरे के लिए खुलना, दोनों के लिए समानता की बराबर चाहत के बीच वह साधना, ललक, लोच भी जरूरी है, जो शास्त्रीय गायक अपने सुरों को पकड़ने, साधने के लिए अथक रियाज से हासिल करता है.
जिंदगी को ऐसे ही रियाज की दरकार है. जिंदगी की नई, अनूठी गलियों में प्रवेश करते हुए युवा रिश्तों के सुर संभाल सकते हैं. विविधता कभी सुर के तालमेल में संकट पैदा नहीं करती, वह तो इसे नए रूप देने में सहायक है. बस, हम हमारे मन में सुर मिलाने की आस्था गहरी होनी चाहिए!
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