सबसे मिलना-जुलना, गप्पे हांकना सब मोबाइल की कोठरी में कैद हो गया है! सोशल मीडिया पर दूसरों के साथ होने का भ्रम धीरे-धीरे मनोरोग में बदल गया है.
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कनिका चतुर्वेदी, सोशल मीडिया पर इतनी अधिक सक्रिय हैं कि हर रिश्तेदार, मित्र, पड़ोस की पूरी जानकारी रखती हैं. उनकी सामान्य पोस्ट पर भी हजार से अधिक ‘लाइक’ होते हैं. क्योंकि वह भी दिन-रात फ्रेंडलिस्ट में लोगों के लिए ‘लाइक’ जुटाने में लगी रहती हैं. उनका सोशल नेटवर्क शानदार चल रहा था तभी एक मुसीबत आ गई. एक रात सोशल मीडिया में उनकी सक्रियता को लेकर उनकी लाडली बेटी, पति से बहस इतनी ‘गर्म’ हो गई कि उसे ठंडा करने में कई दिन लग रहे हैं.
बेटी का कहना था कि मां उनकी बात इन दिनों जरा कम सुनती हैं. ऐसा नहीं कि वह उनकी चिंता नहीं करतीं, लेकिन केवल बहुत जरूरी चीजों पर ही वह पूरा ध्यान देती हैं. पहले किताबें पढ़ती थीं, मुझे भी किस्से कहानियां सुनाती थीं, लेकिन अब उनके पास बस दूसरों की कहानियां रहती हैं. वह भी आधी-अधूरी. कुछ इसी तरह की बातें उनके पति ने कहीं, जो सोशल मीडिया से पूरी तरह दूर हैं.
डियर जिंदगी: आत्महत्या से कुछ नहीं बदलता!
यह सभी अनुभव खुद कनिका ने साझा किए हैं. उनका कहना है कि वह तो स्मार्टफोन रखना ही नहीं चाहती थीं, लेकिन बेटी, पति के जोर देने पर ही उन्होंने बेसिक फोन की जगह स्मार्टफोन ले लिया. अब यह उनके गले की हडडी बन गया है!
कनिका का कहना है कि सोशल मीडिया पर बिताया समय उन्हें अनूठा आनंद देता है. उन्हें महसूस हुआ कि उनकी अपनी दुनिया है. उदयपुर जैसे छोटे शहर से मुंबई में आकर रहना मुश्किल था. सोशल मीडिया ने अपने-अपने फ्लैट में बंद मन, आवाज को मानो एक नई दिशा दे दी है. वहां एक ऐसा अवसर है कि अपरिचित भी आपको अपने साथ होने का भ्रम पैदा करते हैं!
यह भ्रम धीरे-धीरे मनोरोग में बदल जाता है.आपको लगता है, कोई आपकी प्रतीक्षा में है. किसी को आपके लाइक, टिप्पणी की इतनी जरूरत है कि इनके बिना उसकी जिंदगी ही अधूरी रह जाएगी.
कनिका असल में थोड़े से अकेलेपन से घबराकर 'अंधेरे' में 'जुगनू' को साथी मान बैठीं. यह उनकी अकेले की गलती नहीं. सारी दुनिया इस लत का शिकार हुए जा रही है. हम समझ नहीं पा रहे हैं कि कैसे स्मार्टफोन के सहारे हमारे दिमाग को पढ़ने का काम बाजार चोरी-चोरी कर रहा है.
डियर जिंदगी: आपको रोकने वाली 'रस्सी' !
अब व्हाट्सअप तो मानिए चौबीस घंटे का काम हो गया है. दिन-रात का अंतर इसने मिटा दिया है. हमारी नींद कम हो गई. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारतीय दुनिया में सबसे कम सोने वालों में बहुत तेजी से आगे जा रहे हैं. यही कारण है कि भारत तेजी से डायबिटीज के सबसे अधिक मरीजों वाला देश बनता जा रहा है. मोटापा बढ़ता जा रहा है. आंखें कमजोर हो चली हैं. सबसे मिलना-जुलना, गप्पे हांकना सब मोबाइल की कोठरी में कैद हो गया है!
कनिका भी ऐसी ही एक कोठरी में कैद हो गई थीं. अच्छी बात यह हुई कि मोबाइल से शुरू हुआ विवाद एक सकारात्मक मोड़ पर खत्म हुआ. इस झगड़े के बीच उनकी सास कुछ दिन के लिए उनके पास रहने आ गईं. उन्होंने आसपास से मिलने-जुलने का बंद, खत्म ‘कॉरिडोर’ फिर शुरू करा दिया. मोबाइल पर सोशल मीडिया, व्हाट्सअप का उपयोग सीमित किया गया. नई किताबें खरीदने का बजट बढ़ाया गया. फिल्में देखने, गप्प करने का समय दोगुना किया गया.
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इस बीच आंखों के डॉक्टर ने यह कहकर चिंता बढ़ा दी कि मोबाइल पर सबकुछ पढ़ने से आंखों में कई तरह की परेशानी हो सकती है. जैसे घर में चलने को आप सैर करना नहीं कह सकते, वैसे ही किताब, अखबार पढ़े बिना आंखों का पूरा अभ्यास नहीं होता. आंखों को दर्द से राहत दिलाने, उनको शक्तिशाली बनाने के लिए किताब, अखबार, मैगजीन की ‘सैर’ जरूरी है. कनिका, उनके परिवार ने तो खतरे को समय रहते समझ लिया! देखिए कहीं हमारे घर में भी तो यही कहानी नहीं है!
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