Navratri Date: माता रानी की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्रि का भक्तों को साल भर इंतजार रहता है. 9 महीने के इस पावन पर्व में भक्त पूरी श्रद्धा से माता रानी की भक्ति में डूबे रहते हैं. इस दौरान जो भी इंसान मां की पूजा-अर्चना करता है, उसकी सभी मनोकामना पूरी होती हैं.
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Navratri 2023 Date: मां आदिशक्ति की उपासना का पर्व नवरात्रि साल में 4 बार मनाया जाता है. मार्च-अप्रैल में मनाए जाने वाले पर्व को चैत्र नवरात्रि कहते हैं और सिंतबर-अक्टूबर में जिस त्योहार को मनाया जाता है, उसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं. इसके अलावा साल में दो गुप्त नवरात्रि भी पड़ती हैं. हालांकि, बड़े पैमाने पर चैत्र और शारदीय नवरात्रि ही मनायी जाती है. भक्तों को इस त्योहार का साल भर बेसब्री से इंतजार रहता है. 9 दिनों के इस पर्व में भक्त पूरी श्रद्धा के साथ मां की भक्ति में तल्लीन रहते हैं. इस बार शारदीय नवरात्रि का त्योहार 15 अक्टूबर रविवार के दिन से 24 अक्टूबर को मंगलवार के दिन तक मनाया जाएगा. शाक्त तंत्र में मां दुर्गा के 10 महाविद्याओं के बारे में बताया गया है.
अनेकता में एकता की परंपरा वैदिक दर्शन की देन है. इस सिद्धांत की स्थापना पुराणों और तंत्र ग्रंथों में भी देखने को मिलती है. मुंडमाला तंत्र नामक ग्रंथ में लिखा है, जो शिव हैं, वही दुर्गा हैं और जो दुर्गा हैं वही विष्णु हैं. इनमें जो भेद मानता है, वह मनुष्य दुर्बुद्धि और मूर्ख है. देवी, शिव और विष्णु में एकत्व ही देखना चाहिए. जो इसमें भेद करता है, वह नरक में जाता है. देवी भागवत के अनुसार, देवताओं ने एक बार देवी पराम्बा से पूछा, हे देवी आप कौन हैं. इस पर देवी ने उत्तर दिया कि मैं ब्रह्मरूपिणी हूं और प्रकृति पुरुषात्मक जगत मुझसे उत्पन्न हुआ है. देवी पराम्बा ने देवताओं की जिज्ञासाओं और शंकाओं का समाधान करते हुए कहा कि मुझमें और ब्रह्म दोनों में सदैव एवं शाश्वत एकत्व है और किसी भी प्रकार का भेद नहीं है. जो वह हैं सो मैं हूं और जो मैं हूं सो वह हैं.
महाविद्या
तंत्रगमों के प्रणेता ऋषियों ने पराशक्ति के निर्गुण, निराकार और परब्रह्म स्वरूप का दार्शनिक विवेचन करने के साथ ही साधकों की मनोकामना पूरी करने के लिए उसके सगुण और साकार रूपों का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है. उसके असंख्य रूपों में नवदुर्गा और दस महाविद्या सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं. आज भी लोग पूरी श्रद्धा, विश्वास एवं भक्ति के साथ भगवती के इन स्वरूपों की आराधना करते हैं. प्राच्य विद्याओं के संदर्भ में अविद्या, विद्या और महाविद्या के रूप में परिभाषित किया गया है. इनमें से अविद्या उस लौकिक ज्ञान को कहते हैं, जिससे हमारा सांसारिक ज्ञान चलता है. विद्या उसको कहते हैं, जो मुक्ति की मार्ग बताती है और महाविद्या वह कहलाती है, जो सांसारिक जीवों को भोग और मोक्ष दोनों दिलाती है. इस प्रकार महाविद्या की साधना से पुत्रार्थी को पुत्र, विद्यार्थी को विद्या, धनार्थी को धन और मोक्षार्थी को मोक्ष प्राप्त होता है. अर्थात जो व्यक्ति जैसी कामना से महाविद्याओं की साधना करता है, उसे उसी तरह का फल प्राप्त होता है. लौकिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार की सिद्धि के लिए दस महाविद्याओं की उपासना की परंपरा प्राचीन काल से है.
दस महाविद्याएं
शाक्त तंत्र के अनुसार दस महाविद्याएं इस प्रकार हैं. काली तारा, त्रिपुर सुंदरी, श्री विद्या या ललिता, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला यानी लक्ष्मी. इन दस महाविद्याओं का ज्ञान एक गूढ़ रहस्य है. यह स्वार्थी, अहंकारी एवं धूर्त व्यक्ति को कभी नहीं फलता है. श्रद्धा एवं विश्वास के साथ पूरे मनोयोग से जप करने वाले साधक के लिए भगवती पराम्बा अपना रहस्य कभी शास्त्र तो कभी सद्गुरु के माध्यम से व्यक्त करती हैं.