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आज 30 जनवरी है। 68 साल पहले यही तारीख थी जब भारत की आजादी के महानायक (जिसे हम प्यार से 'बापू' कहकर पुकारते हैं) की हत्या कर दी गई थी। जी हां! हम बात कर रहे हैं उस दिन की जिसे देश बापू (महात्मा गांधी) की पुण्यतिथि या कहें तो शहीदी दिवस के रूप में याद करता है। लेकिन जब यह तारीख भी सियासत की भेंट चढ़ जाए तो तकलीफ तो होती है। तकलीफ इसलिए भी होती है क्योंकि राष्ट्र ने साबरमती के इस संत को राष्ट्रपिता का दर्जा दिया हुआ। मुख्य रूप से आज यहां तीन ऐसी सियासी घटनाओं का जिक्र करना जरूरी है जो इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि देश में गांधी के नाम पर गांधी से छल हो रहा है। गोवा में गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे पर लिखी गई किताब के विमोचन पर बवाल, दिल्ली में कूड़ा फेंकने की राजनीति और हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की खुदकुशी पर दलित सियासी शोर।
अनूप सरदेसाई, एक ऐसा नाम जिन्होंने अपनी कलम ऐसे शख्स के लिए चलाई जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हत्यारा रहा है। देश को इससे भी दिक्कत नहीं कि आपने नाथूराम गोडसे पर किताब लिखकर एक हत्यारे को महिमामंडित करने का काम किया क्योंकि इस देश में अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार संविधान प्रदत्त है। लेकिन तकलीफ होनी तब स्वभाविक है जब गांधी की पुण्यतिथि पर आप इस पुस्तक के विमोचन की जिद्द करते हैं। यह न सिर्फ गांधी का अपमान है, बल्कि उस राष्ट्र का भी अपमान है जिस राष्ट्र ने राष्ट्रपिता का दर्जा दिया है। मुझे नहीं मालूम कि वैचारिक रूप से अनूप सरदेसाई की जात क्या है, लेकिन इतना तो तय है कि सरदेसाई राष्ट्रधर्म का पालन करने से चूक रहे हैं। केंद्र और गोवा में बैठी भाजपा नीत सरकार के लिए भी यह प्रकरण शर्मनाक है।
नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपने शपथग्रहण के बाद जो सबसे पहला और अच्छा काम किया वह स्वच्छता अभियान को लेकर चलाया जाने वाला जागरूकता अभियान था। महात्मा गांधी भी स्वच्छता को लेकर जीवन में किसी तरह का समझौता करने के पक्ष में नहीं होते थे। लेकिन दुर्भाग्य से जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, आए दिन दिल्ली कूड़ा-कूड़ा हो जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया में इस बात का ढोल पीटने से बाज नहीं आ रहे हैं कि हमारी सरकार ने स्वच्छता भारत अभियान को मिशन के तौर पर लिया है, वहीं देश की राजधानी में गंदगी का साम्राज्य फैला हुआ है। इसके लिए जितना दोष केजरीवाल की आप सरकार का है उससे कहीं कम दोष केंद्र की मोदी सरकार का नहीं है। दिल्ली जितनी आम आदमी पार्टी की है उतनी ही भाजपा की भी है। दरअसल दिल्ली नगर निगम और दिल्ली सरकार अलग-अलग दलों से संचालित हो रही है। झगड़ा निगम कर्मियों के वेतन का है जिसे दोनों दलों को आपस में बैठकर सुलझाना चाहिए। लेकिन दोनों दल इसे सियासी मुद्दा बनाकर कूड़े के ढेर पर राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। मेरी राय में दिल्ली हो या पूरा देश, स्वच्छ भारत अभियान पर किसी तरह की दलीय राजनीति से दलों, सरकारों और नौकरशाहों को परहेज करना चाहिए। क्योंकि स्वच्छता भी गांधी का दिया संदेश है। उन्हीं के चश्मे के फ्रेम से हम स्वच्छ भारत को देखने की कोशिश भी कर रहे हैं।
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी पर दलित राजनीति का शोर बढ़ता ही जा रहा है। यह एक संयोग है कि बापू की पुण्यतिथि और रोहित वेमुला के जन्मदिन की तारीख 30 जनवरी है। रोहित की याद में हैदराबाद विश्वविद्यालय कैंपस में छात्रों ने भूख हड़ताल का आयोजन किया है और बड़ी बात यह है कि इसे राजनीतिक रंग देने के लिए राहुल गांधी खुद रोहित की मां और प्रदर्शनकारी छात्रों के साथ भूख हड़ताल पर जा बैठे। इससे पहले रोहित दलित समुदाय से है या ओबीसी से इसको लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों दो-दो हाथ कर चुके हैं। भाजपा ने भी राहुल के भूख हड़ताल पर बैठने को लेकर सवाल खड़े किए हैं। कहने का मतलब यह कि गांधी की पुण्यतिथि पर भी दलित राजनीति का शोर थमने का नाम नहीं ले रहा है। होना तो ये चाहिए था कि आज के दिन भूख हड़ताल के इस मंच पर गांधी के 'दलित दर्शन' पर एक व्याख्यानमाला आयोजित की जाती और उस रास्ते को तलाशने की कोशिश की जाती ताकि फिर से रोहित वेमुला जैसी बुरी घटना का दोहराव ना होने पाए। लेकिन दुर्भाग्य से सियासत की छांव में ऐसा कुछ भी नहीं हो पा रहा है गांधी के देश में। यह गांधी के देश में गांधी की पुण्यतिथि पर गांधी के साथ छल नहीं तो और क्या है?