बटलर की हिमायत करने वालों को अगर खेल भावना की इतनी चिंता है तो उन्हें क्रिकेट पर लागू एमसीसी के नियमों में ही संशोधन करवाना चाहिए.
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मैच अत्यंत नाजुक मोड़ पर था. जॉस बटलर राजस्थान रॉयल्स को जीत के मुहाने पर ले जा रहे थे. रवीचंद्रन अश्विन से सज्जित किंग्स इलेवन पंजाब पराजय की कगार पर खड़ी थी. तभी अश्विन ने गेंद करने के पहले नॉन स्ट्राइकर एंड पर खड़े बटलर को रन आउट कर के अपील कर दी. तीसरे अंपायर ब्रुस ऑक्सनफोर्ड को आउट करार देना ही पड़ा. पर तभी यह विवाद भी छिड़ गया कि अश्विन ने जो कुछ किया वह क्रिकेट की स्थापित खेल भावना के खिलाफ था. पक्ष व विपक्ष में बहसों का दौर अभी भी जारी है. शेन वॉर्न, माइकल वॉन जैसे कई खिलाड़ियों ने अश्विन की आलोचना की. उनका कहना था कि इस तरह का कदम उठावले के पहले अश्विन को चाहिए था कि वह बटलर को चेतावनी देते. अश्विन ने ऐसा नहीं किया था. वह तो गेंद करने की कोशिश ही नहीं कर रहे थे. उनकी कोशिश तो बटलर को रन आउट करने की ही दिख रही थी. बटलर बड़े खफा थे. पर अश्विन को तनिक भी अफसोस नहीं था. वह तो कह रहे थे कि रन की अवैधानिक चोरी करते बल्लेबाज को उन्होंने खेल के नियमों का पालन करते हुए ही आउट किया है. इसमें खेल भावना कहां से बीच में आ गई?
इसकी सबसे कड़ी प्रतिक्रिया पुराने तेज गेंदबाज व वर्तमान कमेन्टेटर इयान बिशप ने दी. उन्होंने क्रिकेट के नियमों का हवाला देते हुए पूछा कि क्या बटलर क्रीज के बाहर नहीं खड़े थे? क्या वह रन जल्दी पूरा करने के लिए अतिरिक्त फायदा नहीं उठा रहे थे? क्या अश्विन ने रन आउट करके कोई नियम तोड़ा? अगर अश्विन इन सब जगहों पर सही हैं तो फिर अपराधी क्यों कहा जा रहा है? सन् 2014 में श्रीलंका व इंग्लैंड के एक मैच में सेनानायके ने इन्हीं बटलर महाशय को चेतावनी दी थी कि वह क्रीज से बाहर खड़े रहकर अतिरिक्त लाभ उठा रहे हैं. पर बटलर भी तो मानते नहीं हैं.
इस बार आईपीएल के मैच में अश्विन ने उन्हें रन आउट कर दिया तो विश्व क्रिकेट के प्याले में तूफान उठ खड़ा हुआ. साफ बात तो यह रही है कि अगर मांकडनुमा तरीके से रन आउट होना नहीं चाहते हैं, तो अपनी क्रीज के अंदर खड़े रहना सीखो. खेलभावना को ठेका किसने लिया है? कौन तय करेगा कि खेल भावना को किसने आहत किया? क्या उसने, जो पहले से स्टार्ट लेकर रन लेने को नाजायज लाभ उठाना चाह रहा हो, या उसने जो नियमों के अनुसार आपको दंड देकर घर वापस भेज रहा हो?
एमसीसी के नियम 41.16 के अनुसार, ''अगर नॉन स्ट्राइक एंड पर बल्लेबाज गेंदबाज के गेंद डालने के पहले ही क्रीज से आगे निकल जाता है और अगर गेंदबाज गेंद करने के बजाए उसे रन आउट कर देता है तो बल्लेबाज आउट ही करार दिया जायेगा.''
बटलर की हिमायत करने वालों को अगर खेल भावना की इतनी चिंता है तो उन्हें क्रिकेट पर लागू एमसीसी के नियमों में ही संशोधन करवाना चाहिए. एक भूतपूर्व अंग्रेज खिलाड़ी ने कहा कि अगर विराट कोहली जैसे बल्लेबाज के साथ कोई विदेशी गेंदबाज ऐसा करता तो पत्रकार व सोशल मीडिया आलोचना करके उसे जहन्नुम में पहुंचा देते.
इस बात में जरूर दम है. क्रिकेट के प्रति हम कुछ ज्यादा ही जज्बाती हैं. अपने लिए पैमाना व दूसरों के लिए अन्य मापदंड. यह होता भी है. अगर दुनिया की क्रिकेट की कुल कमाई का 70 फीसदी यहां से पैदा होता है, तो हम दादागिरी तो कर ही सकते हैं ना? दक्षिण अफ्रीका के मशहूर खिलाड़ी एबी डी. विलियर्स ने कहा है कि न तो बटलर रन चुराने की कोशिश कर रहे थे और न ही अश्विन ने नियम विरुद्ध कोई कार्य किया? ऐसे में नियमों में कसावट लाना जरूरी है. डी विलियर्स की बातों में दम तो है और उन्होंने यह नहीं सुझाया कि कसावट लाने के लिए क्या किया जाए? भारतीय खिलाड़ियों के विरुद्ध बोल कर कोई बीसीसीआई को खफा नहीं करना चाहता है.
इसका सबसे सरल तरीका यह है कि एक बार चेतावनी अंपायर द्वारा ही दे दी जाए. गेंदबाज की अपील पर भी अंपायर यह चेतावनी दे सकता है. अधिकृत चेतावनी के बाद अगर बल्लेबाज वही अपराध रोहराता है तो उसे आउट करार देने में किसी को कोई मलाल नहीं होगा. कोई शिकायत भी नहीं कर सकेगा.
कोई अगर यह कहता है कि खेल के नियमों के बाद खेल भावना की बात करना कितना उचित है, तो मैं यह समझता हूं कि यह गलत सोच है. खेल भावना का क्रिकेट से इसलिए रिश्ता है क्योंकि क्रिकेट जीवन जीने का तरीका है. व्यावहारिक जिंदगी में कोई गलत कार्य करता है तो हम कहते हैं, 'इट्स नॉट क्रिकेट.' अत: नियमों की दुविधा मिटाकर क्रिकेट खेल की अस्मिता बचाना हम सबका कर्तव्य है.
(लेखक प्रसिद्ध कमेंटेटर और पद्मश्री से सम्मानित हैं.)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)