रेखाओं का साज़ है... रंगों की धुन है
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रेखाओं का साज़ है... रंगों की धुन है

चित्रों की रचना करते हुए एक अनोखे संसार में अपने तरीके से रहने की राहें खुलीं. उस संसार में, जहां उसका अपना सुख-दुख, अपने पहाड़, अपनी नदी, अपने मौसम और अपने रंग हैं जो उस ज़मीन पर एक आकाश को असीम और अनंत बनाए हुए हैं. इस रंग-दर्शन में अखिलेश ज़िंदगी के अंधरे-उजालों से खामोश गुफ्तगू करते हैं.

चित्रकार अखिलेश एवं उनकी कृति...

ज़िंदगी के केनवास की तरह कला की सतह पर भी उम्मीदों के रंग छलकते हैं और सधे हुए हाथों से उभरे रूपाकार किसी चितेरे के अन्तर्मन की अभिव्यक्ति बन जाते हैं. भारतीय चित्रकला के आधुनिक परिसर में अखिलेश की दस्तक भी रंग-रेखाओं की रोशनी में जीवन के जाने-अजाने रहस्यों की तलाश का एक सिलसिला है. हुसैन, रज़ा, बेन्द्रे और डीजे जोशी जैसे जगत महशूर चित्रकारों की सरज़मीं (मध्यप्रदेश) को दुनिया के नक्शे पर एक नई कलात्मक पहचान और गौरव प्रदान करने वाले अखिलेश की कृतियां इस सच की शिनाख्त करती हैं कि वे अपने पूर्वज चित्रकारों की धरोहर का मान रखते हैं. नई ज़मीन तोड़ने की फितरत रखते हैं और अपने हस्ताक्षर गढ़ना चाहते हैं. अपने इसी आग्रह के चलते अखिलेश की कला ने देश-दुनिया के नए ज़मीन-आसमान तय किए हैं.

मध्यप्रदेश की मालवा भूमि इंदौर में जन्में और अपने चित्रकार पिता से सृजन-संस्कारों की स्वाभाविक निष्ठाओं को आत्मसात करने वाले अखिलेश के लड़कपन में हालांकि केनवास, रंग और रेखाएं लुका-छिपी का खेल करती रहीं. मन कहीं और भटकता. दिलचस्पियां युवा काल तक कहीं और ठिकाना तलाशती रहीं, लेकिन धमनियों में धड़कती और मन की अतल गहराइयों में बसी संवेदना ने आखिर अपनी अभिव्यक्ति का यही ज़रिया तय किया.

चित्रों की रचना करते हुए एक अनोखे संसार में अपने तरीके से रहने की राहें खुलीं. उस संसार में, जहां उसका अपना सुख-दुख, अपने पहाड़, अपनी नदी, अपने मौसम और अपने रंग हैं जो उस ज़मीन पर एक आकाश को असीम और अनंत बनाए हुए हैं. इस रंग-दर्शन में अखिलेश ज़िंदगी के अंधरे-उजालों से खामोश गुफ्तगू करते हैं. जिरह करते हैं. सवालों के बीहड़ में अपने को पाते हैं, नए सच को रचते हैं फिर एक नए अनुभव-क्षितिज की ओर उनकी कूची रंग-रेखाओं की सोहबत में 'कुछ और नए' को खोजने का जतन करने लगती हैं.

अपनी सैकड़ों कलाकृतियों की एकल और सामूहिक प्रदर्शनियों के ज़रिए भारत के अनेक बड़े शहरों और दुनिया के कई मुल्कों की सैर कर चुके अखिलेश की सिद्धि-प्रसिद्धि का दायरा सिर्फ आंकड़ों तक सिमटा नहीं है, वे अपने बहुआयामी संज्ञान के साथ अपनी कला के अभिप्रायों और आशयों में बहुत गहरे उतरने की बेचैनी से भरे व्यक्ति हैं. तभी तो वे कहते हैं- 'हर कोरे केनवास के सामने मैं भयभीत होता हूं. कहीं यह इनकार न कर दें. मुझे मेरे अस्तित्व के साथ नहीं पहचाने... और यही झिझक, यही दुविधा मुझे उसके पास ले जाती है. ज्यों-ज्यों मैं उसके पास जाता हूं. वह उतना ही मुझसे दूर होता जाता है. यह दूर जाना, मुझे और प्रेरित करता है. यह प्रेम इस दूरी के कारण प्रगाढ़ है'.

बेजान रंगों में इस प्रेम की खोज का सिलसिला शुरू हुआ काले रंग से. यह स्याह-क्रीड़ा अखिलेश के साथ बरसों तक चली फिर अनेक रंगों की चहक से एक रोमिल रिश्ता बना. चैखट में आकृतियां सजती गईं. नुमाइशों के दौर बेसाख्ता नई ऊंचाइयों पर ले गए. मकबूल चित्रकारों और कला मनीषियों की संगत में सोच-समझ का नया प्रकाश फूटता गया. प्रेरणाओं ने नई करवट ली. सम्मानों और पुरस्कारों ने अखिलेश की दक्षता और स्वीकृति की मुहर लगाई. अपनी इन तमाम उड़ानों का श्रेय अखिलेश मध्यप्रदेश की उस धरोहर और यहां की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को देते हैं, जिसने उन्हें एक जागृत और विवेकवान कलाकार के रूप में गढ़ा. युवा काल में अपने गृह नगर इंदौर से भोपाल आकर कलाओं के मरकज़ भारत भवन में प्रवेश. स्वाभीनाथन जैसे मूर्धन्य चित्रकार के साथ परंपरा और आधुनिकता की नई भंगिमाओं को समझना. अपने सोच और सृजन में परिष्कार की नई दिशाएं तय करना और अपनी कला से जुड़े चिंतन में नए तर्क-वितर्क साझा करना... यह सब अखिलेश की रचनात्मक ऊर्जा और उत्साह में इजाफा करते रहे. अखिलेश एक ऐसे चित्रकार के रूप में रेखांकित हैं, जिनके बौद्धिक धरातल ने उन्हें एक लेखक के बतौर स्थापित किया है. हुसैन और रज़ा से उनके जीवन और कला पर लंबे संवाद. खुद अपनी ही कला के रहस्यों की तलाश को लेकर अखिलेश की बेचैनी ने उन्हें अपने समय के एक बेहतर कला आलोचन की हैसियत भी दी है. उनकी प्रकाशित किताबें इस बात की ताईद करती हैं.

यही स्पंदन अब नई कौंध जगाता इस चित्रकार को अनुभव के उजास में फिर कुछ सिरजने को बार-बार विवश करता है. अखिलेश के चित्रों में आमूर्तन के पीछे से पुकारती है कोई आवाज़...

रेखाओं का एक साज़ है
और उभर रही है
रंगों की एक धुन
चुपके से हमें बुलाती
देखा आपने!
यहां केनवास के सीने पर
धड़क रहा है जीवन का
संगीत

- विनय उपाध्याय
(मीडियाकर्मी, लेखक और कला संपादक)

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