लोकसभा में वन लाइनर से विरोधियों को चित करने वाले नीतीश कुमार CM बनते ही हो गए गंभीर
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लोकसभा में वन लाइनर से विरोधियों को चित करने वाले नीतीश कुमार CM बनते ही हो गए गंभीर

संजय झा कहते हैं कि हकीकत पर बात करने वाले नीतीश कुमार एक श्रेष्ठ वक्ता हैं. 

 नीतीश कुमार की पुस्तक 'संसद में विकास की बातें' का लोकार्पण. (फाइल फोटो)

पटना : बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार एक गंभीर राजनेता के तौर पर जाने जाते हैं. चुनावी रैली हो या फिर विधानमंडल, वह सदैव गंभीर होकर ही अपना भाषण देते हैं या किसी मुद्दे पर बात करते हैं. अगर हम थोड़ा पीछे जाएं और बतौर सांसद उनके भाषणों पर गौर करें तो आप उनके अंदर छिपे परिहास का अनुभव कर पाएंगे. वह अपने ह्यूमर रिमार्क्स से अक्सर संसद के माहौल को हल्का कर देते थे. उस समय उनके सटीक वन लाइनर से पूरे सदन का माहौल हल्का हो जाता था.

जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव संजय झा नीतीश कुमार के संसद के एक भाषण को जिक्र करते हुए कहते हैं, 'लोकसभा में किसी मुद्दे पर बहस हो रही थी. तभी एक नेता ने नीतीश कुमार को टोकते हुए कहा था कि कोई बिहारी प्रधानमंत्री 'थोड़े' ना बन रहा है. प्रतिउत्तर में नीतीश कुमार तुरंत सीट से उठे और कहा बिहारी नहीं बन रहा तो क्या हुआ, अटल बिहारी तो बन रहे हैं.'

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संजय झा कहते हैं कि हकीकत पर बात करने वाले नीतीश कुमार एक श्रेष्ठ वक्ता हैं. लोकसभा में उनके वन लाइनर और परिहास से माहौल हल्का हो जाता था. लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद लोग उनके उस अंदाज को नहीं देख पा रहे हैं. शायद काम का दबाव और फिर बिहार विधानमंडल के माहौल के कारण वो चीजें अब नहीं दिखती हैं. क्योंकि पता नहीं लोग किस बयान का क्या मतलब निकालने लगे.

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और संजय झा. (फाइल फोटो)

ज्ञात हो कि नीतीश कुमार के द्वारा लोकसभा में दिए गए भाषणों पर आधारित 'संसद में विकास की बातें' नामक पुस्तक का विमोचन मंगलवार को बिहार विधान परिषद के सभागार में किया गया. इस पुस्तक का संपादन नरेंद्र पाठक ने किया है. पुस्तक में नीतीश कुमार द्वारा फरवरी 1990 से 24 अक्टूबर 2005 तक संसद में दिये गये भाषणों का जिक्र है.

इस मौके पर बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी मौजूद थे. इस दौरान सुशील कुमार मोदी ने नीतीश कुमार की तारीफों की और साथ ही कहा कि नीतीश कुमार की किताब समय का दर्पण है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि 1977 और 1980 में नीतीश कुमार चुनाव हार गए थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. सुशील कुमार मोदी ने खुलासा किया कि यह किताब पहला संस्करण है और जल्द ही इसका दूसरा और तीसरा संस्करण भी प्रकाशित किया जाएगा.

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