पत‍ि की 700 रुपये पगार, घर में खाने के लाले, आज यह मह‍िला 5 पेट्रोल पंप की मालक‍िन
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पत‍ि की 700 रुपये पगार, घर में खाने के लाले, आज यह मह‍िला 5 पेट्रोल पंप की मालक‍िन

Women Success Story: घर वालों के व‍िरोध के बावजूद उन्‍होंने 1993 में इंटरमीड‍िएट की परीक्षा पास की थी. अगले साल शादी होने के बाद उन्‍हें पुत्र रत्‍न की प्राप्‍त‍ि हुई. पर‍िवार में नया सदस्‍य आने के बाद खर्च बढ़ गया और 700 रुपये में परिवार वालों का गुजारा करना मुश्‍क‍िल हो जाता था.

Photo Credit: Dainik Jagran

Success Story: शादी के बाद पत‍ि की 700 रुपये सैलरी. हालत यह क‍ि महीने के आख‍िर में घर का खर्च चलाना मुश्‍क‍िल हो जाए. लेक‍िन कहते हैं ह‍िम्‍मत नहीं हारने वालों का भगवान भी साथ देता है. ऐसी ही कहानी है ब‍िहार के मुंगेर की रहने वाली सार‍िका स‍िंह की. वह आज पांच पेट्रोल पंप की मालक‍िन हैं और बल‍िया (मुंगेर) गांव की मुख‍िया हैं. आपको यह कहानी सुनने में भले ही फ‍िल्‍मी लगे लेक‍िन है पूरी तरह हकीकत. सार‍िका स‍िंह शादी के बाद सोने की तरह तपकर न‍िखरी और आज सैकड़ों पर‍िवारों उनके जर‍िये चल रहे हैं.

पर‍िवार की आर्थ‍िक स्‍थ‍ित‍ि के ल‍िए हमेशा च‍िंत‍ित रहतीं

दैन‍िक जागरण में प्रकाश‍ित खबर के अनुसार ब‍िहार के मुंगेर की रहने वाली सार‍िका स‍िंह अपने आत्‍मव‍िश्‍वास और कड़ी मेहनत के दम पर दो बार बल‍िया पंचायत की मुख‍िया बन चुकी हैं. साल 1994 में सार‍िका स‍िंह की शादी मुंगेर न‍िवासी ललन स‍िंह से हुई. शादी के समय उनके पत‍ि पटना में पेट्रोल पंप पर 700 रुपये महीने की नौकरी करते थे. उससे पर‍िवार का खर्च भी पूरा नहीं हो पाता था. 12वीं पास सार‍िका पर‍िवार की स्‍थ‍ित‍ि के ल‍िए हमेशा च‍िंत‍ित रहती थीं.

वह बताती हैं क‍ि तीन बहनों वाले घर में प‍िता के यहां लड़कियों को पढ़ाने-ल‍िखाने का चलन नहीं था. घर वालों के व‍िरोध के बावजूद उन्‍होंने 1993 में इंटरमीड‍िएट की परीक्षा पास की थी. अगले साल शादी होने के बाद उन्‍हें पुत्र रत्‍न की प्राप्‍त‍ि हुई. पर‍िवार में नया सदस्‍य आने के बाद खर्च बढ़ गया और 700 रुपये में परिवार वालों का गुजारा करना मुश्‍क‍िल हो जाता था.

यहां से बदल गया भाग्‍य
साल 1997 में पटना में केरोस‍िन डीलर के ल‍िए न‍िव‍िदा आमंत्र‍ित की गई. यह महिला के लिए आरक्षित थी. सारिका ने सोचा यहां से क‍िस्‍मत बदल सकती है और उन्‍होंने आवेदन कर दिया. कुछ द‍िन बाद इस निविदा रद्द कर द‍िया गया. 1999 में फ‍िर से आवेदन का व‍िज्ञापन निकला. लेकिन इस बार 1997 वाले आवेदन पर ही नि:शुल्क आवेदन करना था. 2003 में उन्‍हें साक्षात्‍कार के ल‍िए बुलाया गया. यही से उनका भाग्‍य बदल गया और उन्‍हें एजेंसी म‍िल गई. उनके नाम पर एजेंसी फाइनल होने के बाद पत‍ि-पत्‍नी ने कड़ी मेहनत की और उनके पर‍िवार की आर्थ‍िक स्‍थ‍िति पहले से बेहतर हो गई.

सारिका सिंह बताती हैं क‍ि 2007 में पेट्रोल पंप की वैकेंसी निकलने पर उन्‍होंने इसमें आवेदन का मन बनाया. लेक‍िन पैसे कम पड़ने पर उन्‍होंने जेवर गिरवी रखकर आवेदन के ल‍िए चार लाख की रकम जुटाई. इसमें उनके भाई ने भी उनकी मदद की. क‍िस्‍मत ऐसी पलटी क‍ि पेट्रोल पंप सार‍िका स‍िंह के नाम पर आवंटित हो गया. इसके बाद उनकी ईमानदारी और व्‍यवहार के कारण आज वह पांच पेट्रोल पंप की मालक‍िन हैं. इसके बाद उनकी आमदनी धीरे-धीरे बढ़ने लगी. साल 2016 के पंचायत चुनाव में बल‍िया पंचायत का मुखिया के ल‍िए पद महिला के लिए आरक्षित हो गया. इसके बाद उन्‍होंने पटना से अपनी ससुराल आकर चुनाव लड़ा. यहां भी वह भारी मतों से व‍िजयी हुईं.

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