आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि ग्राम स्वराज और स्वदेशी आधारित अर्थव्यवस्था लाए बिना वास्तविक विकास नहीं होगा और इस दिशा में 2014 के बाद भले 100 प्रतिशत काम न हुआ हो, लेकिन इतना तो है कि केंद्र सरकार ने इस ओर कदम बढ़ाया है.
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नई दिल्ली: मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर टिप्पणी करते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि ग्राम स्वराज और स्वदेशी आधारित अर्थव्यवस्था लाए बिना वास्तविक विकास नहीं होगा और इस दिशा में 2014 के बाद भले 100 प्रतिशत काम न हुआ हो, लेकिन इतना तो है कि केंद्र सरकार ने इस ओर कदम बढ़ाया है.
मोहन भागवत ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम 'भविष्य का भारत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण' आखिरी दिन एक सवाल के जवाब में कहा, 'गांव की मनोवृत्ति को बनाए रखते हुए, गांव का विकास होना चाहिए. गांवों का विकास, भारत का विकास है.' उनसे पूछा गया था कि 'ग्राम विकास, स्वदेशी आधारित अर्थनीति और बेरोजगारी आदि पर संघ के क्या विचार हैं?'
क्या है मजबूरी?
भागवत ने कहा, 'स्वदेशी के आदर्श को जमीन पर उतारने के लिए जो परिस्थिति विरासत में मिली है, उसमें ही उनको काम करना पड़ेगा. मान लीजिए सरकार आ गई. अब स्वदेशी लागू करना है. तिजोरी खोलकर देखते हैं तो एक पैसा नहीं है उसमें. कहीं से पैसा तो लाना पड़ेगा. तो पहले उसका प्रावधान करना पड़ेगा. इसलिए कोई भी साल लीजिए इसमें (स्वदेशी अर्थव्यवस्था) 100 प्रतिशत कोई आगे नहीं गया'
उन्होंने ने कहा, 'आज की तारीख में ये संभव नहीं है. परंतु उस दिश में काम हुआ है, ऐसा मुझे लगता है. समाज में हवा बदली है. आज हमारे देश के ज्यादा लोग सोच रहे हैं कि हम अपने देश में बनाएं. अब बाबा रामदेव जैसे संत भी आगे जा रहे हैं. हमारे देश की कंपनियां प्रतिस्पर्धा करने की सोच रही हैं. देश में स्किल ट्रेनिंग और उद्यमिता बढ़ी है.
स्वदेशी है जरूरी
यह पूछने पर कि क्या 2014 के बाद देश में हुए विकास को संघ अपने विचारों के अऩुरूप मानता है, उन्होंने कहा, 'हम कह सकते हैं कि सौ प्रतिशत ऐसा हो नहीं सकता, जब ऐसा होगा स्वर्ण दिन होगा, लेकिन आज की तारीख में ये तो कह सकते हैं कि हां इस दिशा में अपने देश ने कदम तो बढ़ाया है.'
आरएसएस प्रमुख ने कहा, 'जब तक हम स्वदेशी का अनुगमन नहीं करेंगे, तब तक वास्तविक विकास नहीं होगा.' स्वदेश की स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा, 'दुनिया से अपने घर को बंद कर लेना स्वदेशी नहीं है. आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः (अच्छे विचारों को सभी ओर से आने दो). जो मेरे घर में बन सकता है वो मैं दूसरे बाजार से नहीं लाऊंगा. लेकिन अपने देश में बनता ही नहीं, और जीवन के लिए आवश्यक है, तो बाहर से लाऊंगा.'
लेनदेन कैसा होना चाहिए?
मोहन भागवत ने कहा, 'ज्ञान और तकनीति जरूरी है तो लेंगे. लेकिन हमारे देश की प्रकृति और आकांक्षाओं के अनुरूप उसे बदल कर लेंगे. साथ ही हम प्रयास करेंगे कि सारा कुछ हमारे देश में बने. ये स्वदेशी वृत्ति है, इसके बिना कोई भी देश अपने अर्थ तंत्र को सबल नहीं बना सकता है. दुनिया पास में आई है और जब पास में नहीं आई थी, तब से अंतरराष्ट्रीय व्यापार चलता है. वो तो चलेगा ही चलेगा. लेकिन लेनदेन में सिर्फ लेन लेन ही हमारे तरफ आए और देन देन उनकी तरफ जाए ऐसा नहीं है. ये नहीं चलेगा. हमारी शर्ते भी हम मनवाएंगे.