2 June Ki Roti: 'दो जून की रोटी' का क्या होता है मतलब, आखिर कहां से आई ये कहावत? जानें इसके बारे में सबकुछ
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2 June Ki Roti: 'दो जून की रोटी' का क्या होता है मतलब, आखिर कहां से आई ये कहावत? जानें इसके बारे में सबकुछ

2 June Ki Roti: 'दो जून की रोटी' हर साल जून की 2 तारीख को ट्रेंड होने लगता है. क्या कभी आपके मन में ख्याल आया कि इसका क्या मतलब है? तो चलिए आज हम जानेंगे कि यह कहावत क्यों कही जाती है और कैसे हुई इसकी शुरुआत.

2 June Ki Roti: 'दो जून की रोटी' का क्या होता है मतलब, आखिर कहां से आई ये कहावत? जानें इसके बारे में सबकुछ

Do June Ki Roti Meaning: जून का महीना कई मायनों में बड़ा खास होता है, जैसे जून में आपका आधा साल खत्म होने वाला होता है. जून का महीना आते ही नौतपा के खत्म होने के साथ बारिश का इंतजार रहता है. गर्मी के इस महीने में ज्यादातर लोग अपनी छुट्टियों का आनंद ले रहे होते है. वहीं, इस महीने की एक ऐसी तारीख है, जिसके आते ही सोशल मीडिया पर ट्रेंड शुरू हो जाता है और कई मीम्स वायरल होते हैं.  जी हां, आपने भी इस महीने के नाम पर 'दो जून की रोटी' वाली कहावत कई बार सुनी ही होगी. आइए जानते हैं कि क्यों और कब इस कहावत का इस्तेमाल किया जाता है और कैसे इसकी शुरुआत हुई...

2 वक्त के खाने से होता है इसका मतलब  

प्रचलित कहावत 'दो जून की रोटी'  का  इस्तेमाल अक्सर आपने बड़े-बुजुर्गों को करते सुना होगा, जिसका अर्थ है कि दिनभर में आपको दो टाइम का खाना मिल जाना. दरअसल, अवधी भाषा में 'जून' का मतलब 'वक्त' यानी समय से होता है.जिसे वे दो वक्त यानी सुबह-शाम के खाने को लेकर कहते थे.  इस कहावत को इस्तेमाल करने का मतलब यह होता है कि इस महंगाई और गरीबी के दौर में दो टाइम का भोजन भी हर किसी को नसीब नहीं होता.  

बड़ी मेहनत के बाद नसीब होता है खाना

वहीं, जून का महीना सबसे गर्म होता है. जून में भयकंर गर्मी पड़ती है और इस महीने में अक्सर सूखा पड़ता है, जिसके कारण जानवरों के लिए भी चारे-पानी की कमी हो जाती है. हमारा भारत कृषि प्रधान देश है, इस समय किसान बारिश के इंतजार और नई फसल की तैयारी के लिए तपते खेतों में काम करता है. इस चिलचिलाती धूप में खेतों में उसे ज्यादा मेहनत करना पड़ता है और तब कहीं जाकर उसे रोटी नसीब होती है.

कई लोगों को नहीं मिलता भरपेट खाना

गरीबी से जूझ रहे लोगों को कई बार रोटी भी नसीब नहीं होती है. भारत की एक बड़ी आबादी की जिंदगी में पेट भरने की जद्दोजहद साफ देखने को मिलती है.  इंसान रोटी के लिए दिन-रात मेहनत करता है, जिसमें कई लोग पेट भरकर भी खाना नहीं खा पाते हैं. माना जाता है कि जिस इंसान को दो समय का खाना मिल रहा है, वह किस्मतवाला है. ऐसे में नई पीढ़ी के बच्चों को रोटी की कीमत समझाने के लिए भी इस कहावत का इस्तेमाल किया जाता है. 

आज 'दो जून' है

देश के हिंदी बेल्ट के इलाकों में इस लोकोक्ति का खूब इस्तेमाल किया जाता है. मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद जैसे बड़े साहित्यकारों के किस्से, कहानी और कविताओं में भी 'दो जून की रोटी' कहावत का जिक्र देखने को मिलता है. वहीं, दो जून का अर्थ निकालेंगे तो अंग्रेजी कैलेंडर के छठे महीने को जून कहा जाता है, जिसके अनुसार आज जून महीने की 2 तारीख है. वहीं,  इस कहावत के इतिहास की पूरी तरह से तो जानकारी किसी को नहीं है, लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ यही निकाला जाता है. 

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