लोकसभा चुनाव 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी रैली में कहा कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों में बांट देगी. सरकारी आंकड़े देखकर खुद तय कीजिए कि क्या मुसलमानों के ज्यादा बच्चे हैं.
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Muslim Population In India: आजकल चुनावी हलकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान की बड़ी चर्चा है. राजस्थान के बांसवाड़ा में पीएम ने कांग्रेस के घोषणापत्र पर निशाना साधा था. इसी दौरान उन्होंने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का 'देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है' वाला बयान दोहराया. मोदी ने कहा, 'ये कांग्रेस का घोषणापत्र कह रहा है कि वे माताओं बहनों के सोने का हिसाब करेंगे, उसकी जानकारी लेंगे और फिर उस संपत्ति को बांट देंगे.' पीएम के मुताबिक, 'ये संपत्ति इकट्ठी करके किसको बांटेंगे? जिनके ज्यादा बच्चे हैं उनको बांटेंगे.' प्रधानमंत्री का इशारा मुसलमानों की ओर था. मोदी के बयान पर सियासी घमासान मचना तय था और वही हुआ भी. कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने पीएम पर जवाबी हमला बोला. पलटवार के लिए बीजेपी मनमोहन के 9 दिसंबर 2006 वाले भाषण का वीडियो शेयर करने लगी. पीएम मोदी ने जो कहा, वह कितना सच है? क्या सच में मुसलमानों के बाकी धर्मों से ज्यादा बच्चे हैं? सरकारी आंकड़ों के हवाले से समझिए.
भारत में आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी. मतलब धार्मिक समूहों पर जनसंख्या का डेटा 13 साल पुराना है. किसी भरोसेमंद सरकारी एजेंसी ने धार्मिक समूहों के आंकड़े अपडेट भी नहीं किए हैं. फिर भी तमाम सरकारी आंकड़ों से देश में मुसलमानों की हालत का पता चलता है. 2011 की जनगणना में 17.22 करोड़ मुसलमानों की गिनती हुई थी. तब भारत की आबादी 121.08 करोड़ थी और मुस्लिमों की हिस्सेदारी 14.2% थी. उससे पहले, 2001 की जनगणना में मुसलमान 13.81 करोड़ थे. 2001 में देश की जनसंख्या में मुसलमानों का हिस्सा 13.43% था.
जनगणना के आंकड़े देखें तो 2001 से 2011 के बीच, मुसलमानों की आबादी में 24.69% का उछाल दर्ज हुआ. हालांकि, यह 10 साल के अंतराल पर मुस्लिमों की आबादी में हुई सबसे कम बढ़त थी. 1991 से 2001 के बीच, भारत में मुसलमानों की संख्या 29.49% तक बढ़ी थी.
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प्रमुख धर्मों के घरों से जुड़े आंकड़े नेशनल सैंपल सर्वे के 68वें राउंड (जुलाई 2011 से जून 2012) में हैं. इसके मुताबिक, प्रमुख धर्मों के घरों का औसत साइज इस प्रकार है :
धर्म | घर में सदस्य |
हिंदू | 4.3 |
मुस्लिम | 5 |
ईसाई | 3.9 |
सिख | 4.7 |
अन्य | 4.1 |
सभी | 4.3 |
स्रोत: भारत में प्रमुख धार्मिक समूहों के बीच रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति, एनएसएस 68वां राउंड |
NSS के आंकड़े देखकर पता चलता है कि एक सामान्य मुस्लिम परिवार में औसतन पांच सदस्य होते हैं. प्रमुख धर्मों में सबसे बड़ा परिवार मुस्लिमों का होता है. ईसाई परिवारों का साइज नेशनल एवरेज से छोटा है.
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रोजगार के आंकड़ों में मुस्लिमों की हालत
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) देश में कामगारों की संख्या भी मॉनिटर करता है. इसके मुताबिक, देश की लेबर और वर्क फोर्स में मुस्लिमों की भागीदारी सबसे कम है. मुस्लिम इन दोनों मामले में पिछड़ते जा रहे हैं. बात बेरोजगारी की करें तो मुस्लिमों की हालत बेहतर है. उनमें बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से कम है. पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) जुलाई 2022 - जून 2023 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार, देश की लेबर फोर्स में मुस्लिमों की भागीदारी दर 32.5 है. वहीं वर्कर पॉपुलेशन रेश्यो 31.7 है. मुस्लिमों के बीच बेरोजगारी दर 2.4 है जो नेशनल एवरेज 3.2 से कम है.
भारत के मुस्लिमों में प्रजनन दर
देश में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर जागरूकता बढ़ी है. उसका असर प्रजनन दर के आंकड़ों पर दिखता है. सभी धर्मों की महिलाएं अब पहले से कम बच्चों को जन्म देती हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 5 (NFHS-5) के आंकड़ों के मुताबिक, सिर्फ मुस्लिमों में प्रजनन दर 'रिप्लेसमेंट लेवल' से ज्यादा है. 'रिप्लेसमेंट लेवल' उसे कहते हैं जिस पर किसी देश की आबादी स्थिर रहती हैं. NFHS-5 के मुताबिक, मुस्लिमों में प्रजनन दर 2.36 है यानी हर मुस्लिम महिला अपनी जिंदगी में इतने बच्चों को जन्म देती है. ओवरऑल भारत का टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) 2 है.