मैं सरकारी घोड़ा नहीं... वो 'दबंग' चुनाव आयुक्त, जो नरसिम्हा राव से भिड़ गए
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मैं सरकारी घोड़ा नहीं... वो 'दबंग' चुनाव आयुक्त, जो नरसिम्हा राव से भिड़ गए

former chief election commissioner T N Seshan: भारत में जब भी चुनाव की बात आएगी एक नाम हर आदमी के जुबान पर होगा. वह नाम है भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन (TN Seshan) का. जिन्होंने भारत में होने वाले चुनाव की दशा और दिशा दोनों बदल दी. शेषन के बारे में कहा जाता है कि अपने कार्यकाल के दौरान कई नेताओं से टक्कर ली और किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं किया. 

मैं सरकारी घोड़ा नहीं... वो 'दबंग' चुनाव आयुक्त, जो नरसिम्हा राव से भिड़ गए

Lok Sabha Election 2024: भारत में चुनाव आते ही एक इंसान का ज्रिक और आता है. जिसने पूरे भारत में चुनावी प्रक्रिया को ही बदल दिया. एक समय था जब देश में बैलेट पर बुलेट भारी पड़ता था यानी बंदूक की नोक पर वोटों की पेटियों को लूटना आम बात थी. चुनाव में धांधली चरम पर थी. ऐसे में देश को एक ऐसा मुख्य चुनाव आयुक्त मिलता है, जो पूरी चुनाव व्यवस्था को बदलकर रख देता है. बड़े-बड़े दिग्गज नेताओं पर नकेल कस देता है. उस मुख्य चुनाव आयुक्त का नाम है टी.एन.शेषन जो अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके दिखाए हुए रास्ते पर भारत में आज भी चुनाव हो रहा है. 

16 मार्च को चुनाव आयोग आगामी लोकसभा चुनाव के डेट का ऐलान करने वाला है. आइए इस मौके पर जानते हैं टीएन शेषन के उस किस्से के बारे में जब उन्होंने देश के पीएम से भी ले ली थी टक्कर.

पीएम को सीधा मिलाया फोन
बात 1993 की है. उस समय तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने चुनाव आयुक्त की ताकत कम करने की कोशिश की थी. चुनाव आयुक्त थे टीएन शेषन, जिन्हें भारत में चुनाव सुधारों का बड़ा माध्यम माना जाता है. टीएन शेषन के बारे में एक बात जो विख्यात थी कि वो जो बोलते हैं सीधा बोलते हैं और जो करते थे उसमें किसी का हस्तक्षेप नहीं चाहते. टीएन शेषन ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में ऐसे कई किस्सों का जिक्र किया है. इन्हीं में एक किस्सा वो भी है जब उन्होंने तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव को सीधे फोन पर कह दिया था कि ‘ये गलतफहमी है कि मैं घोड़ा हूं और सरकार घुड़सवार’.

मंत्री का किया विरोध 
12 दिसंबर 1990 को टीएन शेषन ने चुनाव आयुक्त का पदभार संभाला. उस समय जनता दल की सरकार थी. चुनाव हुए तो कांग्रेस पावर में आई और नरसिम्हा राव पीएम बन गए. राव की कैबिनेट में विधि मंत्रालय विजय भास्कर रेड्डी संभाल रहे थे. अपनी आत्मकथा ‘थ्रू द ब्रोकेन ग्लास’ में टीएन शेषन ने जिक्र किया है कि जब कानून मंत्री विजय भास्कर ने संसद में पूछे जा रहे सवालों का जवाब देने के लिए चुनाव आयोग से कहा तो टीएन शेषन ने इसका विरोध किया.

पीएम से काम करने को कह दिया मना 
शेषन ने साफ शब्दों में कहा कि चुनाव आयोग सरकार का विभाग नहीं है. यह मामला जब तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव के पास पहुंचा और रेड्डी ने उनके सामने ही शेषन से कहा कि आप सहयोग नहीं कर रहे हैं तो शेषन ने दो टूक कहा कि मैं चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व करता हूं, कोई कोऑपरेटिव सोसायटी नहीं हूं. यही नहीं किताब में शेषन ने लिखा है कि उन्होंने पीएम से यहां तक कह दिया कि यदि मंत्री का यही रवैया रहा तो मैं इनके साथ काम नहीं कर सकता.

पीएम से कहा-  मैं किसी का हुक्म नहीं मानूंगा
ऐसा ही एक और किस्सा तब का है जब विधि सचिव रमा देवी ने टीएन शेषन को फोन किया. और कहा कि इटावा का उपचुनाव न कराया जाए. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक ये आदेश विधि राज्यमंत्री रंगराजन कुमारमंगलम की तरफ से था. अपनी आत्मकथा में शेषन ने लिखा है कि इस फोन के बाद उन्होंने सीधे तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव को फोन लगाया और कहा कि- ‘सरकार को गलतफहमी है कि मैं घोड़ा हूँ और सरकार घुड़सवार है’ फोन पर शेषन ने कहा कि यदि किसी फैसले को लागू करने का अच्छा कारण है तो बता दीजिए मैं सोचकर फैसला करूंगा, लेकिन किसी का हुक्म नहीं मानूंगा’ जब नरसिम्हा राव ने कहा कि रंगराजन से मामला सुलझा लीजिए तो शेषन ने जवाब दिया कि मैं आपसे ये मामला सुलझाऊंगा.

जब देश में चुनाव बंद कराने की दे दी धमकी
बात 1993 की है, 2 अगस्त को तत्कालीन चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने 17 पेज का आदेश जारी कर ऐलान कर दिया कि देश में कोई चुनाव तब तक नहीं होगा जब तक सरकार आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देगी. उस वक्त राज्यसभा चुनाव और लोकसभा उपचुनावों का ऐलान हो चुका था. आदेश जारी होते ही सब पर रोक लग गई. 

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