Guna Lok Sabha: 2019 का सीन पलटकर इस बार कांग्रेस ने फंसा दी सिंधिया की सीट? MP की सियासत गजब है
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Guna Lok Sabha: 2019 का सीन पलटकर इस बार कांग्रेस ने फंसा दी सिंधिया की सीट? MP की सियासत गजब है

Jyotiraditya Scindia vs Yadvendra Singh: मध्य प्रदेश का गुना ज्योतिरादित्य सिंधिया के शाही परिवार से जाना जाता है. यह लोकसभा सीट लंबे समय तक सिंधिया परिवार के पास ही रही है लेकिन पिछली बार यादव कैंडिडेट ने बाजी पलट दी. इस बार सिंधिया भाजपा में हैं लेकिन गुना के गणित को हल करना फिर आसान नहीं है. 

Guna Lok Sabha: 2019 का सीन पलटकर इस बार कांग्रेस ने फंसा दी सिंधिया की सीट? MP की सियासत गजब है

Madhya Pradesh Guna Lok Sabha Chunav: सियासी किले कहिए या नेताओं के गढ़, चुनाव में ये भी जीत लिए जाते हैं. एमपी में गुना लोकसभा सीट की भी कुछ ऐसी ही कहानी है. 2014 में एक लाख से ज्यादा वोटों से जीतने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां 2019 में सवा लाख वोटों के अंतर से हार गए. सिंधिया राजपरिवार का गढ़ पहली हार किसी और ने जीता था. तब सिंधिया कांग्रेस में थे और भाजपा के टिकट पर कृष्णपाल सिंह यादव जीते थे. वैसे, यादव जी पहले कांग्रेस में ही थे और सिंधिया के करीबी माने जाते थे. खैर, 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने गेम दिलचस्प बना दिया है. अब सिंधिया भाजपा में हैं और कांग्रेस ने पूर्व भाजपा नेता राव यादवेंद्र सिंह यादव को उनके सामने खड़ा कर दिया है. 

यादव कैंडिडेट लाकर कांग्रेस ने सिंधिया की सीट फिर से फंसा दी है. दो दशक पहले यादवेंद्र सिंह के पिता देशराज सिंह यादव को बीजेपी ने उतारा था, लेकिन वह हार गए थे. देशराज उससे पहले सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया से भी हारे थे. इस परिवार का संघ से नाता रहा है. रामजन्मभूमि आंदोलन में भी देशराज की अहम भूमिका रही. 

यादवेंद्र vs सिंधिया 

इस बार यादवेंद्र के सामने हिसाब बराबर करने का मौका है. उनके परिवार और सिंधिया में अदावत कुछ ऐसी है कि जब सिंधिया भाजपाए हुए तो यादवेंद्र सिंह ने पार्टी ही छोड़ दी. तब उन्होंने कहा था कि जब से सिंधिया और उनके समर्थक भाजपा में आए, कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया जा रहा है और क्षेत्र की उपेक्षा की जा रही है. 

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दरअसल, गुना सीट पर 4 लाख से ज्यादा यादव वोटर हैं. पिछली बार हार के बाद सिंधिया 2020 में कांग्रेस छोड़ भाजपाई हो गए थे. उनके साथ 22 विधायक गए तो राज्य में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिर गई जो 2018 में ही सत्ता में आई थी. भाजपा ने राज्यसभा के रास्ते सिंधिया को संसद पहुंचाया और केंद्रीय मंत्री बनाया. 

कौन हैं यादवेंद्र सिंह

गुना सीट से कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी यादवेंद्र सिंह पहले भाजपा के अशोक नगर जिला पंचायत अध्यक्ष थे. 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले वह कांग्रेस में चले गए. मुंगावली विधानसभा से चुनाव भी लड़ा लेकिन 5 हजार वोटों के अंतर से हार गए. वैसे यादवेंद्र सिंह को उतारने को लेकर कांग्रेस के भीतर भी आम सहमति नहीं है. कई लोग गुना से दावेदारी जता रहे थे. ऐसे ही एक नेता ने 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा कि आप किसी ऐसे व्यक्ति पर भरोसा कैसे कर सकते हैं जिसका पूरा परिवार भाजपा में है. उनकी मां, भाई और दूसरे सदस्य सब भाजपाई हैं. उन कांग्रेसियों के बारे में क्यों नहीं सोचा गया जो 15 साल से भाजपा से लड़ रहे हैं? 

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यादव वोटबैंक वाले एंगल पर कांग्रेस के इस नेता ने 'एक्सप्रेस' से कहा कि यहां एमपी में अब यादव सीएम (भाजपा के मोहन यादव) हैं. क्या यादव समुदाय कुछ समय के लिए पंचायत नेता रहे यादवेंद्र के लिए सीएम के खिलाफ जाएगा. उन्होंने कहा कि अरुण यादव जैसे पूर्व मंत्री को गुना से उतारा जा सकता था.

कृष्ण और यादव की बात कर रहे सिंधिया

यादव वोट वाले पहलू को ध्यान में रखते हुए सिंधिया ने रैलियों में यादव सीएम की बात कहनी भी शुरू कर दी है. सोशल मीडिया पर कुछ घंटे पहले एक वीडियो शेयर करते हुए उन्होंने लिखा- गोविंद दामोदर माधवेति, हे कृष्ण! हे यादव! हे सखेति! इस ट्वीट को आज सिंधिया ने पिन कर रखा है. 

उधर, कांग्रेस के फैसले का बचाव करते हुए एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने कहा कि 2019 में एक लोकल नेता ने ही गुना से सिंधिया को हराया था. यहां यादव वोट महत्वपूर्ण हैं. पिछली बार जैसे केपी यादव को फायदा हुआ, वैसे ही हम उम्मीद करते हैं कि पहले बीजेपी में होने के कारण यादवेंद्र सिंह भगवा दल के वोटबैंक में सेंध लगाने में कामयाब होंगे. अरुण यादव के सवाल पर उन्होंने कहा कि उनका गढ़ खरगोन है. वह गुना में सिंधिया को चुनौती नहीं दे पाएंगे. 

2019 जैसा हाल न हो, इसलिए सिंधिया ने अपनी सीट पर कैंडिडेट की घोषणा होने से पहले ही चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था. वोटिंग 7 मई को है. कुछ घंटे पहले एक रैली में उन्होंने खुद को 'शिवपुरी का मकड़ी' बताया तो लोग मुस्कुराने लगे. वह तर्क दे रहे थे कि जैसे मकड़ी जाल बुनती है, वैसे ही सिंधिया ने सड़कों और विकास का नेटवर्क बनाया है. 'महाराजा' की छवि रखने वाले सिंधिया लगातार कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैं.

नवंबर में हुए विधानसभा चनाव के नतीजों से संकेत मिले थे कि सिंधिया ने क्षेत्र में अपनी खोई जमीन फिर से हासिल कर ली है. इससे भाजपा ने 2018 की तुलना में यहां की 34 सीटों में 18 सीटें जीत लीं. पिछली बार केवल सात सीटें मिली थीं. 

गुना लोकसभा सीट का गणित

गुना सीट पर 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. 18 लाख से ज्यादा वोटर हैं. 4 लाख यादव वोटर हैं जो करीब 20 प्रतिशत हैं. वैसे भी 8 में से दो विधानसभा सीटों पर सिंधिया सपोर्टर यादव विधायक हैं. ऐसे में यादव वोट किधर खिसकेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता है. पिछली बार सिंधिया को 41.89 प्रतिशत वोट मिले थे. 

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