Lok Sabha Chunav: चुनाव में जीतते कम, गणित बिगाड़ते ज्यादा; वोटकटवा क्यों बन गए निर्दलीय कैंडिडेट?
Advertisement
trendingNow12172432

Lok Sabha Chunav: चुनाव में जीतते कम, गणित बिगाड़ते ज्यादा; वोटकटवा क्यों बन गए निर्दलीय कैंडिडेट?

Independent Candidate: कोई उन्हें वोटकटवा कहता है तो कोई बेवजह खड़ा होने वाला कैंडिडेट. निर्दलीय उम्मीदवार होते कौन हैं और ये लोकसभा चुनाव में क्यों खड़े हो जाते हैं? ज्यादातर बार इन्हें निराशा ही मिलती है. कई सीटों पर इनके कारण जीत हार का समीकरण भी गड़बड़ जाता है. पढ़िए माननीय निर्दलीयों की दिलचस्प स्टोरी. 

Lok Sabha Chunav: चुनाव में जीतते कम, गणित बिगाड़ते ज्यादा; वोटकटवा क्यों बन गए निर्दलीय कैंडिडेट?

Lok Sabha Chunav 2024 Independent Candidates: लोकसभा चुनाव का मौसम है. कोई भी पात्र कैंडिडेट खड़ा हो सकता है. बड़ी पार्टियों से टिकट नहीं मिला तो आप निर्दलीय भी खड़े हो सकते हैं. इसकी कोई सीमा भी नहीं है. कई विधायक और सांसद निर्दलीय भी जीतते रहे हैं. हालांकि आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ निर्दलीय कैंडिडेट 2-4 लोगों को लेकर चुनाव प्रचार करते मिल जाते हैं. हाल के वर्षों में निर्दलीयों के जीतने का सिलसिला कम हो गया है. हां, बड़े कद्दावर नेता को अगर पार्टी का टिकट नहीं मिला तो वह जरूर निर्दलीय जीत जाता है. सवाल उठता है कि जब ज्यादातर निर्दलीयों को पता होता है कि जीतेंगे नहीं तो खड़े क्यों हो जाते हैं? इनके खड़े होने से फायदा किसका होता है? 

Independent Candidate किसे कहते हैं?

एक स्वतंत्र या इंडिपेंडेंट उम्मीदवार वह होता है जो किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े बिना चुनाव लड़ता है. निर्दलीय अक्सर प्रमुख राजनीतिक दलों से अलग नीतियों पर चलते हैं. 1951-52 के पहले आम चुनाव के बाद से निर्दलीय उम्मीदवार लोकसभा चुनाव में खड़े हो रहे हैं. हालांकि विजेता निर्दलीयों की संख्या घटती जा रही है. उन्हें मिलने वाला वोट प्रतिशत भी घट रहा है. भारत में कम पैसे और प्रभाव के साथ स्वतंत्र उम्मीदवारों के लिए प्रचार करना और बड़ी संख्या में मतदाताओं के वोट हासिल करना मुश्किल है. 

LIVE: लोकसभा चुनाव की हर खबरें यहां पढ़िए

क्यों खड़े होते हैं माननीय निर्दलीय?

दरअसल, ये जीतें भले नहीं पर असर बहुत डालते हैं. निर्दलीयों के आने से चुनाव मैदान में एक लोकसभा सीट पर प्रत्याशियों की संख्या भी बढ़ जाती है. इससे कई समीकरण साधे जाते हैं. मजबूत कैंडिडेट विरोधियों के वोट काटने के लिए निर्दलीय कैंडिडेट को खड़ा करवाते हैं. पहले लोग मजबूत दावेदार के नाम वाले कई डमी कैंडिडेटों को निर्दलीय खड़ा करवा देते थे. इसका नुकसान यह होता था कि वोट बंट जाते थे. जनता कन्फ्यूज होकर दूसरे को वोट दे देती थी. सामान्य तौर पर बड़ी पार्टियों की तरफ से डमी या निर्दलीय कैंडिडेट खड़े किए जाते हैं.

इसे ऐसे समझिए कि वह प्रत्याशी सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए विरोधी के समानांतर खड़ा होता है. उसके पास जीतने का सामर्थ्य तो नहीं होता लेकिन वोट काटने की क्षमता जरूर होती है. इसे चुनाव प्रबंधन कहकर जायज ठहराया जाता रहा है. हालांकि कुछ लोग ऐसे निर्दलीय कैंडिडेट को 'वोटकटवा' भी कहते हैं. 

पढ़ें: जब 4 पुलिसवालों ने ही बूथ पर कराया था मतदान

वैसे सब निर्दलीय उम्मीदवार कमजोर नहीं होता है. 75 साल के इतिहास में एक नहीं, कई नेता निर्दलीय जीतकर संसद पहुंचे हैं. 

एक बार विधि आयोग ने यह सिफारिश कर बहस छेड़ दी थी कि स्वतंत्र उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए क्योंकि वे या तो गंभीर नहीं होते हैं या केवल मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए चुनाव लड़ते हैं. बताते हैं कि 1965 में चुनाव आयोग ने भी इस बारे में सोचा था. 1967 के आम चुनाव में यूपी में बड़ी संख्या में निर्दलीय मैदान में आ गए थे. तब के अखबारों में रिपोर्ट छपी थी कि निर्दलीय कैंडिडेट्स को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं देनी चाहिए. कुछ तो केवल वोट काटने के लिए ही खड़े होते हैं. 

दिल्ली में जब रात के समय पूर्व प्रधानमंत्री को किया गया गिरफ्तार

तब तत्कालीन चुनाव आयुक्त सुंदरम ने कहा था कि कुछ निर्दलीय सदस्यों का लोकतंत्र में चुने जाने का कोई लाभ नहीं है. चुनाव में किसी एक दल को बहुमत न मिलने पर निर्दलीय उम्मीदवारों की ही खरीद-फरोख्त की आशंका ज्यादा रहती है.

फूलपुर में जब निर्दलीय ने हराया चुनाव

यह किस्सा प्रयागराज जिले की फूलपुर लोकसभा सीट का है. 1967 में चौथा लोकसभा चुनाव था. फूलपुर से पंडित नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित चुनाव मैदान में थीं. उनके खिलाफ संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से जनेश्वर मिश्र खड़े हुए. यहां निर्दलीय उम्मीदवारों ने समीकरण बदल दिया था. नतीजे आए तो जनेश्वर मिश्र 36 हजार वोटों से हार गए. दिलचस्प यह था कि छह प्रत्याशी निर्दलीय लड़े थे और इनमें से दो ने 40 हजार से ज्यादा वोट काट लिए थे. ये अगर नहीं खड़े होते तो नतीजा बदल सकता था. (फोटो- lexica AI)

लोकसभा चुनाव में किस्सा कुर्सी का, यहां पढ़िए

Trending news