Bholaa Review: पूरे टिकट में अधूरी कहानी, सीक्वल के चक्कर में अजय देवगन की मेहनत पर फिरा पानी
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Bholaa Review: पूरे टिकट में अधूरी कहानी, सीक्वल के चक्कर में अजय देवगन की मेहनत पर फिरा पानी

Ajay Devgn Film: अगर आप दृश्यम-2 के फेर में पड़कर भोला देखने जाएंगे, तो निराश होंगे. यहां कहानी में वैसा दम नहीं है. अजय देवगन ने एक्टिंग तो ठीक कर ली, लेकिन निर्देशक के रूप में एक बार फिर नाकाम रहे. उनका पूरा जोर भोला और उसके परिवार की कहानी कहने से ज्यादा एक्शन पर है. वह भी, साउथ मार्का एक्शन.

 

Bholaa Review: पूरे टिकट में अधूरी कहानी, सीक्वल के चक्कर में अजय देवगन की मेहनत पर फिरा पानी

Ajay Devgn Director Film: फिल्म कहानी कहने के लिए नहीं, पैसे बनाने के लिए. पिछले दो-ढाई साल से बॉलीवुड बॉक्स ऑफिस की हालत खस्ता है और यह किसी से छुपा नहीं है. लेकिन फिल्म अगर कहानी दिखाने के बजाय, पैसा कमाने और हीरो का ब्रांड चमकाने के लिए बनाई जाएगी तो वह भोला जैसी ही बनेगी. यहां आपको पता ही नहीं चलता कि हीरो की असली कहानी क्या है क्योंकि यह सब पार्ट-2 के लिए छुपा कर रखा गया. अतः आप पूरे पैसे में भोला की आधी कहानी पाते हैं. भोला का पहला पार्ट ही बेहद ढीला और खिंचा हुआ है. अगर अच्छे राइटर-डायरेक्ट इस फिल्म में होते तो एक ही बार में सब खूबसूरती से समेट लेते. परंतु पार्ट-2 का जो मोह वेब सीरीजों का सत्यानाश करता है, वह दीमक की तरह अजय देवगन की इस फिल्म को खा गया है. मुद्दा है अच्छी कहानियां, लेकिन बॉलीवुड के प्रोड्यूसर-डायरेक्टर उससे ही आंखें मूंदे हुए हैं.

होना, न होना विलेन का
भोला 2019 की हिट तमिल फिल्म कैथी का हिंदी रीमेक है. जिसमें काफी कुछ बदला गया है. मगर खराब और कमजोर ढंग से. बतौर निर्देशक अजय देवगन एक बार फिर नाकाम साबित हुए. कहानी पर उनकी पकड़ नहीं दिखती. लंबे-लंबे सीन फिल्म में पसरते जाते हैं. एक्शन ऐसा है कि खत्म ही नहीं होता. बात आगे नहीं बढ़ती. फिल्म के प्रमोशन में देवगन ने खलनायकों को लार्जर-दैन-लाइफ बताया था, लेकिन वे कच्चे गोटी साबित होते हैं. अश्वत्थामा बने दीपक डोबरियाल को छोड़ दें तो विनीत कुमार और गजराज राव की जगह एक्स्ट्रा भी हो सकते थे. विनीत कुमार का यहां होना न होना बराबर है, जबकि गजराज राव साउथ इंडियन अंदाज में बात करते हुए यहां सिर्फ एक अंधेरे-से कमरे में कैद हैं. तब्बू पुलिस अफसर बनी हैं, परंतु उनका रोल बहुत कमजोर है. उनके व्यक्तित्व में कोई बात निखरकर नहीं आती. वास्तव में फिल्म का कोई किरदार ऐसा नहीं, जो इंप्रेस कर सके. अजय देवगन अपनी हर फिल्म की तरह यहां भी आंखों से बातें करने की कोशिश करते हैं. फिल्म जरूरत से ज्यादा एक्शन के सहारे खड़ी है.

कहानी के कितने पार्ट
भोला ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जो कभी क्रिमिनल था. मगर शादी करके सुधर गया. परंतु जैसा कि हर फिल्म में होता है, अपराधी हीरो अगर हथियार त्याग दे तो शत्रु उसे फिर से उठ खड़े होने को मजबूर कर देते हैं. यहां लेखक-निर्देशक भोला के अतीत की कहानी के बारे में सिर्फ संकेत देते हैं. उसे दिखाते नहीं. अंत में पता चलता है कि फिल्म का पार्ट-2 आएगा. पता नहीं, वहां भी रहस्य खोला जाएगा या नहींॽ या फिर अजय देवगन के पास भोला पार्ट-3 की च्युइंगम भी तैयार है. खैर, इस कहानी में भोला जेल से रिहा होता है. अनाथालय में उसकी 10 साल की बेटी है, जिससे उसने कभी देखा तक नहीं. इधर, पुलिस अफसर डायना (तब्बू) ने लखनऊ के बड़े बदमाश गैंग से 900 करोड़ की कोकीन बरामद की है. उसने पूरी कोकीन को छुपा दिया है और जिन्हें इसके साथ पकड़ा, उन्हें जेल में डाल दिया. जेल से बाहर बैठे गैंग लीडर अश्वत्थामा ने पूरे शहर के गुंडे-मवाली-बदमाश डायना के पीछे लगा दिए हैं कि पता करो उसने कहां ड्रग्स छुपाए और कहां उसके आदमियों को कैद किया. अश्वत्थामा के लिए काम करने वाला एक पुलिसवाला अपने सीनियर अफसर की पार्टी में शराब में बेहोशी की दवा मिला देता है और सारे पुलिसवाले बेहोश हो जाते हैं. दवा इतनी इतनी तेज है कि अगर पुलिसवालों को इलाज नहीं मिला तो मर भी सकते हैं. तब डायना भोला की मदद से सबको ट्रक में डालकर अस्पताल ले जाना चाहती और बीच में दुश्मन बार-बार उसका रास्ता रोकते हैं. भोला सबको ठिकाने लगाते जाता है. एक रात में सैकड़ों मर्डर. अंत में तो वह मच्छर मारने वाली फॉग मशीन जैसी गन चलाता है और बदमाश कीड़े-मकोड़ों की तरह मरते जाते हैं.

मिथुन का एडवांस वर्जन
भोला देख कर आप महसूस करेंगे कि बॉलीवुड ने साउथ के कहानी कहने के अंदाज और फिल्म मेकिंग के आगे घुटने टेक दिए है. न स्टोरीटेलिंग में और न मेकिंग में, मौलिकता यहां नहीं मिलेगी. निर्देशक के रूप में अजय देवगन अभी तक अपना अंदाज नहीं खोज पाए हैं. यू मी और हम, शिवाय और रनवे 34 के बाद भोला में भी वह बेअसर हैं. दो घंटे से अधिक की फिल्म में अजय देवगन करीब डेढ़ घंटे से ज्यादा का समय एक्शन और एक्शन की तैयारी में बिताते हैं. फिल्म एंटरटेन नहीं करती. न तो इसमें पारिवारिक ड्रामा है और न ही महिलाओं-बच्चों के लिए देखने जासै कुछ है. तमाम जगहों पर अजय देवगन की यह फिल्म बीते जमाने की मिथुन चक्रवर्ती की एक्शन फिल्मों का एडवांस वर्जन नजर आती है. अजय देगवन को देखकर भी लगता है कि वह ‘फूल और कांटे’ वाले दिनों में लौट जाना चाहते हैं. जबकि जरूरत आगे बढ़ने की है. चाहे अजय देवगन का फिल्मों का चयन हो या फिर बॉलीवुड की सोच. भोला में एक आइटम डांस है, जो मजा नहीं देता. बैकग्राउंड म्यूजिक लाउड है. जबकि डायलॉग का ग्राफ लगातार नीचे आता है. फिल्म की कहानी अधूरेपन का शिकार है. अगर आप पूरे टिकट में आधी कहानी से संतुष्ट होते हैं, तो जरूर थियेटर में सकते हैं.

निर्देशकः अजय देवगन
सितारे : अजय देवगन, तब्बू, दीपक डोबरियाल, संजय मिश्रा, गजराज राव
रेटिंग**1/2

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