Kathal Review: चोरी हुए हैं मलेशिया की अंकल हांग ब्रीड के कटहल, लेकिन ये कहानी बिल्कुल देसी है
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Kathal Review: चोरी हुए हैं मलेशिया की अंकल हांग ब्रीड के कटहल, लेकिन ये कहानी बिल्कुल देसी है

Sanya Malhotra Movie: सान्या मल्होत्रा बहुत तेज नहीं चल रही हैं, परंतु बीते छह-सात साल में उन्होंने जो काम किया है, उसने उन्हें एक ठोस पहचान दी है. कटहल में भी वह अलग अंदाज में हैं. फिल्म की रफ्तार कुछ धीमी जरूर है लेकिन अगर थोड़ा धीरज रखें तो इस कटहल में आपको स्वाद मिलेगा.

 

Kathal Review: चोरी हुए हैं मलेशिया की अंकल हांग ब्रीड के कटहल, लेकिन ये कहानी बिल्कुल देसी है

Sanya Malhotra Film On OTT: क्या सान्या मल्होत्रा ओटीटी की आर्टिस्ट होकर रह गई हैंॽ उनकी पिछली सात में से छह फिल्में डायरेक्ट ओटीटी पर आई हैं. शकुंतला देवी, लूडो, पगलैट, मीनाक्षी सुंदरेश्वर और लव हॉस्टल के बाद अब सान्या की फिल्म कटहल सीधे ओटीटी पर रिलीज हुई है. इसका प्लेटफॉर्म है, नेटफ्लिक्स. नेटफ्लिक्स भारत में अपनी जमीन ढूंढने की कोशिश में है. कटहल में वह सिनेमाई हिंदी से आगे बढ़कर बुंदेलखंडी तक पहुंचा है. जमीन भी यूपी-एमपी की है. मुद्दा उन ग्रामीण-कस्बाई खबरों वाला है, जिनमें नेताजी की खोई भैंसें और अफसरों के लापता कुत्ते ढूंढने में पुलिस को लगा दिया जाता है. जबकि जनता से परेशानियां सुलझाने और व्यवस्था को बनाए रखने के तमाम काम उसके जिम्मे हैं.

क्या-क्या मिलेगा देखने
फिल्म की कहानी विधायक पन्नालाल पटैरिया (विजय राज) के बंगले में लगे मलेशिया की अंकल हांग ब्रीड के कटहल से जुड़ी है. पेड़ पर लगे 15-15 किलो के दो सुडौल कटहल रातोंरात चोरी हो जाते हैं. एसपी इन कटहलों को ढूंढने की जिम्मेदारी इंस्पेक्टर महिमा बसोर (सान्या मिश्रा) को देते हैं. अब इन कटहलों की तलाश में इंस्पेक्टर महिमा कहां तक कामयाब होंगी, कटहलों की चोरी का क्या कोई राज है, कटहलों की चोरी के साथ और क्या-क्या देखने को मिलेगाॽ निर्देशक यशोवर्द्धन मिश्रा की फिल्म में आप अगर करीब सवा दो घंटे लगाएं तो इन सवालों के जवाब जान सकते हैं. कटहल का टोन व्यंग्यात्मक है. इंस्पेक्टर महिमा भी अक्सर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक बराबरी की बात करती नजर आती है. वह बॉलीवुड की आम महिला पुलिस अफसरों की तरह नहीं हैं.

बंद फाइल का खुलना
कटहल में जैक फ्रूट की मिस्ट्री के बहाने निर्देशक ने दो बड़े मुद्दों को उठाया है. एक है जाति व्यवस्था और दूसरी लड़कियों के लापता होने पर समाज तथा पुलिस का आंखें मूंदे रहना. इंस्पेक्टर महिमा को उनके सीनियर और साथ में काम करने वाले कभी सामने तो कभी पीठ-पीठे उनकी जाति से संबोधित करते हैं. उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाली बसोर जाति के लोग पारंपरिक रूप से बांस की चीजें बनाने का काम करते हैं. इन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त है. फिल्म में ब्राह्मणों पर भी तंज हैं. हिंदी फिल्मों में अमूमन इस तरह का विमर्श या संवाद देखने नहीं मिलते. इसी तरह देश के पिछड़े इलाकों में लड़कियों की स्थिति आज भी दोयम दर्जे की है. कहानी में आप देखते हैं कि पुलिस थाने में गुमशुदा लड़कियों की पूरी फाइल बन चुकी है, परंतु उसे कभी खोला नहीं जाता.

व्यवस्था की पोल खोल
पिछले हफ्ते रिलीज हुई वेब सीरीज दहाड़ में भी लड़कियों की गुमशुदगी का मामला था, परंतु बात क्राइम-थ्रिलर अंदाज में राजस्थान की थी. जबकि इसी महीने रिलीज हुई फिल्म द केरल स्टोरी में भी लड़कियों से जुड़ा धर्मांतरण तथा आतंकियों के द्वारा उनके इस्तेमाल का मुद्दा सामने आया था. कटहल अलग अंदाज में लड़कियों की गुमशुदगी और उसकी उपेक्षा का मामला सामने लाती है. वह इस पर सीधे बात करने के बजाय व्यवस्था की पोल खोलती है कि उसे क्या करना चाहिए और वह किन कामों में व्यस्त रहती है. कटहल में व्यंग्य तो है मगर इसकी धार इतनी तेज नहीं है कि खून निकाल दे. फिल्म की एक समस्या यह है कि कम से कम शुरुआत में इसकी रफ्तार काफी धीमी है. आपको फिल्म के साथ बने रहने के लिए धीरज रखना पड़ता है.

हल्की आंच का स्वाद
वास्तव में पूरी फिल्म को सान्या मल्होत्रा अपने कंधों पर लेकर चली हैं, लेकिन करियर के इस मोड़ पर आते-आते उनकी सीमाएं नजर आने लगी हैं. दंगल, फोटोग्राफ, लूडो और पगलैट वाली ताजगी तथा विविधता की चमक कम हो रही है. ऐसे में उन्हें नए सिरे से अपने किरदारों पर काम करने की जरूरत है. हालांकि सान्या की फिल्मोग्राफी बताती है कि उनका फिल्मों का चयन अच्छा है और इसीलिए वह अपनी समकालीन अभिनेत्रियों से अलग हैं. फिल्म में कांस्टेबल बने अनंतविजय जोशी ने भी अपने किरदार को अच्छे ढंग से निभाया है. वहीं राजपाल यादव एक बार फिर रंग जमाते हैं. पत्रकार के रूप में उनका गेट-अप ध्यान खींचता है. यह जरूर है कि लेखक-निर्देशक फिल्म में विजय राज और बृजेंद्र काला जैसे एक्टरों को सही इस्तेमाल नहीं कर पाए. वर्ना फिल्म की चमक और धार बढ़ सकती थी. अगर आप ग्रामीण-कस्बाई दृश्यावली वाला, मुद्दों को उठाने वाला सिनेमा पसंद करते हैं और धीमी रफ्तार के साथ धीरज धरे रह सकते हैं तो हल्की आंच में पके इस कटहल में आपको स्वाद मिलेगा. फिल्म आपको यह भी बताएगी कि चोरी कटहलों का क्या हुआ.

निर्देशकः यशोवर्द्धन मिश्रा
सितारे: सान्या मल्होत्रा, अनंतविजय जोशी, विजय राज, राजपाल यादव, नेहा सराफ
रेटिंग***

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