'उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक' ने हाल ही में बॉलीवुड की हाईएस्ट ग्रोसर फिल्मों अपना नाम दर्ज किया है, फिल्म में 250 करोड़ रुपए की कमाई कर ली है, लेकिन अब भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर छाई हुई है...
Trending Photos
नई दिल्ली: फिल्म 'उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक' की शूटिंग के लिए फिल्म निर्मताओं की खोज कश्मीर के विकल्प के रूप में सर्बिया जाकर खत्म हुई. निर्माताओं की असल खोज फिल्म में स्पेशल फोर्स के पास दिखाए जाने वाले हथियार को लेकर शुरू हुई थी. यह तलाश उन्हें कश्मीर की घाटियों से सर्बिया तक ले आई.
फिल्म के निर्देशक आदित्य धर ने पहले कहा था, "मुझे कश्मीर के बाहर कश्मीर, सर्बिया से बेहतर नहीं मिल सकता था." यूरोप का यह दक्षिणपूर्वी देश अब भारतीय फिल्मों के एक बड़े हब के रूप में सामने आ रहा है. और, इसकी वजह यहां फिल्म की शूटिंग के लिए मिलने वाली सहूलियतें हैं, जैसे भारतीय 30 दिन बिना वीजा के यहां रुक सकते हैं और 25 फीसदी का कैश रिबेट.
लेकिन, आदित्य का सर्बिया में फिल्म टीम को ले जाने का कारण इससे कहीं अधिक था. उन्होंने आईएएनएस से कहा, "जिस तरह के उपकरण हम फिल्म के लिए तलाश रहे थे जैसे बंदूक, नाइट विजन गोगेल्स, हेलमेट..यह सभी वस्तुएं 'स्पेशल फोर्स' के पास होती हैं और हम पूरी तरह से वह सभी चीजें दिखाना चाहते थे जो इन सुरक्षा बलों के अफसरों के पास होती हैं. भारत में इन सबका मिलना मुश्किल था. यह सब वस्तुएं आपको यूरोप और अमेरिका में मिल जाती हैं."
उन्होंने कहा कि उनके सर्बिया जाने का मुख्य कारण यह था कि इन सभी उपकरणों को भारत लाने में करीब एक से दो साल का वक्त लग सकता था. चूंकि फिल्म को समय से पूरा करना था इसलिए वह इसका जोखिम नहीं ले सकते थे. इसीलिए सर्बिया जाने का फैसला लिया गया.
दूसरे कारण के बारे में उन्होंने कहा, "दूसरी वजह यह थी कि बताया वह था वहां की भौगोलिक स्थिति कश्मीर से काफी मिलती-जुलती है. इसके अलावा वहां शूटिंग करना ज्यादा महंगा नहीं होता और आवागमन में आसानी रहती है."
'उरी' की शूटिंग महज 49 दिनों में हो गई थी. वह भी सिर्फ 25 करोड़ रुपये में और आदित्य को इस बात की खुशी है कि वह एम4 कारबाइन, एम16 और एके47 राइफल की प्रतिकृति को पर्दे पर दिखा पाए.
बॉक्स ऑफिस पर 200 करोड़ रुपये का आंकड़ा छूने वाली फिल्म के निर्देशक ने कहा कि अगर उपकरणों की प्रतिकृति को भारत लाना आसान होता तो हमें इतने दिन शूटिंग के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा और अपने देश में ही बिलकुल वैसी ही कृति को बनाया जा सकता है.
एक और व्यापार विशलेषक आमोद मेहरा ने कहा कि जिस प्रकार से फिल्मों को ठीक बजट और समय के साथ बनाया जा रहा है, उससे पता चलता है कि कैसे इतने सालों में फिल्म उद्योग ने तरक्की की है और यह बेहद पेशेवर और अच्छे से संगठित हो चुका है.