Prakash Jha Interview: फिल्म मट्टो की साइकिल में प्रकाश झा की एक्टिंग ने सबका ध्यान खींचा. वह जय गंगाजल और सांड की आंख में भी अभिनय करते दिखे थे, मगर यहां बात अलग है. उन्होंने मंजे हुए एक्टर जैसा परफॉर्म किया है. निर्देशन करते-करते कब और कहां सीखी प्रकाश झा ने एक्टिंग, जानिए इस एक्सक्लूसिव बातचीत में.
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Matto Ki Sikil: मट्टो की साइकल में आपको देखने वाले हैरान है. किसी कलाकार का किरदार में ऐसा ट्रांसफॉरमेशन हिंदी सिनेमा के पर्दे पर दुर्लभ है. यह कैसे संभव हुआॽ
-मेरे लिए एक्टिंग बहुत पैशन का काम है. कोशिश करता हूं कि कैरेक्टर को देखूं, समझूं, पकड़ूं और उस तक पहुंचूं. प्रियंका चोपड़ा के साथ जय गंगाजल में जो कैरेक्टर था, वह बहुत जाना-पहचान-समझा था. इसलिए आसान था. अतः डायरेक्शन करते हुए भी वह कर लिया. लेकिन उसके बाद जब भी एक्टिंग की, तो यही सोचा कि अब साथ में डायरेक्शन नहीं करना है, कैरेक्टर में खुद को इनवॉल्व करना है. तब सांड की आंख की थी.
-कैरेक्टर को देखना-समझना-महसूस करना, यह तो अंदरूनी तैयारी हुई. क्या बाहर भी कुछ तैयारी करते हैंॽ
-मेरा कैरेक्टर जिस जगह का होता है, मैं वहां जाता हूं. उस माहौल में रहने वालों से मिलता हूं. उनके साथ रहता हूं. खास तौर पर मट्टो में तो मेरे लिए यह था कि अगर वह एक्टिंग करता नजर आ जाता, तो वह खत्म हो जाता.
-बतौर निर्देशक आपने लंबा अर्सा गुजारा है फिल्मों में. मगर एक्टिंग के लिए यह पैशन बहुत देर बाद दिख रहा है.
-निर्देशन करते हुए मैं एक्टिंग की ट्रेनिंग कई सालों से करता रहा हूं. दुनिया के तमाम एक्टिंग के शिक्षकों और ट्रेनरों के साथ मैंने समय बिताया है. उनके वर्कशॉप अटेंड किए हैं. इस पर मैंने बहुत पैसे भी खर्च किए. ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड्स, फ्रांस, लंदन से लेकर अमेरिका में जाकर बीते कई वर्षों में मैंने ये ट्रेनिंग की. यह सिर्फ इसलिए था कि मैं कैसे अपने एक्टरों को समझूं और कैसे उनके साथ कम्युनिकेट करूं. उनकी हेल्प करूं. लेकिन यह करते-करते मेरे टीजर कहने लगे कि तुम्हें भी एक्टिंग करना चाहिए. मैं सोचता था कि समय आएगा और फिर पांच-सात साल पहले कुछ बात हुई, तो मुझे लगा कि चलो डायरेक्शन, राइटिंग और कैमरे के बाद यह रूप भी धर लेना चाहिए. तो लग गए इसमें.
-जय गंगाजल और सांड की आंख में देख लगा था कि आप एक्टिंग कर सकते हैं, लेकिन मट्टो की साइकिल में तो आपका अंदाज ही अलग है. ऐसा क्या खास लगा इसमें, जो आपने खुद को इसमें झोंक दियाॽ
-दाद देना पड़ेगी जिन्होंने इस कैरेक्टर को लिखा, मोहम्मद गनी. वह इन किरदारों के आस-पास रहते हैं. मथुरा में. उन्होंने मेरे एडिटर के माध्यम से कहानी भेजी थी. मैं पढ़कर हैरान रह गया. मैंने उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि यह किरदार आपको निभाना है. तब मैंने कहा कि आपसे मिलना पड़ेगा और सोचना पड़ेगा. फिर मैंने मथुरा के तीन-चार चक्कर लगाए. जिन मजदूरों की ये कहानी है, उनके साथ रहा. आखिरी वाली ट्रिप में तो ऐसा हुआ कि उन्हीं लोगों के बीच जाकर चौक-चौराहे पर मैं बीड़ी पीता रहता था. एक-दो बार तो मोटर साइकिल वाले हमें उठा कर भी ले गए, काम कराने को. इस तरह मैं मट्टो के किरदार को ढूंढते-ढूढते आखिर उस तक पहुंच गया. मैंने उसे पकड़ लिया.
-सरल शब्दों में आपके किरदार में ढलने की इस प्रक्रिया को कैसे समझा जा सकता हैॽ
-यह एक्टिंग प्रोसेस नहीं है. मेरा जो प्रोसेस है, वह कहता है कि पहले समझ लो, पहचान लो, जान लो, नजदीक आओ, छूओ. फिर वह धीरे-धीरे अपने आप तुम्हारे अंदर आ जाएगा. मैं एक्टिंग जितनी कम करूं उतना अच्छा है. वास्तव में किसी भी कैरक्टर में एक्टिंग करना ही नहीं चाहिए.
-क्या आगे हम आपको लगातार एक्टिंग करते देखेंगेॽ
-ऐसा हो सकता है क्योंकि मेरे पास लगातार ऑफर आ रहे हैं. एक शॉर्ट फिल्म की है, हाइवे नाइट्स. इंटरनेशनल लेवल पर कई फेस्टिवल्स में उसे बहुत तारीफ मिली है. यह फिल्म ऑस्कर के प्री-सिलेक्शन तक भी पहुंची.
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