सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने आज समलैंगिता पर एतिहासिक फैसला दिया है. भारत में अब समलैंगिकता अपराध नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 (समलैंगिकता) को अवैध करार दिया है.
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने आज समलैंगिता पर एतिहासिक फैसला दिया है. भारत में अब समलैंगिकता अपराध नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 (समलैंगिकता) को अवैध करार दिया है. समलैंगिकता पर भारत में लंबे समय से बहस चलती आ रही है. अभी तक भले ही यह मामला कानून के दरवाजे पर खुद को स्वीकार करने की गुहार लगा रहा हो, लेकिन हिंदी सिनेमा ने सालों पहले से ही इस मुद्दे पर अपनी कहानियां दिखाते रहे हैं. कई साल से इस मुद्दे पर बॉलीवुड अपनी बात रखता रहा है.
भले ही आज भी समाज में एलजीबीटी कम्यूनिटी के लोगों को स्वीकार्यता की जंग लड़नी पड़ रही हो, लेकिन सिल्वर स्क्रीन पर होमोसेक्सुअल किरदारों को बेहद संजीदगी और संवेदनशीलता से पेश किया गया है. बॉलीवुड में लगभग पिछले दो दशकों से इस मुद्दे पर फिल्में बन रहीं हैं. शुरुआती दौर में कुछ फिल्मों ने जनता का विरोध और नाराजगी झेली लेकिन आज ऐसे किरदार सहज ही स्वीकार किए जा रहे हैं. आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ खास फिल्मों के बारे में जो इस विषय पर हमें और आपको सोचने पर मजबूर कर देतीं हैं:
अलीगढ़ : अलीगढ़ एक ऐसी फिल्म है जिसमें मनोज वाजपेयी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर का किरदार निभाया है. प्रो रामचंद्र अपने काम में बहुत अच्छे हैं. लेकिन एक रिक्शे वाले के साथ उनका एक वीडियो वायरल हो जाता है. रिक्शे वाले से संबंध होने की बात सामने आने पर पूरे शहर में बात आग की तरह फैल जाती है और मनोज को शहर और नौकरी छोड़नी पड़ती है. समाज का एक भयानक चेहरा इस फिल्म में दिखाया गया है. जो किसी भी इंसान को सिर्फ अपने नजरिए से देखता है. यह फिल्म सत्य घटना पर आधारित है.
कपूर एंड संस : फेमस एक्टर फवाद खान इस फिल्म में गे हैं जो राहुल कपूर के किरदार में नजर आते हैं. इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे समलैंगिक लोगों की जिंदगी भी सामान्य लोगों की तरह उतार चढ़ाव से भरी होती है
बॉम्बे टॉकीज : बॉम्बे टॉकीज फिल्म में तीन छोटी-छोटी कहानियां शामिल हैं. पहली कहानी में तीन पात्र हैं जिन्हें रानी मुखर्जी, रणदीप हुड्डा और साकिब सलीम ने निभाया है. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे नई पीढ़ी के लोग सबके सामाने आराम से स्वीकार करते हैं कि वह गे या लेस्बियन हैं. लेकिन कुछ लोग झूठ बोलकर खुद की और अपने आसपास के लोगों की जिंदगी खराब कर देते हैं. यहां रणदीप हुड्डा को ऐसे ही झूठ की बिसात खड़ा दिखाया गया है. अंत में उसकी पत्नी रानी मुखर्जी को असलियत पता लगती है यहीं फिल्म खत्म हो जाती है.
फैशन : फिल्म फैशन में समीर सोनी ने एक गे का रोल प्ले किया है. जिसमें बताया गया है कि कैसे हमारी सोसायटी हर क्वालिटी होने के बाद भी किसी गे को नकार देती है. ऐसे में कोई भी इंसान डिप्रेशन का शिकार हो सकता है.
लव : फिल्म में शिव पंडित और रघु गणेश के बीच शारीरिक संबंधों को दिखाया गया है. साथ ही यह दिखाने की कोशिश की गई है कि ऐसे कपल के लाइफ में भी किसी आम कपल की तरह उतार-चढ़ाव आते रहते हैं.
आइ एम : राहुल बोस की फिल्म है, हमारे समाज में समलैंगिकों की स्थिति को समझने के लिहाज से यह फिल्म एक बढ़िया जरिए हो सकती है. राहुल बोस की दमदार एक्टिंग फिल्म को मजबूत बनाती है.
माय ब्रदर निखिल : गे कपल का प्यार दिखाया गया है. संजय सूरी निखिल के किरदार में हैं, यह फिल्म कहीं न कहीं एड्स पर भी आधारित है. क्योंकि मिड में निखिल को एड्स हो जाता है जिसके बाद समाज उन्हें पूरे से त्याग देता है.
फायर : इस विषय पर बात हो तो दीपा मेहता के डायरेक्शन में बनी फिल्म फायर का नाम सबसे पहले आता है. शबाना आजमी और नंदिता दास के रिश्ते को दिखाया गया है. इस फिल्म ने अपने बोल्ड सबजेक्ट और सीन के कारण बहुत विरोध और सेंसर की मार भी झेली थी.
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तथ्यों के अनुसार पहली बार होमोसेक्सुअलिटी को 1894 में 17 सेकेंड की एक शार्ट फिल्म में दिखाया गया था. जिसमें दो पुरुषों को साथ डांस करते हुए और एक दूसरे को अजीब तरह से देखते हुए दिखाया गया था. इस फिल्म को विलियम डिकसन ने बनाया था. एलजीबीटी कम्यूनिटी को दिखाने के लिए यह फुटेज किसी बैंचमार्क की तरह आज भी इस्तेमाल किया जाता है.