स्मिता पाटिल का जन्म आज ही के दिन पुणे में एक मराठी परिवार में हुआ था. वह अपने अभिनय के लिए 'मंथन’, 'भूमिका’, 'आक्रोश’, 'जैत रे जैत’ जैसी फिल्मों के साथ कई दूसरी फिल्मों में भी सराही गईं.
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नई दिल्लीः स्मिता पाटिल (Smita Patil) एक ऐसी अभिनेत्री थीं, जिन्होंने फिल्मी पर्दे पर महिलाओं से जुड़े मुद्दों को सिर्फ उजागर ही नहीं किया, बल्कि असल जिंदगी में महिलाओं के उत्थान के लिए खूब काम भी किया. उनकी फिल्मी दुनिया से इतर भी एक शख्सीयत थी. वह अपनी आम जिंदगी में महिलाओं की समस्याओं और अधिकारों को लेकर काफी सक्रिय रहती थीं. वह महिलाओं की कठिनाइयों को गहराई से महसूस करती थीं. इसलिए वह महिलाओं के उत्थान से जुड़े कार्यों में शामिल भी रहती थीं.
स्मिता सिर्फ एक फेमिनिस्ट नहीं थीं, वह मुंबई में वीमन सेंटर की सदस्य भी थीं. इसलिए भी वह असल जिंदगी के किरदारों को उनकी असलियत के साथ फिल्मी पर्दे पर उतारने में कामयाब हो पाईं. वह उन्हीं फिल्मों को महत्व देती थीं, जो भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिकाओं को बयां करती थीं. इसलिए उनकी फिल्में हमारे समाज की मिडल क्लास महिलाओं के जीवन-संघर्ष को बड़ी खूबसूरती से बयां करती नजर आती हैं.
कई पुरस्कारों से नवाजी गईं
स्मिता पाटिल अपने समय की सबसे प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों में से एक थीं. तब फिल्मों में एक अभिनेत्री होने के लिए जो मापदंड थे, उन्हें स्मिता ने तोड़ दिया था. सांवले रंग की इस खूबसूरत एक्ट्रेस ने अपने अभिनय-कौशल की वजह से लाखों दिलों पर राज किया. बॉलीवुड और मराठी फिल्मों में उनका अहम योगदान रहा है.
उन्होंने फिल्म 'भूमिका' में निभाए किरदार के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था. उन्हें मराठी फिल्म 'जैत रे जैत’और 'उम्बर्था’ में निभाई भूमिकाओं के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी दिया गया. फिल्मों में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से भी नवाजा था.
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न्यूजरीडर के तौर पर की थी करियर की शुरुआत
स्मिता पाटिल का जन्म आज ही के दिन पुणे में एक मराठी परिवार में हुआ था. उनके पिता शिवाजीराव गिरधर पाटिल एक प्रसिद्ध राजनेता थे और मां विद्याताई पाटिल एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं. उन्होंने पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट आफ इंडिया से पढ़ाई करने के बाद टीवी न्यूजरीडर का करियर अपनाया और 1970 में मुंबई दूरदर्शन में काम करने लगीं. मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल की नजर जब खूबसूरत स्मिता पर पड़ी, तब उन्हें फिल्म 'चरनदास चोर' और 'निशांत' जैसी फिल्मों में काम करने का मौका मिला.
1976 में आई फिल्म 'मंथन' में उनकी जबर्दस्त अभिनय-कौशल की झलक दिखी. वह आमजन के बीच काफी लोकप्रिय हो गईं. वह हिंदी और मराठी सिनेमा की प्रमुख अभिनेत्री बनकर उभरीं. उन्होंने कई हिट फिल्में दीं. लोग उनके दीवाने थे. मराठी सिनेमा में उनका आगाज फिल्म 'सामना' से हुआ और फिल्म 'मेरे साथ चल' से बॉलीवुड में शुरुआत की. वह 'मंथन’, 'भूमिका’, 'आक्रोश’, 'जैत रे जैत’ जैसी फिल्मों के अलावा भी कई दूसरी फिल्मों में भी सराही गईं.
कम उम्र में छोड़ दी थी दुनिया
स्मिता पाटिल की काफी कम उम्र में मृत्यु हो गई थी. वह अपने बेटे प्रतीक बब्बर (Prateik Babbar) को जन्म देने के 6 घंटे बाद ही चल बसी थीं. बाद में कहा गया कि इलाज में हुई लापरवाही की वजह से अभिनेत्री की मृत्यु हुई थी.