Ek Din Ek Film: अंधेर नगरी के प्लेटफॉर्म पर रुकी फिल्म में रेलगाड़ी, इसके सफर ने सुनील दत्त को बनाया स्टार
Advertisement
trendingNow11723300

Ek Din Ek Film: अंधेर नगरी के प्लेटफॉर्म पर रुकी फिल्म में रेलगाड़ी, इसके सफर ने सुनील दत्त को बनाया स्टार

Sunil Dutt Film: अगर आप सुनील दत्त के फैन हैं तो उनकी डेब्यू फिल्म रेलवे प्लेटफॉर्म देखनी चाहिए. फिल्म 24 घंटे की एक रोचक कहानी होने के साथ देश-समाज की बात करती है. रेल का सफर अचानक बीच में रुक जाता है और लोगों की भीड़ में तरह-तरह के चेहरे निकल कर आते हैं. कहानी आज भी पुरानी नहीं पड़ी है.

 

Ek Din Ek Film: अंधेर नगरी के प्लेटफॉर्म पर रुकी फिल्म में रेलगाड़ी, इसके सफर ने सुनील दत्त को बनाया स्टार

Indian Railway: आज की फिल्मों में कहानियों का संकट साफ दिखता है. न राइटर सोचते हैं और न डायरेक्टर. सिनेमा में कहानियों के साथ कल्पनाशीलता यानी इमेजिनेशन भी गायब है. लेकिन हर दौर ऐसा नहीं था. फिल्ममेकर इशारों में बड़ी बात कह जाते है. जिसमें समाज की सचाई से लेकर व्यवस्था पर व्यंग्य तक शामिल होता था. क्या आप जानते हैं कि सुनील दत्त की डेब्यू फिल्म प्लेटफॉर्म में पूरी कहानी अंधेर नगरी नाम की जगह पर कही गई! अंधेरी नगरी, जहां हर तरफ अंधेर है. न्याय नहीं है. पैसे का बोलबाता है, गरीब की सुनवाई नहीं है. हालांकि यह फिल्म बहुत बड़ी हिट तो नहीं हुई, लेकिन इसमें सुनील दत्त का टैलेंट सामने आया और उन्हें आगे लगातार काम मिलता रहा. वह स्टार बन गए.

अंधेर नगरी चौपट राजा
रेलवे प्लेटफॉर्म एक रेलयात्रा से शुरू होती है. रेल में सैकड़ों लोग सफर कर रहे हैं और एक जगह ट्रेन अचानक रुक जाती है. पता चलता है कि आगे बाढ़ आई हुई और पुल पानी में डूब गया है. पानी को उतरने में कम से कम 24 घंटे लगेंगे. अब लोग क्या करें! रेल्वे स्टेशन पर पता चलता है कि इस जगह का नाम है, अंधेर नगरी. जहां स्टेशन पर न खाने की कोई दुकान है और न पीने के पानी के लिए कुआं. स्टेशनमास्टर कहता है कि सब लोग रेल में ही रहें. परंतु रेल में न पंखे चलते हैं और न सबके बैठने को ढंग की जगह है. तभी रेल में मौजूद एक व्यापारी मौके का फायदा उठाता है और स्टेशन के बाहर दुकान खोल लेता है. इस व्यापारी की भूमिका जॉनी वॉकर ने बहुत जबर्दस्त ढंग से निभाई थी. फिल्म में समाज के दो वर्ग दिखते हैं. पैसे वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता और वे दुकान से सामना खरीद कर अपना काम चलाते हैं. दूसरा वर्ग गरीब है, वह क्या करे. उसके पास पैसा भी नहीं है.

क्लासिक्स की याद
लेखक-निर्देशक रमेश सैगल ने फिल्म में देश-समाज में अमीर-गरीबी पर चोट की थी. तब देश को आजाद हुए 10 साल भी नहीं हुए थे. 1955 में आई यह फिल्म चेतन आनंद की नीचा नगर (1946), बिमल रॉय की दो बीघा जमीन (1953) और राजकपूर की जागते रहो (1956) की याद दिलाती है. फिल्म में सुनील दत्त इस ट्रेन में मां और बहन के साथ सफर कर रहे ऐसे युवक बने थे, जो पढ़ा लिखा है परंतु उसके पास रोजगार नहीं है. मां ने अपने गहने बेच कर पढ़ाया है. बहन की शादी नहीं हो पा रही क्योंकि दहेज की मांग को परिवार पूरा नहीं कर सकता. वहीं इसी रेल में एक राजकुमारी सफर कर रही है, जिसके पिता ने उसकी शादी तय कर दी है. परंतु राजकुमारी को लड़का पसंद नहीं और वह घर से भागी है. इस राजकुमारी के रोल में शीला रमानी हैं.

गाता जाए बंजारा
फिल्म में नलिनी जयवंत मुख्य नायिका थीं. वह रेलवे स्टेशन के बाहर एक गरीब दुकानदार की बेटी की भूमिका में थीं. अमीर-गरीब, भगवान और जमाने की हकीकत की बात करती रेलवे प्लेटफॉर्म की कहानी एक प्रेम त्रिकोण के रूप में भी सामने आती है. फिल्म 24 घंटे में अलग-अलग किरदारों के माध्यम से कई कहानियां कहती है. गीत साहिर लुधियानवी ने लिखे थे. फिल्म का गाना बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत गाता जाए बंजारा... आज भी सुना जाता है. संगीत मदन मोहन का था. कहा जाता है कि आप भारतीय रेल में सफर करते हुए पूरे हिंदुस्तान को महसूस कर सकते हैं. रेलवे प्लेटफॉर्म भी भारत की एक तस्वीर दिखाती है, जो करीब 70 साल बाद भी धुंधली नहीं पड़ी. फिल्म यूट्यूब पर उपलब्ध है.

Trending news