'सूरमा भोपाली' से 'मच्छर सिंह' तक, यादगार हैं जगदीप के ये 10 किरदार
Advertisement
trendingNow1708285

'सूरमा भोपाली' से 'मच्छर सिंह' तक, यादगार हैं जगदीप के ये 10 किरदार

29 मार्च 1939 में अमृतसर में जन्मे सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी उर्फ जगदीप ने करीब 400 फिल्मों में काम किया, लेकिन साल 1975 आई रमेश सिप्पी की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'शोले' से उन्हें विशेष पहचान मिली. 

फाइल फोटो

नई दिल्ली: बॉलीवुड के दिग्गज कॉमेडियन और फिल्म 'शोले' में सूरमा भोपाली के किरदार से मशहूर हुए जगदीप (Jagdeep) अब हमारे बीच नहीं रहे. बुधवार को उनका निधन हो गया. वह 81 वर्ष के थे. जगदीप ने अपना करियर 1951 में फिल्म 'अफसाना' से शुरू किया था. 29 मार्च 1939 में अमृतसर में जन्मे सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी उर्फ जगदीप ने करीब 400 फिल्मों में काम किया, लेकिन साल 1975 आई रमेश सिप्पी की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'शोले' से उन्हें विशेष पहचान मिली. 

अपने किरदार से लोगों को प्रभावित करने वाले जगदीप को लोग उनके रियल नाम से नहीं बल्कि रील नाम से ही जानते थे. उन्होंने 'पुराना मंदिर' में मच्‍छर, 'अंदाज अपना-अपना' में सलमान खान के पिता का यादगार किरदार निभाया. उनके परिवार में बेटे जावेद जाफरी और नावेद जाफरी हैं. जावेद अभिनेता और डांसर के तौर पर ख्यात हैं. जगदीप ने सिर्फ 'सूरमा भोपाली' ही नहीं बल्कि और भी कई किरदारों से लोगों के बीच अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं, तो आइए आज आपको हम बताते हैं उनके 10 किरदार यादगार के बारे में...

साल: 1953
फिल्म: दो बीघा जमीन
किरदार का नाम: लालू उस्ताद

साल:1954
फिल्म: आर पार
किरदार का नाम: इलाइची

साल: 1957
फिल्म: हम पंछी एक डाल के
किरदार का नाम: महमूद

साल: 1975
फिल्म: शोले
किरदार का नाम: सूरमा भोपाली

साल: 1984
फिल्म: पुराना मंदिर
किरदार का नाम: मच्छर सिंह

साल: 1988
फिल्म: सूरमा भोपाली
किरदार का नाम: सूरमा भोपाली

साल: 1989
फिल्म: निगाहें
किरदार का नाम: मुंशी जी

साल: 1994
फिल्म: अंदाज अपना अपना
किरदार का नाम: बांकेलाल भोपाली

साल: 1998
फिल्म: चाइना गेट
किरदार का नाम: सूबेदार रमैया

साल: 2007
फिल्म: बॉम्बे टू गोआ
किरदार का नाम: लतीफ खेड़का 

एक इंटरव्यू में उन्होंने जगदीप से 'सूरमा भोपाली' बनने का किस्सा बताया था, जो बेहद ही दिलचस्प था. उन्होंने बताया था कि जब वह सलीम और जावेद की फिल्म 'सरहदी लुटेरा' में एक कॉमेडियन के तौर पर काम कर रहे थे, तो उनके डायलॉग काफी बड़े थे और वह इस बात को लेकर सलीम के पास पहुंच गए. उन्होंने सलीम से कहा कि मेरे डायलॉग बहुत बड़े हैं, तो उन्होंने कहा जाओ जाकर जावेद को बताओ. फिर वह जावेद के पास पहुंचे और जावेद ने उनके डायलॉग को छोटा कर दिया. जावेद के इस काम से जगदीप काफी प्रभावित हुए और उन्होंने कहा, कमाल है यार, तुम तो बहुत अच्छे रायटर हो.

इसके बाद जगदीप और जावेद एक शाम साथ बैठे थे. किस्से, कहानियां और शायरियों का दौर चल रहा था, तभी जावेद ने कहा- 'क्या जाने, किधर कहां-कहां से आ जाते हैं'. तो जगदीप ने कहा ये क्या है और कहां से ले आए हो. इस पर जावेद ने कहा कि ये भोपाल का लहजा है. जगदीप ने पूछा कि यहां भोपाल से कौन है? मैंने तो ये लाइन किसी से नहीं सुनी, तो जावेद ने कहा कि ये भोपाल की औरतों का लहजा है, वे इसी लहजे में बात करती हैं. इस पर जगदीप ने जावेद से कहा कि मुझे ये भाषा सिखाओ. 

इसके 20 साल बाद फिल्म 'शोले' की शूटिंग चल रही थी और तभी जगदीप के पास रमेश सिप्पी का फोन आया कि उनके लिए इस फिल्म में एक रोल है और फिर यहीं से शुरू हुआ 'सूरमा भोपाली' का सिलसिला, और लोग जगदीप को उनके असली नाम से कम और 'सूरमा भोपाली' के नाम से ज्यादा जानने लगे. एक तरह से देखा जाए तो जगदीप ने इस किरदार से न सिर्फ अपनी पहचान बनाई बल्कि अपने इस किरदार से भोपाल शहर की बोली को भी देशभर में मशहूर कर दिया.     

एंटरटेनमेंट की और खबरें पढ़ें

Trending news