Dunki Film फिल्म रिलीज होते ही सोशल मीडिया पर गदर काट रही है. इतना ही नहीं लगातार ट्रेंड कर रही है. अगर आप भी 'डंकी' फिल्म देखने जा रहे हैं तो आप ये रिव्यू जरूर पढ़ लें. इस रिव्यू में आपको फिल्म की कहानी से लेकर क्लाइमेक्स और फिल्म के प्लस प्वाइंट से लेकर निगेटिव प्वाइंट तक सब कुछ बताया गया है.
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Movie Review Dunki: शाहरुख के फैंस ही कम नहीं, उस पर राजकुमार हिरानी की तो हर फिल्म मास्टरपीस होती आई है. लोगों को इस डबलडोज का इतना क्रेज था कि पहले शो में भी काफी भीड़ थी. लेकिन लोग सोचते रहे कि अब कोई बड़ा ट्विस्ट आएगा, अब कुछ दमदार होगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ, सिवाय क्लाइमेक्स में इमोशनल मैसेज देने के सिवा. मूवी में जो मिसिंग था वो था एंटरटेनमेंट. हालांकि विलेन भी मिसिंग ही है, सो कुछ एंटरटेनमेंट तो उसके ना होने से भी कम हो गया है.
राजकुमार हिरानी की चूक
फिल्म की कहानी की बात करें तो आप पाएंगे कि पहली बार राजकुमार हिरानी पर यहीं चूक हुई है. कुछ लोगों की ऐसी कहानियां जो कबूतरबाजी की या किसी भी तरह विदेश का वीजा पाने की, सालों से अखबारों में छपती रही हैं, यहां तक इस देश में कई मंदिरों को जाना ही वीजा की मन्नत पूरी करने के लिए है. शाहरुख एक ऐसे फौजी हार्डी के रोल में हैं, जो अपनी जान बचाने वाले एथलीट की बहन मनु (तापसी पन्नू) की गिरवी रखी कोठी को वापस दिलवाने में उसकी मदद करते हैं. वो और उसके दोस्त लंदन जाकर पैसा कमाना चाहते हैं, उनकी मदद के लिए गांव रुक जाते हैं और फिर रुक ही जाते हैं.. हमेशा के लिए.
25 साल का लीप दिमाग से परे
इसमें भी ट्विटस्ट है, एक कस्बे की कोठी कितनी मंहगी होगी, कितना कर्ज होगा कि शाहरुख अपना घर, जमीनें बेचकर उन सबको डंकी रूट (अवैध जमीनी मार्ग) से ले जाने के लिए दलालों को तो दे देते हैं, लेकिन उससे कर्ज चुकाने की नहीं सोचते. दर्शकों को पहला झटका ही वहां लगता है जब शाहरुख लंदन पहुंचते ही गिरफ्तार कर जबरन वापस भेज दिए जाते हैं. कहानी शुरू होने से पहले ही खत्म होने लगती है. जिस विकी कौशल और वमन ईरानी को बेहतरीन रोल दिए जा सकते थे, फिल्म में उनके किरदार ज्यादा असर नहीं छोड़ पाते. पहली बार लगा कि राजू हिरानी ने बोमन ईरानी को भी ढंग से इस्तेमाल ही नहीं किया. फिल्म का 25 साल की लीप भी लोगों की समझ नहीं आता.
कहीं नहीं ठहरती 'डंकी'
मुन्ना भाई, थ्री ईडियट्स, पीके, संजू जैसी हिरानी की बाकी फिल्मों के आगे ये फिल्म कहीं नहीं ठहरती. ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ के बाद हमेशा से अभिजात जोशी पर दांव लगाते आ रहे थे राजकुमार हीरानी, ‘फरारी की सवारी’ में वो नहीं थे और फिल्म ने पानी नहीं मांगा. इस बार भी अभिजात के साथ शाहरुख और तापसी की फेवरेट लेखिका कनिका ढिल्लन को जोड़ा गया और गड़बड़ हो गई. कनिका शाहरुख के साथ 'ओम शांति ओम', 'रा वन' और 'बिल्लू' में काम कर चुकी हैं, तो तापसी के साथ 'मनमर्जियां', 'हसीन दिलरुबा' और 'रश्मि रॉकेट' में. लेकिन यहां पंजाबी फ्लेवर देने में तो वो काम आईं, लेकिन फिल्म एंटरटेनमेंट के हिरानी की फिल्मों के स्तर पर पहुंचने में नाकाम रहीं.
खली एक की गैर मौजूदगी
‘डंकी’ में एक और चेहरा गायब है, जो राजकुमार हिरानी की फिल्मों का बेहद जरूरी हिस्सा होता था, और वो हैं विधु विनोद चोपड़ा. जो उनकी हर फिल्म के निर्माता होते थे. इस फिल्म के निर्माता गौरी खान के साथ खुद राजकुमार हिरानी हैं. जाहिर है विधु इतने कामयाब निर्देशक रहे हैं, जहां पैसा लगाते होंगे, वहां कुछ सलाहें भी देते होंगे, उनकी गैरमौजदूगी का फर्क भी मूवी पर पड़ा होगा.
फिल्म में संदेश नि:संदेह है. ‘मुन्ना भाई’ सीरीज में भी था, ‘पीके’ में भी था, ‘थ्री ईडियट्स’ में भी था ही, ऐसे में यहां भी होना ही था. लेकिन भरपूर एंटरटेनमेंट, फनी सींस और शानदार म्यूजिक भी था. दोनों ही मामलों में ‘डंकी’ में कोशिश तो की गई है, लेकिन वो कोशिशें रंग लाई नहीं हैं. भले ही ‘थ्री ईडियट्स’ में रणछोड़ दास चांचड़ के पिता और शरमन जोशी की मां का रोल करने वाले कलाकारों को इस मूवी में तापसी पन्नू के माता पिता का रोल दिया गया हो. लेकिन जैसा असर उन्होंने उसमें छोड़ा, इस मूवी में कहीं वो दिखता नहीं.
पकने से पहले ही रोल खत्म
विकी कौशल ने जरूर अपने रोल में पूरा घुसने की कोशिश की है, ऐसे में जब उनका रोल पक रहा होता है, उसे खत्म कर दिया जाता है. लगा था बोमन ईरानी के कोचिंग संचालक के किरदार में मजा आएगा, लेकिन वो भी छोटा था. हालांकि ‘पठान’ में विलेन बने सुनील ग्रोवर के भाई अनिल ग्रोवर को शाहरुख ने डंकी में अच्छा रोल दिया है, लम्बाई में तो विकी कौशल से भी बड़ा और उनकी एक्टिंग भी बेहतरीन है. हमेशा की तरह विक्रम कोचर ने भी शानदार एक्टिंग की है, और देखा जाए तो पूरी फिल्म के फन एलीमेंट की जिम्मेदारी उन्हीं के हिस्से आ गई है.
मिला बस ‘धोबी पछाड़ दांव’
कहीं कहीं लगता है ऐसे डायलॉग आएंगे, कुछ सीन आएंगे, जो पब्लिक खासतौर पर युवा कॉपी करेंगे, जैसे जादू की झप्पी, ऑल इस वैल आदि. लेकिन बदले में मिला बस ‘धोबी पछाड़ दांव’ और ‘हमार’ शब्द यानी गधा. एक जगह तापसी पन्नू एक इमोशनल डायलॉग बोलती हैं, ‘फौजी है.. अकेले में ही रोएगा’.. ऐसे डायलॉग कम ही थे. अंग्रेजी सीखने की ललक और भारतीय युवाओं की परेशानी में फन जरूर करने की कोशिश की है, लेकिन उससे बेहतर फिल्म ‘चुपके चुपके’ में धर्मेन्द्र ने अंग्रेजी पर ज्यादा बेहतर कटाक्ष किए थे. भारत पाक बॉर्डर के लिए जबलपुर का भेड़ा घाट फिल्माना भी अच्छा फैसला नहीं था, तमाम फिल्मों 'अशोका' से लेकर 'मोहनजोदाड़ों' तक लोगों ने उस जगह को अच्छे से मन में बैठा लिया है.
शाहरुख का दिखा बुढ़ापा
हाल ही में ‘पठान’ आई थी, शाहरुख जवान रोल में भले ही उतने अच्छे ना लग रह रहे हों, लेकिन उनका बुढापे का लुक उस मूवी में असरदार था. रजनीकांत की तरह स्टाइलो लग रहे थे. लेकिन ‘डंकी’ में तो ना जवान शाहरुख का लुक अच्छा था और ना बुढ़ापे का, क्लोज शॉट्स में उम्र उनके चेहरे से टपकती दिखती है, जबकि बूढ़े के रोल में ऐसा लगा मानो ‘भारत’ मूवी के सलमान को कॉपी कर रहे हों. अब डंकी के बाद उनको भी लगना तय है कि उन्होंने मुन्ना भाई और थ्री ईडियट्स के ऑफर ठुकराने नहीं चाहिए थे या इसको भी ठुकरा देना था.
म्यूजिक भी जमा नहीं
फिल्म का म्यूजिक कमजोर तो उतना नहीं लेकिन उसकी हिरानी की बाकी फिल्मों के मुकाबले कुछ भी नहीं. जबकि प्रीतम का म्यूजिक है, गाने लिखने के लिए इस मूवी में तमाम दिग्गजों जावेद अख्तर, इरशाद कामिल, स्वानंद किरकिरे, वरुण ग्रोवर, कुमार और अमिताभ भट्टाचार्य तक की सेवाएं ली गईं. दो गाने तो खुद अरिजीत सिंह ने गाए हैं, सोनू निगम, जावेद अली तक ने भी. लेकिन मामला वैसा जमा नहीं है.
अब भले ही फिल्म राजू हिरानी ने डायरेक्ट की हो लेकिन ये तय है कि अब ये मूवी शाहरुख की है, और उनका पूरा तंत्र, फैंस इस मूवी को सुपरहिट बनाने में जुट गया होगा. फिल्म की रिलीज से पहले ही 8 करोड़ के टिकट्स बिक गए थे. रिलीज से पहले कई शहरों में शाहरुख खान के फैंस ने जमकर पटाखे फोड़े हैं, लेकिन अब वो इस मूवी को कैसे बचा पाते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा. क्योंकि एक बड़ा सकारात्मक पहलू इस मूवी का ये है कि देश में तमाम शहर, गांव और परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने इस समस्या को झेला है. उनको पक्के तौर पर ये मूवी अपनी लगने वाली है.