AMU Minority Status: केंद्र सरकार ने तर्क दिया है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1967 के अजीज बाशा फैसले में सही निर्णय लिया था कि यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं मांग सकता है.
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Aligarh Muslim University Minority Status: क्या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) एक अल्पसंख्यक संस्थान है? सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार यानी 9 दिसंबर को एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर सुनवाई शुरू की. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) की तर्ज पर स्थापित एएमयू का चरित्र राष्ट्रीय है. इसे किसी भी धर्म या धार्मिक संप्रदाय की संस्था नहीं कहा जा सकता. केंद्र ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1967 के अजीज बाशा फैसले में सही निर्णय लिया था कि विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं मांग सकता है.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा?
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में लिखित दलीलों में कहा कि पिछली सरकार का रुख 1967 में अजीज बाशा मामले में पांच जजों की पीठ के फैसले के विपरीत था. सुप्रीम कोर्ट ने यह देखते हुए अजीज बाशा मामले में अल्पसंख्यक स्थिति के खिलाफ फैसला सुनाया था, क्योंकि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) न तो मुस्लिम अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित किया गया था और न ही प्रशासित किया गया था. बता दें कि साल 2016 में केंद्र सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जे के लिए अपना समर्थन वापस ले लिया था.
क्या है 1967 अजीज बाशा जजमेंट?
1967 के एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा पाने का हकदार नहीं है, क्योंकि यह न तो मुस्लिम अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित किया गया था और न ही प्रशासित किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि यूनिवर्सिटी को केंद्रीय विधायिका द्वारा अस्तित्व में लाया गया था, न कि मुस्लिम अल्पसंख्यक द्वारा लाया गया था.
क्या है पूरा विवाद?
साल 1967 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एएमयू की अल्पसंख्यक स्थिति के खिलाफ अजीज बाशा के मामले में फैसला सुनाया था. इसे पलटने के लिए केंद्र सरकार ने 1981 में एएमयू अधिनियम में संशोधन किया. हालांकि, साल 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र के संशोधनों को रद्द कर दिया और कहा कि अजीज पाशा मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है. इसके बाद एएमयू प्रशासन और कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. साल 2016 में बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह अपील वापस लेना चाहती है. साल 2019 में शैक्षणिक संस्थानों को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मापदंडों को परिभाषित करने के लिए इस मामले को 7 जजों की एक बड़ी पीठ के पास भेजा गया.
अल्पसंख्यक संस्थान घोषित होने से क्या होगा फायदा
अगर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अगर अल्पसंख्यक संस्थान घोषित किया जाता है तो एएमयू को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वगों के लिए सीटें आरक्षित करने की आवश्यकता नहीं होगी. लेकिन, एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा कई दशकों से कानूनी विवाद में फंसा है.
सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक दर्जे पर अब क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि कोई शिक्षण संस्थान किसी कानून द्वारा विनियमित है, महज इसलिए उसका अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा समाप्त नहीं हो जाता. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 30 का जिक्र किया जो शिक्षण संस्थानों की स्थापना और उनके संचालन के अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित है. कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 30 को प्रभावी बनाने के लिए किसी अल्पसंख्यक समूह को इस तरह के दर्जे का दावा करने के लिए स्वतंत्र प्रशासन की जरूरत नहीं है.
1857 में हुई थी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) भारत के प्रमुख केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है, जो उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में स्थित है. महान समाज सुधारक सर सैयद अहमद खान ने मुस्लिमों की आधुनिक शिक्षा की आवश्यकता को महसूस किया और 1875 में एक स्कूल शुरू किया, जो बाद में मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज बना. साल 1920 में यह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बना. साल 1921 में भारतीय संसद के एक अधिनियम के माध्यम से केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया.