SC-ST Sub Classification: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) इस मामले की सुनवाई कर रहा है कि क्या राज्य कोटा के अंदर कोटा (Quota) देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को उप-वर्गीकृत (Sub-Classified) कर सकते हैं?
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Quota within Quota News: संसद के बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने बुधवार को राज्यसभा में जातिगत आरक्षण को लेकर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की राय के बारे में बताया. पीएम मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्री को लिखे नेहरु के पत्र के एक हिस्से पढ़कर सुनाया. इसी दिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की सात सदस्यों वाली संविधान पीठ ने भी आरक्षण नीति (Reservation Policy) को लेकर बड़ा कमेंट किया.
कोटा के अंदर कोटा के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का उप-वर्गीकरण
क्या राज्य सरकार कोटा के अंदर कोटा देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को उप-वर्गीकृत (SC-ST Sub Classification) कर सकती है? इस सवाल से जुड़े 23 याचिकाओं की सुनवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने कहा कि वे (एससी/ एसटी) एक निश्चित उद्देश्य के लिए एक वर्ग हो सकते हैं, लेकिन वे सभी उद्देश्यों के लिए एक वर्ग नहीं हो सकते हैं. इसलिए आरक्षण नीति को स्थिर नहीं करना चाहिए. इसमें समय और जरूरत के हिसाब से परिवर्तन लाना चाहिए.
लोकसभा चुनाव से पहले संसद और सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण और कोटा पर चर्चा से देश में बहस
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में संविधान पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र मिश्रा शामिल हैं. पीठ ने कहा कि सभी अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) अपने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक स्तर के हिसाब से बराबर नहीं हो सकतीं.
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले संसद और सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण पर चर्चा ने देश भर में बहस छेड़ दी है. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि कोटा के अंदर कोटा की आरक्षण नीति और कोर्ट में चल रहा पूरा मामला क्या है?
क्या है आरक्षण के भीतर आरक्षण या कोटा के अंदर कोटा का मामला
संविधान में दिए गए आरक्षण के भीतर विभिन्न स्तरों पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और दूसरे वंचित समुदायों को समुचित प्रतिनिधित्व मिले. इसे ही आरक्षण के भीतर आरक्षण या कोटा के अंदर कोटा कहा जाता है. ओबीसी जातियों के वर्गीकरण के बहस को देखकर केंद्र सरकार द्वारा 2 अक्टूबर, 2017 को गठित जस्टिस जी रोहिणी आयोग ने अपनी 1000 पन्नों की रिपोर्ट सौंप दी है. वहीं, बीते साल संसद में महिला आरक्षण बिल पर चर्चा के दौरान भी विपक्ष के कई नेताओं ने कोटा के अंदर कोटा की मांग की थी. इसको लेकर कई राजनीतिक दलों और उनके नेताओं ने अपना पिछला रुख बदल लिया था.
दूसरी ओर, राज्यों ने केंद्र और सुप्रीम कोर्ट को कई बार बताया है कि अनुसूचित जातियों में कुछ अभी भी बेहद पिछड़ी हैं, जबकि उसी वर्ग की कुछ अन्य जातियां आगे बढ़ी हैं. दूसरे कई सरकारी और गैर सरकारी रिपोर्ट में भी अनुसूचित जातियों में असमानता की बात सामने आ चुकी है.
आंध्र प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु और पंजाब सरकार ने उठाए कानूनी कदम
कई राज्यों ने इसके लिए आरक्षण नीति में स्पेशल कोटा लागू कर इस समस्या का समाधान करने की कोशिश की थी. आंध्र प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु और बिहार ने महादलितों को लिए कोटा के अंदर कोटा दिया था. आंध्र प्रदेश सरकार ने जस्टिस रामचंद्र राजू की अनुशंसा के आधार पर 2000 में एक कानून बनाया और 57 अनुसूचित जातियों को उपवर्गों में बांटा और उसे शिक्षण संस्थानों में SC कोटा के भीतर 15 फीसदी कोटा दिया.
बिहार में साल 2007 में महादलित आयोग का गठन कर उसे अनुसूचित जातियों के भीतर पिछड़ी जातियों की पहचान की जिम्मेदारी दी थी. इसी तरह तमिलनाडु में अरुंधत्यार जाति को अनुसूचित जाति कोटा के भीतर तीन फीसदी कोटा दिया गया था. पंजाब में बाल्मिकी और मजहबी सिखों के लिए अनुसूचित जाति कोटा के भीतर आरक्षण की व्यवस्था है.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की सुनवाई में पंजाब सरकार की मुख्य अपील भी शामिल
सुप्रीम कोर्ट इन दिनों जिन 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, उसमें पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के 2010 के फैसले को चुनौती दे दी गई है. इसमें पंजाब सरकार की मुख्य अपील भी शामिल है. हाईकोर्ट ने साल 2010 में पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 की धारा 4(5) को रद्द कर दिया था. यह धारा सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए निर्धारित आरक्षण में 50 फीसदी सीटों पर ‘वाल्मीकि’ और ‘मजहबी सिख’ जातियों को पहली प्राथमिकता प्रदान करती थी.
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने 27 अगस्त, 2020 को चिन्नैया मामले में 2004 में पारित 5 जजों के फैसले से असहमति जताई थी. इसके बाद मामले को सुनवाई के लिए सात सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेज दिया था.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान क्या- क्या कहा
संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘इस अर्थ में एकरूपता है कि उनमें से प्रत्येक अनुसूचित जाति का है, लेकिन आपका तर्क यह है कि समाजशास्त्रीय प्रोफाइल, आर्थिक विकास, सामाजिक उन्नति या शैक्षणिक प्रगति के संदर्भ में भी कोई एकरूपता नहीं है.'' मंगलवार से शुरू सुनवाई के दूसरे दिन संविधान पीठ ने कहा, ‘पिछले व्यवसाय के संदर्भ में विविधता है, अनुसूचित जाति के अंदर विभिन्न जातियों के लिए सामाजिक स्थिति और दूसरे संकेतक अलग हो सकते हैं. इसलिए सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन की डिग्री एक व्यक्ति या जाति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न हो सकती है.’
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने किया आरक्षण में कोटा के अंदर कोटा का समर्थन
संविधान पीठ के सामने केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों के संविधान पीठ के 2004 के फैसले के निष्कर्षों का विरोध किया. एसजी मेहता ने कहा कि यह राज्य को आरक्षण के क्षेत्र को उचित रूप से उप-वर्गीकृत करके उचित नीति तैयार करने से रोकता है और अवसर की समानता की संवैधानिक गारंटी को कम करता है. उन्होंने कोटा के भीतर कोटा का समर्थन करते हुए संविधान पीठ से यह भी कहा कि केंद्र सरकार सैकड़ों वर्षों से भेदभाव झेल रहे लोगों को समानता दिलाने के लिए सकारात्मक कार्रवाई के उपाय के रूप में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की घोषित नीति के लिए प्रतिबद्ध है.
लोकसभा चुनाव 2024 में मुद्दा बन सकता है कोटा के अंदर कोटा, पीएम मोदी ने दिए संकेत
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2023 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की मडिगा समुदाय के लिए अनुसूचित जाति आरक्षण में उप वर्गीकरण की प्रक्रिया में एक समिति के गठन में तेजी लाने का निर्देश दिया था. अनुसूचित जाति आरक्षण के वर्गीकरण की मांग को उचित बताते हुए उन्होंने कैबिनेट सचिव राजीव गौबा और दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों को इस कार्य में तेजी लाने कहा था. अब संसद में उन्होंने आरक्षण को लेकर पंडित नेहरू से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और अध्यक्ष मलल्किार्जुन खरगे तक को कठघरे में खड़ा कर जता दिया है कि लोकसभा चुनाव 2024 में यह बड़ा मुद्दा बन सकता है.