Explainer: अमेरिका का तो दुश्मन, लेकिन भारत-रूस के लिए क्यों जरूरी है ईरान
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Explainer: अमेरिका का तो दुश्मन, लेकिन भारत-रूस के लिए क्यों जरूरी है ईरान

Iran News: ये बात तो सही है कि ईरान का वैश्विक राजनीति में एक जटिल स्थान है. एक तरफ, यह अमेरिका का कट्टर प्रतिद्वंद्वी है, जिसके साथ परमाणु हथियारों और क्षेत्रीय प्रभाव को लेकर तनावपूर्ण संबंध हैं. दूसरी तरफ, यह भारत और रूस के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है.

Explainer: अमेरिका का तो दुश्मन, लेकिन भारत-रूस के लिए क्यों जरूरी है ईरान

India Iran Russia America: इस समय पूरी दुनिया में ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मौत चर्चा में है. इस मौत को लेकर कई कयास और कई थ्योरीज चल रही हैं. कोई इसके लिए अमेरिका और इजरायल को जिम्मेदार ठहरा रहा है तो कोई इसे ईरान की घरेलू राजनीति बता रहा है. इसी कड़ी में इब्राहिम रईसी के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए दुनियाभर के नेता तेहरान पहुंच रहे हैं. भारत से भी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ वहां जा रहे हैं तो रूस के राष्ट्रपति पुतिन वहां पहुंचने वाले हैं. रईसी को 23 मई को ईरान के मशहद शहर में दफनाया जाएगा. अमेरिका ने इस मौत पर तल्ख टिप्पणी की है. अमेरिका के ईरान से कभी अच्छे संबंध नहीं रहे हैं. लेकिन ईरान के संबंध भारत और रूस से अच्छे रहे हैं.

इसे समझने की जरूरत है कि कैसे भारत ने ईरान से अपने संबंधों का संतुलन बनाकर रखा है. यह बात भी सही है कि ईरान एक जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य वाला देश है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोधाभासी रिश्तों का केंद्र बिंदु बना हुआ है. अमेरिका के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद, भारत और रूस के साथ ईरान के रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण संबंध बने हुए हैं. पहले अमेरिका और ईरान के संबंधों पर नजर मार लेते हैं.

अमेरिका-ईरान संबंधों में तनाव:

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका और ईरान के बीच दशकों से तनावपूर्ण संबंध रहे हैं. अमेरिका ईरान पर परमाणु हथियार विकसित करने का आरोप लगाता है, जबकि ईरान इन आरोपों को सिरे से खारिज करता रहा है. 2015 में, दोनों देशों ने एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के बदले में अमेरिकी प्रतिबंधों से राहत प्राप्त की.

असल में अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम से नाराज रहता है. वह ईरान को खतरा मानता है. अमेरिका ने यहां तक कि ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं, जिससे ईरान को भारी नुकसान हुआ है. दोनों के बीच क्षेत्रीय मुद्दों, मानवाधिकारों और लोकतंत्र को लेकर भी मतभेद हैं.

इसके बाद 2018 में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने संयुक्त व्यापक कार्यक्रम योजना (JCPOA) से हटने का फैसला किया, जिससे अमेरिकी प्रतिबंध फिर से लागू हो गए. इसने ईरान और अमेरिका के बीच तनाव को और बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप 2020 में अमेरिकी सेना द्वारा ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या हुई और ईरान की तरफ से इराकी सैन्य ठिकानों पर बैलिस्टिक मिसाइल हमले किए गए.

भारत-ईरान संबंध: ऐतिहासिक और मजबूत

वहीं भारत और ईरान के बीच संबंध मजबूत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों पर आधारित हैं. व्यापार, ऊर्जा, रणनीति और संस्कृति सहित कई क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण सहयोग है.  हालांकि, अमेरिकी प्रतिबंध और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे चुनौतियाँ भी पेश करते हैं.  इन चुनौतियों का सामना करते हुए, दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत और पारस्परिक रूप से लाभकारी बने रहने की संभावना है.

भारत ईरान से कच्चे तेल का एक प्रमुख आयातक है और दोनों देशों के बीच चाबहार पोर्ट परियोजना सहित कई ऊर्जा सहयोग परियोजनाएं चल रही हैं. यहां तक कि भारत ने तो ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों का विरोध किया है और JCPOA को बहाल करने की वकालत की है.

चाबहार पोर्ट: भारत-ईरान के संबंधों का स्वर्णिम नमूना, रईसी की प्रमुख भूमिका रही

ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित गहरे पानी के चाबहार पोर्ट पर भारी मालवाहक जहाज आसानी ने आ-जा सकते हैं. इससे भारत, ईरान, अफगानिस्तान और यूरेशिया आपस में जुड़ेंगे.चाबहार के लिए हुए इस समझौते को भारत का चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का जवाब माना जा रहा है. ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी मौत से चंद दिन पहले ही भारत को यह तोहफा देकर गए. उन्होंने भारत को चाबहार पोर्ट के रूप में बड़ा तोहफा दिया था. 13 मई को डील का आधिकारिक तौर पर ऐलान किया गया था.

चाबहार पोर्ट भारत के लिए काफी अहम है, क्योंकि इससे अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधी पहुंच हो जाएगी. पहले भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया में व्यापार करने के लिए पाकिस्तान पर निर्भर रहना पड़ता था. चाबहार के जरिए भारत को मिडिल ईस्ट देशों के साथ व्यापार बढ़ाने का मौका मिलेगा और यह डील 10 सालों तक वैलिड रहेगी. यह पहला मौका है जब भारत ने विदेश में स्थित किसी बंदरहाग का मैनेजमेंट अपने हाथ में लिया है. 

शानदार रहा है भारत-ईरान का संबंध 

यहां यह समझना जरूरी है कि ईरान की इस मुश्किल घड़ी में भारत उसके साथ है. पीएम मोदी ने रईसी की मौत का दुख जताया और उपराष्ट्रपति धनखड़ अब उनके अंतिम संस्कार में जा रहे हैं. राष्ट्रीय शोक भी घोषित हुआ है. पूरी दुनिया जानती है कि ईरान के चाबहार पोर्ट से भारत के कई हित जुड़े हुए हैं. रईसी ही भारत को चाबहार सौंपने के सूत्रधार थे. पिछले कई सालों के उतार-चढ़ाव के बावजूद भी भारत और ईरान ने सूझबूझ का परिचय दिया. यहां तक कि कश्मीर मसले पर भी ईरान ने संतुलित तरीके से भारतीय रूख का ही समर्थन किया.

रूस-ईरान संबंध:

उधर रूस और ईरान के बीच भी रणनीतिक साझेदारी है. दोनों देश सीरिया में गृहयुद्ध में सहयोगी रहे हैं और ऊर्जा क्षेत्र में भी उनके बीच घनिष्ठ संबंध हैं. रूस ने ईरान को परमाणु तकनीक प्रदान की है और अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने में ईरान की मदद की है. यूक्रेन में युद्ध के बाद, रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूस-ईरान संबंध और भी मजबूत हुए हैं.

संबंधों की अपनी जटिलताएं भी

कुलमिलाकर ईरान वैश्विक राजनीति में एक जटिल भूमिका निभाता है. अमेरिका के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद, भारत और रूस के साथ ईरान के रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण संबंध बने हुए हैं. लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ईरान के साथ भारत और रूस के संबंधों की अपनी जटिलताएं हैं. भारत को अमेरिका के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने और ईरान से अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की आवश्यकता है. 

फिलहाल पुतिन की ईरान यात्रा बड़ा संदेश

रूस को ईरान के साथ अपने संबंधों को मजबूत करते रहना होगा, लेकिन उसे पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को भी बनाए रखना होगा. यही कमोबेश भारत के साथ भी है. अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंतित है, इसे परमाणु हथियारों के विकास का खतरा मानता है. अमेरिका ने ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं, जिससे ईरानी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है. दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय मुद्दों, मानवाधिकारों और लोकतंत्र को लेकर भी गहरे मतभेद हैं.

क्योंकि अमेरिका समेत पश्चिमी देश ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंतित है, इसे परमाणु हथियारों के विकास का खतरा मानता है. अमेरिका ने तो ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं, जिससे ईरानी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है. दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय मुद्दों, मानवाधिकारों और लोकतंत्र को लेकर भी गहरे मतभेद हैं. फिलहाल पुतिन की ईरान यात्रा काफी कुछ संदेश दे रही है

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