चोरी नहीं रोक पाए पुरुष तो महिलाओं ने थामा मोर्चा, अब जल सहेलियां बचा रहीं 8 गांवों का पानी
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चोरी नहीं रोक पाए पुरुष तो महिलाओं ने थामा मोर्चा, अब जल सहेलियां बचा रहीं 8 गांवों का पानी

Jaisalmer News: राजस्थान में गर्मी की शुरुआत हो चुकी है और वहां पानी की भी समस्या बढ़ने लगी है. पानी बचाना उनकी रेगुलर लाइफ का हिस्सा है. राज्य के सबसे सूखे इलाकों में से एक जैसलमेर का एक गांव पानी के लिए बूंद-बूंद तरसता है. 

 

चोरी नहीं रोक पाए पुरुष तो महिलाओं ने थामा मोर्चा, अब जल सहेलियां बचा रहीं 8 गांवों का पानी

Rajasthan News: राजस्थान में गर्मी की शुरुआत हो चुकी है और वहां पानी की भी समस्या बढ़ने लगी है. पानी बचाना उनकी रेगुलर लाइफ का हिस्सा है. राज्य के सबसे सूखे इलाकों में से एक जैसलमेर का एक गांव पानी के लिए बूंद-बूंद तरसता है. हालांकि, यहां पर पानी बचाने के लिए एक महिलाओं की टीम तैयार की गई है जिन्हें 'जल सहेलियां' के नाम से जाना जाता है. दैनिक भास्कर में छपी खबर के मुताबिक, इस गांव का नाम है अड़बाला और यहां पर सिर्फ एक ही तालाब है जिसे लोग सांवराई कहते हैं. इस तालाब के जरिए एक-दो नहीं बल्कि 8 गांव के 11 हजार लोग अपनी प्यास बुझाते हैं.

रिजॉर्ट के लोग भी टैंकर में भरते थे पानी

जैसलमेर घूमने के लिए हर साल हजारों टूरिस्ट आते हैं और हैरानी वाली बात यह है कि यहां के रिजॉर्ट भी इसी पानी के बलबूते चल रहे हैं. अब गांव वालों के लिए यह मुसीबत बन गई है तो वह अपने लोगों को इसी तालाब का पानी देते हैं, जबकि टूरिस्ट भी इसी तालाब का पानी यूज करते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, दस सालों से यहां के रिजॉर्ट इसी पानी के जरिए अपना जीवनयापन कर रहे हैं. आने वाले टूरिस्ट को पीने का पानी देते-देते पानी की ही कमी हो गई.

गर्मी की शुरुआत होते ही पानी के लिए झगड़ा

गर्मी की शुरुआत होते ही पानी के लिए झगड़ा शुरू हो जाता है. गांव वालों को पानी के लिए डेढ़ हजार रुपए टैंकर देना पड़ता है. इतना ही नहीं, गांव के पुरुषों ने प्यास बुझाने के लिए पानी की चोरी रोकने की कोशिश की, लेकिन कुछ खास फायदा नहीं हुआ. साल 2022 में गांव की महिलाएं आगे आईं और पानी बचाने की मुहीम में जुट गईं. पानी को बचाने के लिए 25 महिलाओं ने गुट बनाया और फिर चोरी को रोकने की कोशिश की और इसमें वह सफल रहीं. जोधपुर का उन्नति संगठन इस मुहीम से जुड़ा और सफलता मिली. तालाब सूखने के बाद जल सहेलियां इसमें अपना हाथ बंटाती हैं और मार्च महीने से ही सफाई शुरू कर दी जाती है.

जल सहेलियों की मदद से पानी को बचाना हुआ संभव

यहां मौजूद जल सहेलियों में से एक कमला देवी ने भास्कर को बताया, "बारिश के बाद 40-45 दिन के भीतर ही तालाब खाली हो जाता है. पानी भरने के लिए आने वाले टैंकर्स को रोका और उसमें से वापस पानी तालाब में भरवाया. इतना ही नहीं, हमने रिजॉर्ट के मालिकों से बात की और पानी की जरूरत को समझाया. फिर उन्होंने बात मानी और टैंकर्स आना रुक गया." उनका कहना है कि तालाब की देखरेख के लिए जल सहेलियों में से कुछ महिलाएं तालाब की पहरेदारी करने के लिए रात को भी रुकती हैं. इसके लिए कई नियम भी लागू किए गए और तोड़ने पर 1000 का जुर्माना भी रखा. बताया जा रहा है कि जल सहेलियों ने अपनी शुरुआत सिर्फ 5 लोगों ने मिलकर किया था. 

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