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नई दिल्ली: आज हम आपको अनाथ बच्चों (Children Orphaned Due To Corona) के दर्द के बारे में नहीं बताएंगे. आज हम अनाथ बच्चों का हाथ थामने वाली कुछ ऐसी सामाजिक कहानियों के बारे में बताएंगे, जो लोगों को प्रेरित करेंगी. मंगलवार को रात 9 बजे महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी (Smriti Irani) ने अनाथ बच्चों से जुड़ा ट्वीट किया था. उन्होंने कहा था कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, एक अप्रैल से अब तक देश में 577 बच्चे अनाथ हो गए.
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने ये भी कहा कि केंद्र सरकार हर उस बच्चे के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है, जिनके माता-पिता कोरोना की वजह से अब इस दुनिया में नहीं हैं. सरकार अपने स्तर पर क्या कर रही है और किस राज्य की सरकार ने अनाथ बच्चों के लिए क्या किया है यहां जानिए.
सोसायटी, मोहल्ला या गांव में अगर कोई बच्चा अनाथ है तो उस सोसायटी को, RWA को, संबंधित मोहल्ले और गांव को आगे आना चाहिए. बिना किसी शर्त के कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए उस बच्चे को गोद लेना चाहिए.
माता-पिता अपने बच्चे का बड़े अरमान के साथ बड़े स्कूल में एडमिशन कराते हैं. इसके लिए ट्यूशन फीस के नाम पर मोटी रकम देते हैं. लेकिन कोविड काल में किसी बच्चे के माता-पिता का निधन हो गया तो क्या स्कूल की जिम्मेदारी नहीं बनती कि अपने छात्र के माता-पिता की कमी पूरी करे. हमें लगता है कि स्कूल को भी अनाथ बच्चों की फीस माफ कर देनी चाहिए.
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किसी बच्चे के माता, पिता या दोनों जिस कंपनी में काम करते थे यानी निधन के वक्त वो जिस कंपनी से जुड़े थे, उस कंपनी की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि उस बच्चे को पैसे की कमी न पड़ने दें. उसे आर्थिक मदद दें.
अगर आपके रहते किसी अनाथ बच्चे को सहारा नहीं मिलता, उसके सपने पूरे नहीं होते, उसे सही शिक्षा, सही चिकित्सा, राशन-पानी और रहने की जगह नहीं मिल पाती तो फिर एक सामाजिक संगठन के रूप में आप मृत समान हैं. इसलिए अनाथ बच्चों की सुविधाओं का ख्याल रखना आपका भी सामाजिक दायित्व है.
केंद्र हो या राज्य सरकार हो, सभी सरकारों को अनाथ बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और रहने-खाने के प्रबंध से लेकर हर महीने आर्थिक मदद की गारंटी देनी होगी. कई राज्यों ने इसके लिए ऐलान भी किए हैं लेकिन ये ऐलान सिर्फ ऐलान बनकर ही न रह जाएं. लालफीताशाही से बाहर निकलकर जल्द से जल्द इन बच्चों की मदद करनी होगी.
महाराष्ट्र के धुले से प्राजक्ता की कहानी सामने आई है. प्राजक्ता बारहवीं कक्षा में पढ़ती हैं और उनका छोटा भाई सातवीं में पढ़ता है. धुले में मामा के पास रह रहे दोनों भाई-बहन के सिर से मां-बाप का साया उठ चुका है. एक महीने के अंदर इन बच्चों ने पहले अपने पिता को और फिर अपनी मां को कोरोना की वजह से खो दिया.
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प्राजक्ता ने बताया कि कोरोना की वजह से मेरे माता-पिता दोनों की मृत्यु हो चुकी है. हम अनाथ हो चुके हैं. उन पर बहुत सारा कर्जा है. हम कैसे चुका पाएंगे. सरकार से इतनी विनती है कि जितनी हो सके हमें उनसे उतनी मदद चाहिए.
बता दें कि प्राजक्ता के पिता गोकुल पर 13 लाख रुपये का कर्ज था. पिता का कर्ज कैसे चुकाएं, ये सवाल प्राजक्ता को सोने नहीं देता. इसकी विनती का असर सरकार पर कब होगा ये तो नहीं पता लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र चितोड़कर इनकी मदद के लिए आगे आए. उन्होंने WhatsApp के माध्यम से ग्रुप बनाकर 12 लाख रुपये इन अनाथ बच्चों के लिए इकट्ठा किए.
जाने लें कि महाराष्ट्र सरकार अनाथ बच्चों के लिए टास्क फोर्स बना रही है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना की वजह से महाराष्ट्र में 108 बच्चों ने माता-पिता दोनों को खो दिया है, जबकि 87 बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने मां या पिता में से किसी एक को खोया है.
वहीं यूपी में गाजियाबाद की क्रॉसिंग रिपब्लिक सोसायटी में दो मासूम बहनों का अपना कोई नहीं बचा. 11 दिन के अंदर दादा-दादी, मम्मी-पापा सभी चल बसे. संक्रमण इस परिवार पर पड़ा. दुनिया में इनका कोई नहीं है. 6 साल और 8 साल की बच्चियां ही बची हैं. पंचशील वेलिंगटन में टावर-2 के फ्लैट नंबर 205 में दुर्गेश प्रसाद धर परिवार के साथ रहते थे. वो रिटायर्ड शिक्षक थे. पहले उन्हें कोरोना हुआ, फिर पत्नी, बेटे और बहू को. अभी भी इन दोनों बहनों को नहीं पता है कि उनके पिता नहीं रहे.
एक चश्मदीद ने बताया कि बड़ी बच्ची छोटी बच्ची को बता रही थी कि हमारे पापा 8-10 दिन में ठीक हो जाएंगे और अपने घर चलेंगे. बुआ ने कहा थोड़ा टाइम लग जाएगा तो बच्ची ने कहा कि आप हमें उनसे मिलाइए. बच्चियों का दर्द बहुत बुरा है. प्रशासन की ओर से कोई पहल नहीं हुई है.
सोसायटी के लोगों का कहना है कि वो इन बच्चियों का खर्चा 18 साल तक उठाने के लिए तैयार हैं. लेकिन शर्त के साथ. शर्त बस ये है कि कोई फैमिली मेंबर यहां निस्वार्थ भाव से रहे. जो बच्चे अपने माता-पिता के निधन के बारे में भी नहीं जानते वो अपनी सोसायटी की शर्त के बारे में क्या समझेंगी. खैर अभी ये बच्चियां बुआ के पास बरेली में हैं.
उत्तर प्रदेश में ही एक जिला है गाजीपुर. यहां के शेरपुर गांव में बेहद गरीब परिवार के 4 बच्चे अनाथ हो चुके हैं. इन चार भाई-बहनों में विशाल सबसे बड़ा है. वह नौवीं कक्षा में पढ़ता है. विशाल ने बताया कि एक साल पहले बाइक एक्सीडेंट में मां चल बसी और अब कोरोना से पिता. गाजीपुर से मऊ तक कई अस्पतालों का दरवाजा खटखटाया लेकिन पिता को इलाज नहीं मिला.
इन चारों भाई-बहनों की मदद के लिए अब तक पंचायत से लेकर जिला और राज्य स्तर पर कोई आगे नहीं आया है. उम्मीद है इस खबर को देखने के बाद शायद मदद के लिए प्रशासन से लेकर स्थानीय लोग आगे आएं क्योंकि अनाथ का साथ निभाना, उनकी उंगली थामना, एक इंसान और जिम्मेदार समाज के तौर पर हमारी जिम्मेदारी बनती है. जैसे जौनपुर की सोनम के लिए समाजसेवी अरविंद सिंह ने किया.
अरविंद सिंह ने बताया कि हमने सोनम की खबर देखी. वह मेरे गांव की है. इसकी पढ़ाई लिखाई, रहना-खाना और शादी-विवाह का जिम्मा हमने ले लिया है. सोनम जायसवाल के पिता की मौत 18 साल पहले हो गई थी. मां मेहनत-मजदूरी करके बेटी को पढ़ा रही थी. बेटी की पढ़ाई के लिए मां ने दुकान भी शुरू की थी लेकिन कोरोना संक्रमित होने के बाद मां का निधन हो गया और सोनम अनाथ हो गई. लेकिन अरविंद सिंह ने इसके माथे पर अपना हाथ रख दिया.
हमारा मानना है कि इंसान के रहते इंसान अनाथ नहीं हो सकता. और ये संभव तभी है जब अनाथ बच्चों का साथ निभाया जाए. कुछ ऐसे भी मामले हैं जहां रिश्तेदारों ने ही अनाथ बच्चों को गोद लिया. कर्नाटक के मांड्या में एक नवजात के सिर से माता-पिता का साया छिन गया. वो मासूम अपने जन्म के सिर्फ 5 दिन बाद ही अनाथ हो गई.
ये नन्ही परी सिर्फ 16 दिन की है. ठीक से आंखें भी नहीं खुल रहीं इसकी. माता-पिता की सालों की मन्नतों और प्रतीक्षा के बाद इस बच्ची का जन्म हुआ. लेकिन इस बच्ची को अपनी गोद में उठाने के लिए, सीने से लगाने के लिए इसके माता-पिता नहीं हैं. पिता की मौत बच्ची के जन्म से 5 दिन पहले हुई थी और मां की मौत बच्ची के जन्म से पांच दिन बाद. दोनों कोविड पॉजिटिव थे. जानकारी मिल रही है कि इस बच्ची को मामा ने गोद लिया है. ये कहानी कर्नाटक के मांड्या जिले की है.
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