Bal Thackeray: बाला साहेब होते तो आग लगा देते... 'सामना' ने क्यों लिखा ऐसा, PM मोदी ने भी किया याद
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Bal Thackeray: बाला साहेब होते तो आग लगा देते... 'सामना' ने क्यों लिखा ऐसा, PM मोदी ने भी किया याद

Balasaheb Thackeray Birth Anniversary: कल अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन हुआ और आज बाला साहेब की जयंती है. उनकी पार्टी और प्रशंसक अपने नेता को याद कर रहे हैं. पीएम मोदी ने ट्वीट कर बड़ी बात कही. उधर Saamna के संपादकीय में लिखा गया कि बालासाहेब कल श्रीराम मंदिर से फूलों की वर्षा किए होंगे. 

Bal Thackeray: बाला साहेब होते तो आग लगा देते... 'सामना' ने क्यों लिखा ऐसा, PM मोदी ने भी किया याद

Balasaheb Thackeray Jayanti: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे को याद करते हुए कहा कि अपने नेतृत्व, आदर्शों के प्रति अडिग समर्पण और गरीबों- दलितों के लिए बोलने की प्रतिबद्धता के कारण आज भी वह लोगों के दिलों पर राज करते हैं. मोदी ने ठाकरे की जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ‘एक्स’ पर लिखा, ‘बाला साहेब ठाकरे जी को उनकी जयंती पर याद कर रहा हूं. वह एक बड़ी शख्सियत थे जिनका महाराष्ट्र के राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर प्रभाव अद्वितीय है.’ ठाकरे का जन्म 23 जनवरी 1926 को हुआ था. उन्होंने 1966 में शिवसेना की स्थापना की. 

उधर, शिवसेना (उद्धव गुट) के मुखपत्र 'सामना' ने अपने संपादकीय में राम मंदिर निर्माण में बालासाहेब ठाकरे के योगदान को याद किया है. कहा गया कि बीजेपी का नेतृत्व इसके लिए आभारी नहीं है... लेकिन बाला साहेब ने स्वर्ग से अयोध्या के श्रीराम पर फूलों की वर्षा की होगी. मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए लिखा कि आज देश का राममय हो जाना भी एक राजनीतिक रचना का हिस्सा है, लेकिन क्या देश में रामराज्य आ गया है? श्रीराम को तो घर मिल गया, लेकिन देश के लाखों लोग बेघर और भूखे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या जाकर श्रीराम के लिए उपवास किया, लेकिन क्या वे देश के करोड़ों लोगों की भूख मिटाने के लिए उपवास करने जा रहे हैं? 

आगे पढ़िए संपादकीय का अंश

'सारा देश राममय हो गया है और आज हिंदू हृदय सम्राट शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे का जन्मदिन मनाया जा रहा है. यह मंगल योग है. प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह अयोध्या में संपन्न हुआ. श्रीराम का जन्म अयोध्या में ही हुआ और अयोध्या राम की ही है, ऐसा दृढ़ता से कहने वाले और उसके लिए उठे आंदोलन में संघर्ष करने वाले नेताओं में शिवसेना प्रमुख का नाम सबसे ऊपर है. हालांकि, भारतीय जनता पार्टी का वर्तमान नेतृत्व इसके लिए आभारी नहीं है, लेकिन भगवान राम ने 22 जनवरी को मंदिर में प्रवेश करने का जो संकल्प लिया, वह शिवसेना प्रमुख के जन्मदिन की पूर्व संध्या रही. यह संयोगों का अद्भुत संगम है. अयोध्या के श्रीराम पर स्वर्गस्थ शिवसेना प्रमुख ने फूलों की वर्षा की होगी. 

'राम के नाम पर मोदी-मोदी'

भाजपा का अयोध्या उत्सव का मकसद देश को राम के नाम पर सिर्फ ‘मोदी-मोदी’ कराना होगा और इस पाखंड को बेनकाब करने के लिए आज शिवसेना प्रमुख की ही जरूरत थी. शिवसेना प्रमुख का अस्तित्व सत्य और नैतिकता की राजनीति की ताकत थी. आज हमारे देश से सत्य और नैतिकता समाप्त हो चुकी है और देशभक्ति के गोवर्धन को अपनी उंगली पर धारण करने के लिए शिवसेना प्रमुख नहीं हैं, लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद भी महाराष्ट्र मुगलों से लड़ता रहा और अंतत: औरंगजेब को इसी मिट्टी में दफना दिया. शिवसेना प्रमुख के महानिर्वाण के बाद भी महाराष्ट्र अब भी लड़ रहा है और महाराष्ट्र को तोड़ने वाले नए मुगलों को इसी मिट्टी में दफनाए बिना चैन से नहीं रहेगा. शिवसेना प्रमुख कोई पदवी या उपाधि नहीं थी, बल्कि एक तेजस्वी वलय था.

गद्दार गुलामों के हाथ...

सत्ता से ज्यादा संगठन की मजबूती कितनी महत्वपूर्ण है और संगठन में काम करने वाले शिवसैनिकों की निष्ठा और त्याग कितना महत्वपूर्ण है, यह उन्होंने देश को बता दिया. उनके एक इशारे पर लाखों निष्ठावानों का सागर उमड़ पड़ता था और इससे देश की राजनीतिक दिशा बदल जाती थी. ये इतिहास कभी नहीं मिट सकता है. ‘शिवसेना प्रमुख’ इस पद की शिवसेना को मोदी-शाह की भारतीय जनता पार्टी ने अब महाराष्ट्र के गद्दार गुलामों के हाथ सौंप दिया है. सत्ता के क्षणिक टुकड़ों के लिए जैसे ‘मां’ का सौदा किया जाए, वैसे शिवसेना का सौदा जिन लोगों ने किया, उनके हाथों अयोध्या में राम की प्राण प्रतिष्ठा हुई. यह ठीक नहीं. शिवसेना महाराष्ट्र की ही नहीं, हिंदुत्व का पंचप्राण है. उन प्राणों की गरिमा को जिन्होंने ठेस पहुंचाई, उनका भविष्य अंधकारमय ही है.

गुजरात लॉबी ने शिवसेना को तोड़ा

बालासाहेब ठाकरे ने महाराष्ट्र की रक्षा और मराठी अस्मिता की रक्षा के लिए शिवसेना बनाई, लेकिन महाराष्ट्र की लूट बिना रोक-टोक के की जा सके, इसलिए बालासाहेब की शिवसेना को गुजरात लॉबी ने तोड़ दिया, लेकिन क्या शिवसेना खत्म हो गई? वह महाराष्ट्र के कण-कण में है, मन मन में है. श्रीराम के हाथ में आज धनुष-बाण है. कल राम के ही हाथों में मशाल आएगी. उस मशाल की उज्ज्वल रोशनी में भगवान राम शिवसेना की नियति और राह को रोशन करेंगे. 

गांधी की तरह...

बालासाहेब ठाकरे इसी भूतल पर जन्मे एक असामान्य व्यक्तित्व थे. अल्बर्ट आइंस्टीन ने महात्मा गांधी के बारे में जो कहा था, वही हमें बालासाहेब ठाकरे के बारे में अलग शब्दों में कहना होगा. गांधी को संबोधित करते हुए आइंस्टीन ने कहा, ‘आने वाली पीढ़ियां शायद ही विश्वास करेंगी कि सचमुच ही हाड़-मांस का ऐसा कोई व्यक्ति (गांधी) वास्तव में कभी इस धरती पर आया था.’ शिवसेना प्रमुख गांधी के कई विचारों और रुख से सहमत नहीं थे. वे लोकतंत्र की बजाय शिवराया की शिवशाही में विश्वास रखने वाले थे. 'ऑन द स्पॉट न्याय' उनकी राजनीति का सूत्र था. कई दफा उन्होंने विधायक तानाशाही का समर्थन किया लेकिन वह सिर्फ लोगों को न्याय दिलाने के लिए ही. ‘करता हूं, देखता हूं, देखूंगा, कल आओ’ इस तरह के प्रशासकीय शब्दों पर लालफीताशाही की रस्सियां जकड़ी हुई थीं. उन्हें तोड़कर जनता को न्याय देने के लिए उन्हें शिवशाही का प्रशासन चाहिए था.

बालासाहेब अपने विरोधियों की आलोचना के सदैव धनी थे. वही उनकी रईसी थी. लाखों लोग उनकी जय जयकार करते थे. यही उनकी पूंजी थी. उन्होंने कारखाने, उद्योग नहीं बनाए; लेकिन उन्होंने मुंबई और महाराष्ट्र के उद्योगों की रक्षा करके लाखों-करोड़ों मराठी युवाओं को उनके हक का रोजगार दिलाया. मराठी लोगों का चूल्हा लगातार जलाए रखा इसीलिए आने वाली पीढ़ियों को यह मानना होगा कि गांधी जैसा ही हाड़-मांस का बाल केशव ठाकरे नामक इंसान महाराष्ट्र में था. 

शिवाजी न होते तो...

अगर छत्रपति शिवाजी महाराज न होते तो हिंदुओं का खतना कर दिया गया होता. काशी-मथुरा मस्जिदों में तब्दील हो जाती. अगर शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे न होते तो मराठी मानुष हमेशा के लिए गुलाम हो गया होता. मुंबई महाराष्ट्र से अलग हो गई होती. महाराष्ट्र का स्वाभिमान मिट्टी में मिल गया होता. 

महाराष्ट्र आज भी दिल्ली की नई मुगलशाही के खिलाफ लड़ रहा है तो सिर्फ बालासाहेब ठाकरे की प्रेरणा के कारण ही! आज सभी राष्ट्रीय संस्थाएं, न्यायालय, संविधान के चौकीदार, चुनाव आयोग, राजभवन सरकार के हाथों की कठपुतली बनकर कठपुतलियों की तरह नाच रहे हैं. देश ईरान के खुमैनी की तरह धर्मांधता और उन्माद की ओर बढ़ रहा है. राष्ट्रवाद की परिभाषाएं बदल गई हैं. पाकिस्तान के साथ-साथ चीन भी दुश्मन बनकर छाती पर चढ़ बैठा है. 

हिंदुत्व मतलब धर्मांधता नहीं

हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे का मानना था कि हिंदुत्व का मतलब खुमैनी छाप धर्मांधता नहीं, परंतु यदि देश को ‘राममय’ बनाते समय उस हिंदुत्व में धर्मांधता की अफीम मिला दी जाए तो यह महान भारत देश फिर से जंगल युग में चला जाएगा. देश को जंगल बनते देखना दुर्भाग्यपूर्ण है. अगर आज बालासाहेब ठाकरे होते तो उन्होंने उस जंगल को ही जला दिया होता. फिर भी बालासाहेब के विचारों की चिंगारियां जंगल राज्य में उड़ रही हैं. ये चिंगारी जंगलराज को सुलगा देगी! बालासाहेब ठाकरे के विचारों की चिंगारियां अंगारे ही हैं. वे कैसे बुझेंगी?

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