Lankini of Lanka Ravan Dahan: रावण को वरदान देते समय एक अप्सरा छिप कर बातें सुन रही थीं. ब्रह्मा जी ने उसे राक्षसी होने का श्राप दिया था.
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पटनाः Lankini of Lanka Ravan Dahan: विजयादशमी के दिन रावण का दहन किया जाता है. आज ही के दिन रामलीलाओं के मंचन का आखिरी दिन होता है. इसके बाद रावण का दहन करके दशहरा मनाया जाता है. रावण के दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक तौर पर देखा जाता है. रावण ने अपनी तपस्या से बहुत कुछ अर्जित किया था. उसने कई बार शिव जी और ब्रह्नदेव को प्रसन्न किया था. रावण की लंका भी अद्भुद थी. इस लंका की सुरक्षा की जिम्नेदारी लंकिनी नाम की एक यक्षिणी की थी. लंकिनी कैसे बनीं लंका की पहरेदार, जानिए ये कथा.
अप्सरा ने छिपकर सुना वरदान
रावण से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे नाभि में अमृत होने का वरदान दिया. इसके अलावा वह रावण की इच्छा से उसे यह वरदान दे रहे थे कि वह किन-किन लोगों से अवध्य रहेगा. ठीक इसी समय ब्रह्मा जी की दृष्टी एक अप्सरा पर पड़ी जो पास में छुपके अपना कान लगा कर सुन रही थी कि ब्रह्मदेव रावण को क्या वरदान दे रहे हैं. ब्रह्मा जी समझ गये कि ये कौन है और किसने इसे भेजा है. अप्सरा घबराते हुए ब्रह्मा जी को प्रणाम करती है, लेकिन उसका इस तरह छुप कर देखना ब्रह्मा जी को अच्छा नहीं लगा, उन्होंने सिर्फ उस अप्सरा को इतना ही कहा ‘’जब तुमने छुप के सुन ही लिया है तो इतना और भी सुन लो कि, जिस दिन किसी वानर का जोरदार मुक्का तुम्हारे इसी कान पर पड़ेगा, उस दिन समझ लेना रावण और राक्षसों का अंत आ गया”
रावण ने अप्सरा को पकड़ा
इतना कहकर ब्रह्मा जी चले गये. उनका इतना कहना और क्रोध करके देखना अप्सरा के लिए भारी पड़ गया और वह अर्ध राक्षसी में बदल गई. इसके बाद अप्सरा चुपके से भागने वाली थी कि रावण ने उसे पकड़ लिया और बोला कौन हो, यहां क्या कर रही हो? उसने बताया कि यूं ही ब्रह्मदेव क्या कह रहे हैं, वो देखने आई थी. रावण समझ गया कि देवताओं की चाल है, इसलिये उसने उस अप्सरा को कहा तुम्हें बहुत ज्यादा कान लगा के सुनने की आदत है इसलिये अब मेरे साथ चलो. अब लंका के द्वार पर रहना, वहां कोई घुसे तब कान लगा के सुनना और रखवाली करना. रावण ने उसे लंकिनी नाम से मुख्य द्वार पर रखवाली के लिये रख दिया.
कई जगहों पर ऐसी भी है कथा
कई जगह पर वर्णन है कि लंकिनी को रावण ने नहीं, बल्कि पार्वती जी ने रखा था. असल में लंका पार्वती जी की इच्छा पर शिवजी के ही आदेश से बनाई गई थी. लेकिन इसे रावण के पिता ऋषि विश्रवा ने दान में मांग लिया था. इसलिए शिव-पार्वती को सारा वैभव छोड़कर वापस कैलाश पर आना पड़ा था. देवी पार्वती ने ही लंका की सुरक्षा पर अपनी योगमाया से एक यक्षिणी को प्रकट किया था. इस तरह वह देवी का ही स्वरूप थीं और उनके ही आदेश पर लंका की रक्षा कर रही थीं. शिव-पार्वती के लंका छोड़कर जाने के बाद भी लंकिनी लंका की सुरक्षा करती रही थीं. कई स्थानों पर लंकिनी को देवी निकुंभला का ही आशीर्वाद माना जाता है. लंका की सुरक्षा उनके ही आशीर्वाद से थी.
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