Lok Sabha Election 2024: नीतीश कुमार कह रहे हैं कि कांग्रेस इंडिया गठबंधन को लेकर इंटरेस्टेड नहीं है. अखिलेश यादव कांग्रेस से नाराज हैं. शरद पवार की पार्टी एक है या दो, अभी तक क्लीयर नहीं हो पाया है. वहीं उदयनिधि स्टालिन के सनातन पर दिए बयान से इंडिया एलायंस में विरोधाभास है.
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Lok Sabha Election 2024: इस साल अप्रैल और मई में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने जोर शोर से इंडिया गठबंधन (I.N.D.I.A Alliance) के लिए पैरवी की थी. पहले तेजस्वी यादव (Deputy CM Tejashwi Yadav) के साथ दिल्ली गए और वहां मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Khadge) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के साथ मीटिंग की. उसके बाद बंगाल दौरे पर गए और ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) से बात की. ममता बनर्जी से बात करने के बाद उसी दिन वे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से भी मिलने पहुंच गए थे. नीतीश कुमार ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर भी गए लेकिन वहां उनको निराशा ही हाथ लगी. फिर नीतीश कुमार मुंबई गए और शरद पवार के अलावा उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) से मिले. नीतीश कुमार ने ही इंडिया गठबंधन को एक आकार देने का काम किया पर लगता है कि अब वे थोड़े निराश हो गए हैं. नीतीश कुमार ने गुरुवार को कहा, इंडिया गठबंधन में अब कांग्रेस का कोई इंटरेस्ट नहीं रह गया है. वे अभी 5 राज्यों के चुनाव में व्यस्त हैं. चुनाव बाद एक बार फिर सबको बुलाया जाएगा.
नीतीश कुमार का यह बयान अनायास ही नहीं है. बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के बयानों से नीतीश कुमार लगातार असहज हो रहे हैं. अखिलेश प्रसाद सिंह कभी 11 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की बात करते हैं तो कभी वे मंत्रिमंडल में कांग्रेस की हिस्सेदारी की मांग करते हैं. इसको लेकर वे तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार से मिल भी चुके हैं. इससे पहले जब पटना में इडिया गठबंधन की पहली बैठक हुई थी, तब राहुल गांधी ने नीतीश मंत्रिमंडल में कांग्रेस की उचित भागीदारी की पैरवी की थी. तब लगा था कि कांग्रेस आलाकमान के प्रेशर में नीतीश कुमार तुरंत मंत्रिमंडल विस्तार करेंगे. नीतीश कुमार ने जीतनराम मांझी के बेटे संतोष सुमन के रिप्लेसमेंट के रूप में रत्नेश सदा को मंत्री बनाकर मंत्रिमंडल विस्तार किया पर कांग्रेस को हिस्सेदारी नहीं दी. कांग्रेस को यह बात अब भी कचोट रही है.
यही नहीं, बिहार में जातीय जनगणना करवाकर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस इस मुद्दे को पूरे देश में उठाने को लेकर व्यग्र है. ऐसे में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव को लग रहा है कि कांग्रेस उनके किए कराए की क्रेडिट लेने जा रही है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो पीएम मोदी को पत्र लिखकर पूरे देश में जातीय जनगणना कराए जाने की मांग तेज कर दी है. इसके अलावा राहुल गांधी अलग अलग प्रेस वार्ता में जातीय जनगणना की मांग को बुलंद कर रहे हैं. नीतीश कुमार को डर है कि कांग्रेस अगर जातीय जनगणना के मसले को भुनाती है तो इससे उनकी मेहनत पर पानी फिर जाएगा.
इससे पहले समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस नेताओं के बीच जबर्दस्त वाकयुद्ध चला था, जब मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सपा को भाव नहीं दिया था. कांग्रेस के इस रवैये से समाजवादी पार्टी खासी नाराज हो गई थी और बात इंडिया एलायंस से अलग होने को लेकर भी होने लगी. समाजवादी पार्टी के नेताओं के खिलाफ उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने भी बयानबाजी तेज कर दी. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के एक बयान को लेकर भी अखिलेश यादव की नाराजगी साफ देखी गई.
दूसरी ओर, अजय राय का आजम खान से मिलने जाना भी सपा को अखर गया. समाजवादी पार्टी ने इसे मुस्लिम वोटों में बंटवारे की कोशिश के रूप में देखा और कांग्रेस को जवाब देते हुए सपा की ओर से कहा गया— कांग्रेसी नेता उस समय कहां थे, जब आजम खान के पूरे परिवार को तबाह करने की कोशिश की जा रही थी. फिलहाल समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में शीतयुद्ध चल रहा है. देखना यह है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद यह कितना गंभीर असर दिखाएगा.
नीतीश कुमार और अखिलेश यादव के बाद बात करते हैं दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दिल्ली के शराब घोटाले में बुरी तरह घिरी हुई है. उसके तमाम बड़े नेता जेल में हैं और कोर्ट से भी उन्हें कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है. सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज की और 338 करोड़ के मनी ट्रेल की बात कही, उससे लग रहा है कि आम आदमी पार्टी की मुश्किलें अभी कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. आज ही 2 नवंबर को ईडी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पूछताछ के लिए समन किया था लेकिन पहले से तय कार्यक्रम में व्यस्त होने के कारण गुरुवार को वे पेश नहीं हो रहे हैं. अरविंद केजरीवाल अगर ईडी के शिकंजे में फंसे तो इसका असर भी इंडिया गठबंधन पर पड़ सकता है.
इंडिया के सामने मुश्किलें यही खत्म नहीं हो रही हैं. महाराष्ट्र को लेकर सबसे बड़ा पेंच फंसा हुआ है. शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को लेकर अभी कुछ भी साफ नहीं हो पाया है. पार्टी के विभाजन पर निर्वाचन आयोग ने अब तक कोई फैसला नहीं हुआ है. उधर, शरद पवार जिस तरह से 2 कदम आगे और 1 कदम पीछे की राजनीति करते हैं, उससे भी इंडिया गठबंधन अनिश्चितता की स्थिति में है. अजित पवार के मंत्री बनने के बाद वे कई बार शरद पवार के साथ मिल चुके हैं. शरद पवार इसे केवल पारिवारिक मुलाकात बताते हैं लेकिन इंडिया गठबंधन के घटक दलों की मांग है कि शरद पवार को इस बारे में खुलकर बात करनी चाहिए और अजित पवार से मिलने से परहेज करना चाहिए.
कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि जिस जोर शोर से इंडिया गठबंधन शुरू हुआ था और एक के बाद एक कई बैठकें आयोजित की गई थी, उसके बाद से और अब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका है. यह अलग बात है कि 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों को देखते हुए अभी गठबंधन को लेकर बैठक नहीं की जा सकती, क्योंकि कई पार्टियां चुनावों में व्यस्त हैं, लेकिन इन्हीं पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में ही इंडिया गठबंधन का लिटमस टेस्ट भी होना है. सपा और कांग्रेस का वाकयुद्ध किस चरम तक जाएगा, अभी कहा नहीं जा सकता. इसी तरह नीतीश कुमार के इस बयान के क्या मायने हैं कि कांग्रेस इंटेरेस्टेड नहीं है. 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम भी इंडिया गठबंधन के भविष्य पर गहरा असर डालने वाले हैं, इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए.