सरेंडर करेंगे या इन कानूनी विकल्पों का करेंगे इस्तेमाल? बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों के पास अभी भी है बचने का रास्ता!
Advertisement
trendingNow12049820

सरेंडर करेंगे या इन कानूनी विकल्पों का करेंगे इस्तेमाल? बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों के पास अभी भी है बचने का रास्ता!

2002 Gujarat Riots: सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि एक राज्य जिसमें किसी अपराधी पर केस चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वही दोषियों की माफी याचिका पर फैसला लेने में सक्षम होता है. दोषियों पर महाराष्ट्र में मुकदमा चलाया गया था.

सरेंडर करेंगे या इन कानूनी विकल्पों का करेंगे इस्तेमाल? बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों के पास अभी भी है बचने का रास्ता!

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2002 के गुजरात दंगों में बिलकिस बानो से गैंगरेप और उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या मामले में सोमवार को अहम फैसला सुनाया.  कोर्ट ने 11 दोषियों को सजा से छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले को यह कहकर रद्द कर दिया कि आदेश घिसा पिटा था और इसे बिना सोचे-समझे पारित किया गया था. जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भूइयां की बेंच ने दोषियों को 2 सप्ताह के अंदर जेल अधिकारियों के सामने सरेंडर करने को कहा है. सजा में छूट को चुनौती देने वाली PIL को सुनवाई योग्य करार देते हुए बेंच ने कहा कि गुजरात सरकार सजा में छूट का आदेश देने के लिए उचित सरकार नहीं है. 

लेकिन अब दोषियों के पास क्या रास्ते हैं, क्या कानूनी विकल्प हैं; आइए आपको बताते हैं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में सभी 11 दोषी फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दाखिल कर सकते हैं. इसके अलावा कुछ वक्त जेल में काटने के बाद वह माफी की अर्जी भी दे सकते हैं. लेकिन महाराष्ट्र सरकार से इसके लिए अपील करनी होगी. 

अनुच्छेद 137 देता है अधिकार

अगर कोई भी शख्स सुप्रीम कोर्ट के किसी पुराने फैसले या आदेश की समीक्षा चाहता है तो संविधान का अनुच्छेद 137 उसे इसका अधिकार देता है. सुप्रीम कोर्ट के नियमों के मुताबिक, 30 दिनों के अंदर एक रिव्यू पिटीशन दाखिल करनी होती है. जिस बेंच ने वह आदेश या फैसला सुनाया था, उसके ही सामने समीक्षा की मांग की अर्जी रखी जानी चाहिए.
 
किन आधारों पर डाली जा सकती है समीक्षा याचिका

  • अगर कोई सबूत या नई जानकारी  पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने पेश नहीं की गई. लेकिन यह कोर्ट ही तय करेगा कि वह जानकारी पेश करने लायक है भी या नहीं.

  • अगर फैसला सुनाने में ही कोर्ट से कोई गलती हुई हो या फिर कोई अन्य वजह हो, जो कोर्ट के मुताबिक सही बैठे. 

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि एक राज्य जिसमें किसी अपराधी पर केस चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वही दोषियों की माफी याचिका पर फैसला लेने में सक्षम होता है. दोषियों पर महाराष्ट्र में मुकदमा चलाया गया था. अपने 100 पन्ने के फैसले में बेंच ने कहा, 'हमें बाकी मुद्दों को देखने की जरूरत ही नहीं है. कानून के राज का उल्लंघन हुआ है क्योंकि गुजरात सरकार ने उन अधिकारों का इस्तेमाल किया जो उसके पास नहीं थे और उसने अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल किया. उस आधार पर भी सजा से माफी के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए.'

क्या है बिलकिस बानो केस

दरअसल गोधरा में 2002 में ट्रेन अग्निकांड के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगों के दौरान बिलकीस बानो 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं. उनके साथ गैंगरेप किया गया था और उनकी तीन साल की बेटी समेत परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी गई थी. गुजरात सरकार ने इस मामले के सभी 11 दोषियों को सजा में छूट देकर 15 अगस्त, 2022 को रिहा कर दिया था. सजा में दी गई इसी छूट को सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को रद्द कर दिया और दोषियों को दो हफ्ते के भीतर जेल अधिकारियों के सामने सरेंडर करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार को छूट का आदेश पारित करने का अधिकार नहीं था.

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news