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नई दिल्ली: नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को आपने टीवी चैनलों पर अक्सर ये कहते हुए सुना होगा कि 'ठोको ताली' और इसके बाद ताली ठोक भी दी जाती थी, लेकिन इस बार पंजाब की राजनीति से कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) को आउट करके, सिद्धु खुद हिट विकेट हो गए हैं. उन्होने कैप्टन अमरिंदर सिंह की विकेट तो गिरा दी, लेकिन फिर खुद अपनी विकेट भी नहीं बचा पाए.
नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) ने पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. जब सिद्धू क्रिकेट खेलते थे तब भी साल 1996 में टीम में अपने कप्तान से मतभेद होने के बाद वो इंग्लैंड दौरा ऐसे ही बीच में छोड़कर भारत वापस आ गए थे. शायद इसीलिए कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) ने उनके बारे में कहा था कि सिद्धू एक स्थिर व्यक्ति नहीं हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक बार फिर से अपनी इस बात को दोहराया है.
नवजोत सिंह सिद्धू अक्सर कहते हैं चक दे फट्टे नप दे किल्ली, लेकिन उनके हिट विकेट (Hit Wicket) होने से पहले ही अमरिंदर सिंह आ गए दिल्ली और कांग्रेस की एक बार फिर से उड़ गई खिल्ली. सिद्धू के समर्थन में अब तक चार नेता इस्तीफा दे चुके हैं, जिनमें कैबिनेट मंत्री रजिया सुल्ताना भी हैं. सिद्धू ने अपने इस्तीफे में लिखा है कि वो समझौतों की राजनीति नहीं कर सकते, इसलिए वो अध्यक्ष पद छोड़ रहे हैं, लेकिन हमें पता चला है कि सिद्धू ने इस्तीफा इसलिए दिया, क्योंकि मुख्यमंत्री बदलने पर भी सरकार में उनकी एक नहीं चल रही थी. वो सबसे ज्यादा नाराज, पंजाब के नए डीजीपी और एडवोकेट जनरल की नियुक्ति से थे.
दरअसल, नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) डीएस पटवालिया को नया एडवोकेट जनरल बनाना चाहते थे, लेकिन मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने एपीएस देओल को इस पद पर नियुक्त कर दिया, जो पंजाब के पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह सैनी का कोर्ट में केस लड़ रहे हैं. सैनी पर ये आरोप है कि उनके डीजीपी रहते हुए 2015 में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के बाद हुई हिंसा में दो लोग मारे गए थे. अब विवाद इस बात पर है कि एपीएस देओल पंजाब के एडवोकेट जनरल तो बन गए, लेकिन वो कोर्ट में लंबित इस मामले में सरकार की तरफ से पेश ही नहीं हो सकते, जिसकी वजह से चन्नी और सिद्धू के बीच विवाद बढ़ गया. और सिद्धू को भी ये पता चल गया कि चन्नी अपने फैसले खुद ले रहे हैं.
हमें ये भी पता चला है कि सिद्धू, इकबाल प्रीत सिंह सहोता को पंजाब का नया डीजीपी बनाने से नाराज थे, क्योंकि उनकी नियुक्ति में भी चन्नी ने सिद्धू से कोई सलाह मशवरा नहीं किया. नाराजगी की एक और वजह नई सरकार का मंत्रिमंडल भी है. नई सरकार में राणा गुरजीत सिंह और गुरकीरत सिंह कोटली को मंत्री बनाया गया है, जिनके बारे में ये कहा जाता है कि वो कैप्टन अमरिंदर सिंह के खेमे में हैं. राणा गुरजीत सिंह तो कैप्टन सरकार में मंत्री भी थे, लेकिन 2018 में भ्रष्टाचार के एक मामले में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था, लेकिन चन्नी ने उन्हें फिर से मंत्री बना दिया. चन्नी ने मंत्रियों के बीच विभागों के बंटवारे का फैसला भी खुद लिया, जिससे सिद्धू नाखुश थे और जब उन्हें लगा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने के बाद भी सरकार का रिमोट कंट्रोल उनके हाथ में नहीं आया है तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
कुल मिलाकर नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) चाहते थे कि पंजाब में राजनीति का मैदान उनके हिसाब से सजाया जाए. यानी फील्ड उनके हिसाब से सेट की जाए, लेकिन पंजाब के नए मुख्यमंत्री ने सारी फील्ड प्लेसमेंट अपने हिसाब से की और सिद्धू को खुलकर खेलने का मौका ही नहीं मिला. और इसी कोशिश में वो आज हिट विकेट हो गए.
इस सियासी उथल-पुथल के बीच पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी दिल्ली पहुंच गए, जहां उन्हें लेकर ऐसी खबरें उड़ी कि वो बीजेपी के नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं और कांग्रेस पार्टी छोड़ सकते हैं, लेकिन अमरिंदर सिंह ने कहा कि वो दिल्ली में कपूरथला हाउस से अपना सामान लेने आए हैं, जो दिल्ली में पंजाब के मुख्यमंत्री का आवास है. हालांकि मुख्यमंत्री चन्नी ने कहा है कि उन्हें सिद्धू पर पूरा भरोसा है और वो बातचीत से विवाद को सुलझा लेंगे.
इस बीच सुखबीर सिंह बादल के उस बयान की भी काफी चर्चा हो रही है, जिसमें उन्होंने सिद्धू को एक ऐसी मिस गाइडेड मिसाइल (Misguided Missile) बताया था और कहा था कि उनका कंट्रोल किसी के पास नहीं है और वो कहीं भी किसी को भी हिट उड़ा सकते हैं. कुल मिलाकर नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) शुरू से एक बेलगाम मिसाइल की तरह रहे हैं. जब वो क्रिकेट खेलते थे तो टीम में अपने कप्तान की नहीं सुनते थे और खुद ही कप्तान बनना चाहते थे. फिर कमेंटेटेर के तौर पर उन्होंने टीवी चैनलों में अपनी किस्मत आजमाई और उसमें भी वो हर शो में दूसरे कमेंटेटर्स (Commentators) पर हावी रहना चाहते थे. वो बातें तो बड़ी बड़ी करते थे, लेकिन उनकी Delivery कुछ नहीं थी. TV चैनलों पर तो ये सब चल जाता है, लेकिन असल जिंदगी में आपको खुद को साबित करना पड़ता है, Deliver करना पड़ता है और सिद्धू इसमें बुरी तरह से असफल रहे हैं.
इसके बाद वो राजनीति में आए और वहां भी वो अपने कप्तान की बात नहीं सुनना चाहते थे. पहले वो बीजेपी में शामिल हुए और उन्होंने कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. राहुल गांधी को पप्पू के तौर पर लोकप्रिय करने वाले सिद्धू ही थे. फिर वो कांग्रेस में शामिल हुए और उन्होंने बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी का मजाक बनाना शुरू कर दिया. इसके बाद उन्होंने भारत की बजाय पाकिस्तान की टीम के लिए खेलना शुरू कर दिया. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और पाकिस्तान के अध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा से उनके करीबी संबंध सबने देखे. जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस पर आपत्ती की. तो सिद्धू ने उनके खिलाफ ही बगावत कर दी.
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