क्या जय प्रकाश नारायण बन सकते थे देश के दूसरे पीएम? ठुकराया था नेहरू का ये प्रस्ताव
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क्या जय प्रकाश नारायण बन सकते थे देश के दूसरे पीएम? ठुकराया था नेहरू का ये प्रस्ताव

Jayaprakash Narayan Birth Anniversary: जब जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था तब उन्हें तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का तीसरा मौका मिला था.

जय प्रकाश नारायण.

नई दिल्ली: क्या जय प्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) के बाद देश के दूसरे प्रधानमंत्री (Second Prime Minister Of India) बन सकते थे? 11 अक्टूबर 1902 को उनका जन्म उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बलिया में हुआ था और वर्ष 1974 में उन्होंने ही सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा दिया था. हालांकि बहुत कम लोग जानते हैं कि उनके जीवन में तीन बार ऐसे मौके आए जब वो देश के प्रधानमंत्री बन सकते थे.

  1. पीएम की रेस में सबसे आगे था जे. पी. का नाम
  2. जे. पी. के पीएम बनने का नहीं करेंगे विरोध- शास्त्री
  3. मोरारजी देसाई ने जे. पी. को नहीं दिया सम्मान

जे. पी. को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करना चाहते थे नेहरू

वर्ष 1952 में देश के पहले लोक सभा चुनाव के बाद जवाहर लाल नेहरू नई सरकार के गठन की तैयारी कर रहे थे और वो अपनी टीम में एक ऐसा सदस्य चाहते थे, जो प्रधानमंत्री रहते हुए उनके गलत फैसलों और नीतियों की आलोचना करने में जरा भी ना डरे और इस रोल के लिए जे. पी. सबसे फिट नेता थे.

नेहरू ने सोचा कि वो जे. पी. को बुला कर उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने का प्रस्ताव देंगे तो जे. पी. इसे खुशी-खुशी स्वीकार कर लेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 1952 में जब दोनों नेताओं की मुलाकात हुई तो वहां नेहरू के एक रिश्तेदार ब्रज कुमार नेहरू भी थे, जो अपने संस्मरण में लिखते हैं कि नेहरू ने जे. पी. से कहा कि उनके मंत्रिमंडल में जो नेता हैं वो या तो उनसे डरते हैं या वो उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित हैं, इसलिए गलत फैसले लेने पर भी कोई उनके खिलाफ नहीं जाएगा. लेकिन अगर जे. पी. उनके साथ होंगे तो वो उन्हें कोई भी गलत फैसला लेने से 10 बार रोकेंगे.

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जे. पी. ने ठुकराया नेहरू का प्रस्ताव

ये बात सुन कर जे. पी. हैरान तो हुए लेकिन फिर भी उन्होंने मंत्रिमंडल का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया. कहा जाता है कि नेहरू ने उन्हें उप प्रधानमंत्री बनाने का भी प्रस्ताव दिया और कई दिनों तक उन्हें फोन भी किए.

वर्ष 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद भी जे. पी. का नाम प्रधानमंत्री बनने की रेस में सबसे आगे था. लाल बहादुर शास्त्री ने खुद कहा था कि अगर जे. पी. प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं तो वो उनका विरोध नहीं करेंगे. लेकिन जे. पी. इस बार भी नहीं माने.

पद की राजनीति से दूर रहे जय प्रकाश नारायण

वर्ष 1966 में जब रहस्यमयी तरीके से लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हो गई, तब भी देश में जे. पी. को प्रधानमंत्री बनाने की मांग उठी. अगर जे. पी. उस समय प्रधानमंत्री बन जाते तो इंदिरा गांधी को कई वर्षों तक प्रधानमंत्री बनने के लिए इंतजार करना पड़ता. लेकिन जे. पी. ने हर बार की तरह इस बार भी पद की राजनीति को खुद से दूर रखा.

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तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का मौका उन्हें तब मिला, जब उन्होंने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ बड़ा आन्दोलन शुरू किया, जिसे इतिहास की किताबों में जे. पी. आन्दोलन के तौर पर याद किया जाता है. Emergency हटने के बाद जब 1977 में देश में लोक सभा चुनाव हुए और पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ, तब भी वो चाहते तो देश के प्रधानमंत्री बन सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा ना करके मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बना दिया.

हालांकि यहां एक तथ्य ये भी है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोरारजी देसाई ने जे. पी. को कभी वो सम्मान नहीं दिया, जिसके वो हकदार थे. उन दिनों मोरारजी देसाई से कोई ये कहता था कि वो जे. पी. से मिल क्यों नहीं लेते तो मोरारजी देसाई का जवाब ये होता था कि क्या जे. पी. कोई गांधी हैं जो वो उनसे जाकर मिलेंगे. हालांकि सच ये है कि आज लोग मोरारजी देसाई को याद नहीं करते लेकिन जे. पी. को सब याद करते हैं.

जे. पी. उस दौर के नेता थे, जब देश में Twitter, Facebook और Instagram जैसे सोशल मीडिया Platforms नहीं थे. और भीड़ जुटाना बड़ा मुश्किल काम होता था. लेकिन जे. पी. की एक अपील पर लाखों लोग सारे कामकाज छोड़ कर सड़कों पर उतर आते थे. 1977 में जब दिल्ली के रामलीला मैदान में जे. पी. की महारैली होने वाली थी. तब लोगों को इस रैली में जाने से रोकने के लिए इंदिरा गांधी ने दूरदर्शन पर उस समय की Superhit फिल्म बॉबी का प्रसारण करवा दिया था. ये फिल्म 1973 में रिलीज हुई थी.

उनकी पढ़ाई से जुड़ा भी एक किस्सा है. वर्ष 1922 में जब वो Berkeley University में Sociology की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका के California पहुंचे, तब उन्हें अपनी पढ़ाई के खर्च के लिए कई छोटे-मोटे काम करने पड़े. कभी उन्होंने अंगूरों के खेतों में काम किया, कभी होटलों में झूठे बर्तन धोए तो कभी गाड़ियों के Mechanic के तौर पर काम किया.

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