तालिबान ने अफगानिस्तान (Afghanistan) में महिलाओं के खेलों पर रोक लगा दी है. अब उसे जवाब देने के लिए क्रिकेट वाली कूट'नीति' को अपनाने का वक्त आ गया है.
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नई दिल्ली: दुनिया में एक तस्वीर वायरल हो रही है. इनमें एक तरफ अफगानिस्तान (Afghanistan) की एक महिला है, जो बुर्के में है. इस महिला का न नाम पता है और ना ही इसका चेहरा देखा जा सकता है.
तालिबान भी यही चाहता है कि इस महिला की तरह अफगानिस्तान (Afghanistan) की पौने दो करोड़ महिलाओं को दुनिया में कोई नहीं जाने और न ही उनकी कोई पहचान हो. बुर्के में ढकी इस महिला ने कई सपने देखे होंगे लेकिन तालिबान (Taliban) ने अब कह दिया है कि उसकी जैसी महिलाओं को अफगानिस्तान में कुछ भी सोचने और करने की इजाजत नहीं है.
इसी तस्वीर में दूसरी ओर ब्रिटेन की 18 साल की Tennis खिलाड़ी Emma है. जो 1977 के बाद US Open के फाइनल में पहुंचने वाली ब्रिटेन की पहली टेनिस प्लेयर बनी है. ये दोनों इसी दुनिया में ही पैदा हुई हैं. इनमें से एक बिना बुर्के के अपने घर से बाहर भी नहीं निकल सकतीऔर दूसरी अपनी जिन्दगी को जी भर कर जी रही है और अपने सपनों को भी पूरा कर रही है.
तालिबान (Taliban) ने महिला खेलों पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है. अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan)के संस्कृति विभाग के डिप्टी हेड अहमदुल्ला वासिक का कहना है कि इस्लाम के मुताबिक महिलाओं के लिए सिर, चेहरे और शरीर को ढकना अनिवार्य है. क्रिकेट या दूसरे खेलों में महिला खिलाड़ी ऐसा नहीं करती हैं. इसलिए अब अफगानिस्तान में महिलाओं को कोई भी खेल खेलने की इजाज़त नहीं होगी.
तालिबान का ये फ़ैसला दुनिया की हर उस महिला के साथ एक भद्दा मज़ाक है. जो ये सोचती है कि वो भी अपने देश के लिए खेल सकती है.
तालिबान (Taliban) के इस फ़ैसले के बाद ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट बोर्ड ने अफगानिस्तान (Afghanistan) की पुरुष क्रिकेट टीम के साथ खेलने से इनकार कर दिया है. दरअसल इसी साल अफगानिस्तान की पुरुष क्रिकेट टीम को टेस्ट मैच श्रृंखला के लिए ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर जाना था. अब ये दौरा रद्द हो सकता है.
Australia ने कहा है कि वो तब तक अफगानिस्तान (Afghanistan) के साथ क्रिकेट खेलने के बारे में नहीं सोच सकता, जब तक वहां महिलाओं को खेलने की इजाज़त नहीं मिलती. अब भारत समेत दुनिया के तमाम क्रिकेट खेलने वाले देशों की बारी है कि वो भी अफ़ग़ानिस्तान का बहिष्कार कर दें.
वैसे तो ये फैसला International Cricket Council को लेना चाहिए था. हैरानी की बात है कि वो अब तक इस मुद्दे पर केवल चिंता ही जाहिर कर पाया है. ये स्थिति तब है, जब अफगानिस्तान महिला क्रिकेट (Afghanistan Women Cricket Team) की केवल 3 खिलाड़ी ही कनाडा भागने में कामयाब रही हैं. बाकी महिला खिलाड़ी अब भी अफगानिस्तान में है और तालिबान उन्हें कभी भी क्रिकेट खेलने की सज़ा दे सकता है.
पिछले दिनों जब काबुल एयरपोर्ट पर हज़ारों अफगान नागरिक जमा थे तो Professional Footballers की एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था अफगानिस्तान की 77 महिला Footballers को रेस्क्यू कर ऑस्ट्रेलिया ले गई थी. हालांकि ICC ने अफगानिस्तान की महिला क्रिकेटर्स को बचाने के लिए कुछ नहीं किया. ICC का ये रुख भी तब है, जब ICC के ही नियम कहते हैं कि अगर किसी देश के पास उसकी महिला क्रिकेट टीम नहीं है तो उस देश को ICC का Full Time Member नहीं माना जाएगा.
इन नियमों के मुताबिक उसी देश को ICC का स्थाई सदस्य माना जाएगा, जिसकी महिला क्रिकेट टीम पिछले चार वर्षों में ICC World Cup या T20 World Cup में कम से कम एक बार खेली होगी. ICC ने जब अफगानिस्तान को वर्ष 2017 में अपना Full Time Member बनाया था तो वहां महिला क्रिकेट टीम (Afghanistan Women Cricket Team) थी ही नहीं. उस समय ICC ने इस फ़ैसले को अपवाद मानते हुए अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड को स्थाई देशों की सूची में जगह दी थी.
हो सकता है कि ICC इस बार भी अफगानिस्तान (Afghanistan) संकट को अपवाद मान ले और अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड पर कोई प्रतिबंध ना लगाए. हम ये इसलिए भी कह रहे हैं क्योंकि अगले महीने 17 अक्टूबर से पुरुष T20 World Cup शुरू होने वाला है और अभी तक का अपडेट ये है कि अफगानिस्तान की टीम इसमें खेल रही है. इस पर ICC भी चुप है और बाकी देशों के Cricket Boards ने भी आपत्ति नहीं जताई है.
क्रिकेट का खेल केवल 12 देशों के बीच खेला जाता है. हालांकि क्रिकेट देखने वाले लोग दुनिया के 190 देशों में हैं. इसकी इसी ताकत की वजह से कई मौकों पर क्रिकेट विरोध का एक बड़ा टूल साबित हुआ है.
उदाहरण के लिए भारत आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने से कई बार मना कर चुका है. दोनों देशों के बीच आखिरी द्विपक्षीय सीरीज 2012-2013 में हुई थी. यानी लगभग 8 साल हो चुके हैं.
ये स्थिति तब है, जब 2019 के Cricket World Cup में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला मैच भारत और पाकिस्तान का था. इसे दुनिया में अलग अलग माध्यमों पर लगभग 33 करोड़ लोगों ने देखा था.
Profit के लिहाज से ये मैच ICC के साथ भारत और पाकिस्तान के Cricket Boards के लिए सुपरहिट था. इसके बावजूद भारत इस मुनाफे को एक तरफ रख कर आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ क्रिकेट सीरीज खेलने का विरोध करता है.
क्रिकेट की तरह फिल्में भी एक Soft Power हैं, इसलिए पाकिस्तानी कलाकारों के भारत में काम करने का विरोध किया जाता है. आज ICC चाहे तो वो भारत से सीख कर अफगानिस्तान पर प्रतिबंध लगा सकता है.
ICC ने वर्ष 1970 से 1991 तक दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम के खेलने पर पाबंदी लगाई थी. वैसा ही इस बार भी वह कर सकता है. वर्ष 1968 में दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इंग्लैंड की क्रिकेट टीम को अपने देश के दौरे पर आने से इसलिए रोक दिया था क्योंकि इंग्लैंड की टीम में एक खिलाड़ी अश्वेत था. उस समय दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद चरम पर था और अश्वेत खिलाड़ियों को टीम में नहीं खिलाया जाता था.
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इस घटना के बाद एक एक करके दुनिया के सभी बड़े Cricket Boards ने दक्षिण अफ्रीका का Boycott कर दिया और ये Boycott तब तक रहा, जब तक वर्ष 1990 में Nelson Mandela जेल से रिहा नहीं हुए. अब ICC से ये मांग उठ रही है कि जैसे उसने दक्षिण अफ्रीका पर प्रतिबंध लगाया था, उसी तरह अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए.
आज जब दुनिया के बड़े बड़े देश और उनके नेता अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान से टक्कर से नहीं लेना चाहते. तब दुनियाभर के Cricket Boards चाहें तो अफगानिस्तान का बहिष्कार करके खुद इसकी पहल कर सकते हैं.
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