‘आधार’ पर अध्यादेश को चुनौती: दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
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‘आधार’ पर अध्यादेश को चुनौती: दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

पीठ ने कानून मंत्रालय को सुनवाई की अगली तारीख नौ जुलाई तक अपना रुख बताने को कहा है. 

 (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने हालिया ‘आधार अध्यादेश’ की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर शुक्रवार को केंद्र का जवाब मांगा. इस अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि इसे (अध्यादेश को) निजी क्षेत्र द्वारा ‘आधार’ के उपयोग के बारे में उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलटने के लिए लाया गया था.

मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भंभानी की पीठ ने कानून मंत्रालय को सुनवाई की अगली तारीख नौ जुलाई तक अपना रुख बताने को कहा है. यह विषय उच्च न्यायालय की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया क्योंकि शीर्ष न्यायालय ने पांच अप्रैल को याचिकाकर्ताओं, दोनों वकीलों, को पहले उच्च न्यायालय जाने को कहा था.

गौरतलब है कि शीर्ष न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल सितंबर में यह घोषणा की थी कि केंद्र की महत्वाकांक्षी ‘आधार’ योजना संवैधानिक रूप से वैध है लेकिन इसे बैंक खातों, मोबाइल फोन और स्कूल में दाखिलों से जोड़े जाने सहित इसके कुछ प्रावधानों को उसने रद्द कर दिया था. 

क्या कहना है याचिकाकर्ताओं का?
याचिकाकर्ता रीपक कंसल और यदुनंदन बंसल के मुताबिक अध्यादेश निजी क्षेत्र को भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम में संशोधन कर पिछले दरवाजे से आधार ढांचे के इस्तेमाल की इजाजत देता है. उन्होंने दावा किया है कि यह टेलीकॉम कंपनियों को पहचान सत्यापन के लिए आधार आईडी का इस्तेमाल करने की इजाजत देता है. उन्होंने यह दलील भी दी है कि ऐसी कोई असाधारण स्थिति नहीं है जिसके लिए ऐसे किसी अध्यादेश को जारी करने की जरूरत थी. 

राष्ट्रपति ने पिछले महीने ‘आधार अधिनियम’ को अपनी मंजूरी दी थी
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पिछले महीने ‘आधार अधिनियम’ को अपनी मंजूरी दी थी, जिसने मोबाइल सिम कार्ड हासिल करने और बैंक खाते खुलवाने के लिए आईडी प्रूफ के तौर पर आधार के स्वैच्छिक इस्तेमाल की इजाजत दी. इस अध्यादेश की जरूरत इसलिए पड़ी थी क्योंकि इस सिलसिले में लोकसभा में पारित एक विधेयक को राज्य सभा की मंजूरी नहीं मिल सकी थी. 

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