What is suspension and termination: जॉब में सस्पेंड या टर्मिनेट होना अक्सर दुखदाई होता है लेकिन कई लोगों को न चाहते हुए भी इसका शिकार बन जाना ही पड़ता है. आखिर दोनों क्या अंतर होता है और इसके खिलाफ कहां अपील की जा सकती है.
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Difference between suspension and termination: आपने अक्सर सुना और पढ़ा होगा कि फलां गलती होने पर किसी अफसर को सस्पेंड या टर्मिनेट कर दिया गया. आखिर इन दोनों शब्दों का क्या मतलब होता है. नौकरी कर रहे व्यक्ति पर अगर इनमें से कोई एक्शन हो जाए तो उसके करियर पर क्या असर पड़ता है. आइए हम आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं. इन दोनों शब्दों का अंतर जानकर न केवल आपका कानूनी ज्ञान तेज होगा बल्कि आपको आईक्यू लेवल भी बढ़ जाएगा.
क्या होता है नौकरी से सस्पेंशन?
असल में सस्पेंशन एक अस्थायी कार्रवाई होती है, जिसमें कोई आरोप लगने पर जांच जारी रहने तक कर्मचारी को सस्पेंड करके कुछ समय के लिए काम से दूर कर दिया जाता है. इस एक्शन को आमतौर पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के हिस्से के रूप में देखा जाता है. यह कार्रवाई कोई शिकायत आने, नियमों का उल्लंघन या खराब प्रदर्शन पर की जाती है.
सस्पेंड होने पर क्या मिलता है वेतन?
सस्पेंशन के दौरान, कर्मचारी को अक्सर वेतन मिलता रहता है. यह उसके कुल मासिक वेतन का आमतौर पर आधा होता है. अगर जांच में कर्मचारी की कोई गलती नहीं पाई जाती तो उसे काम पर वापस लिया जा सकता है. इस दौरान उसे बकाया वेतन भी रिलीज कर दिया जाता है. अगर वह दोषी पाया जाता है तो उसके सारे वेतन-भत्ते और अन्य लाभ रोककर आगे की कार्रवाई की जाती है.
जॉब से टर्मिनेशन कब किया जाता है?
यह एक स्थाई कार्रवाई है, जिसमें कर्मचारी की नौकरी पूरी तरह समाप्त कर दी जाती है. यह एक्शन आमतौर पर कर्मचारी के खराब प्रदर्शन, अनुशासनात्मक मुद्दों या कंपनी की जरूरतों में बदलाव के कारण किया जाता है. टर्मिनेशन के बाद, कर्मचारी को काम पर वापस लेने का विकल्प नहीं होता है. इस कार्रवाई में कर्मचारी को आमतौर पर भविष्य में मिलने वाले अपने तमाम वेतन और अन्य लाभ खोने पड़ते हैं.
कानूनी स्क्रूटनी के दायरे में दोनों कार्यवाही
यहां यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि सस्पेंशन और टर्मिनेशन के नियम और प्रक्रिया सभी कंपनियों में अलग- अलग हो सकती है. कई जगहों पर कर्मचारी पर कार्रवाई से पहले उसे सस्पेंड करके जांच करने और कर्मचारी को अपनी बात रखने का मौका देने की नीति अपनाई जाती है. वहीं कई जगहों पर सीधे ही टर्मिनेट करके नौकरी से बाहर कर दिया जाता है. हालांकि ये दोनों ही मामले कानूनी स्क्रूटनी के दायरे में आते हैं और आप इनके खिलाफ कोर्ट में केस दायर कर सकते हैं.