Chhattisgarh Bijapur Naxal Attack: सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के जवान राकेश्वर सिंह मन्हास नक्सलवादियों के कब्जे में हैं. जब 2 अप्रैल को सुरक्षा बल की 10 टीमें बीजापुर के जंगलों में नक्सलवादी माडवी हिडमा को पकड़ने के लिए निकली थीं, तब राकेश्वर सिंह भी इस ऑपरेशन का हिस्सा थे.
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नई दिल्ली: आज हम एक तस्वीर की बात करेंगे, जो आपको अंदर तक झकझोर देगी. ये तस्वीर सीआरपीएफ के जवान राकेश्वर सिंह मन्हास की चार साल की बेटी की है. इस चार साल की बच्ची की आंखों में आंसू हैं.
छत्तीसगढ़ के बीजापुर में तीन अप्रैल को हुए नक्सली हमले के बाद से राकेश्वर सिंह मन्हास नक्सलवादियों के कब्जे में हैं और यही बात उनके पूरे परिवार को परेशान कर रही है. राकेश्वर सिंह की चार साल की बेटी ने अपने सैनिक पिता को नक्सलियों के कब्जे से छुड़ाने के लिए मार्मिक अपील भी की. वो ये कहते हुए रोने लगी कि किसी भी तरह उसके पापा जल्द से जल्द घर लौट आएं.
सोचिए, इस चार साल की बच्ची को जब पता चला होगा कि उसके पिता की जान खतरे में है और वो नक्सलवादियों के कब्जे में है, तो उस पर क्या बीती होगी और उसे कितना गहरा धक्का लगा होगा. आज राकेश्वर सिंह का ये पूरा परिवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक उम्मीद से देख रहा है. उन्हें भरोसा है कि जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विंग कमांडर अभिनंदन को पाकिस्तान से छुड़ा लाए थे, उसी तरह राकेश्वर सिंह भी सुरक्षित लौट आएंगे.
हम चाहते हैं कि जो जवान हमारी रक्षा के लिए अपनी जान देने में जरा भी संकोच नहीं करते. उनकी रक्षा के लिए आज पूरा देश इस मुहिम का हिस्सा बने. हम आज राकेश्वर सिंह को नक्सलवादियों के कब्जे से छुड़ाने की मांग करते हैं.
80 घंटे से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के जवान राकेश्वर सिंह मन्हास नक्सलवादियों के कब्जे में हैं. जब 2 अप्रैल को सुरक्षा बल की 10 टीमें बीजापुर के जंगलों में नक्सलवादी माडवी हिडमा को पकड़ने के लिए निकली थीं, तब राकेश्वर सिंह भी इस ऑपरेशन का हिस्सा थे. उन्होंने इस ऑपरेशन पर जाने से पहले अपने परिवार से बात की थी. उन्होंने अपनी पत्नी से कहा था कि वो कल उन्हें जरूर फोन करेंगे. लेकिन 80 घंटे से ज्यादा समय बीत गया है और उनका अब तक कोई फोन नहीं आया है. उन्हें नक्सलवादियों ने बंदी बना लिया है.
राकेश्वर सिंह की उम्र 35 वर्ष है और उनका पूरा परिवार जम्मू जिले में रहता है. परिवार में उनकी मां, एक भाई, पत्नी और एक चार साल की बेटी है और ये सभी उनके वापस लौटने का इंतजार कर रहे हैं. आज जब हमारी टीम जम्मू में उनके घर गई तो वहां माहौल गमगीन था. परिवार की आंखों में आंसू थे और परिवार के सभी लोग एक कमरे में इकट्ठा होकर इस उम्मीद में बैठे थे कि कभी भी राकेश्वर सिंह का फोन आ सकता है.
आज ये परिवार चिंता में है, दर्द में हैं क्योंकि, इस परिवार का बेटा नक्सलवादियों से लड़ने गया था. इसलिए हम कहना चाहते हैं कि ये सिर्फ उनकी मुहिम नहीं है. ये हमारी भी मुहिम है और ये पूरे देश की मुहिम होनी चाहिए कि राकेश्वर सिंह सुरक्षित अपने घर लौटें.
इस नक्सली हमले की जिम्मेदारी लेने वाले प्रतिबंधित संगठन सीपीआई माओवादी ने भी इस पर एक चिट्ठी लिखी है, जिसमें इस संगठन ने माना है कि राकेश्वर सिंह नक्सलवादियों के कब्जे में हैं. संगठन ने जवान को छोड़ने की दो शर्तें रखी हैं. पहली ये कि सरकार सुरक्षा बल को नक्सल प्रभावित इलाकों से वापस बुला ले और दूसरी ये कि सरकार नक्सलवादियों से बातचीत के लिए अपने प्रतिनिधियों को नियुक्त करे.
2 साल पहले ही राकेश्वर सिंह की ड्यूटी छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में लगी थी और इस दौरान उन्होंने कई ऑपरेशंस में हिस्सा लिया, लेकिन इस बार जब टीम छत्तीसगढ़ के बीजापुर के घने जंगलों में गई तो नक्सलवादियों के हमले में उनके 22 साथी शहीद हो गए, लेकिन इस दौरान राकेश्वर सिंह की कोई सूचना नहीं मिली. इस बात को अब 80 घंटे से भी ज्यादा बीत चुके हैं.
आपको याद होगा वर्ष 2019 में पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक हुई थी तो इसके बाद भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर को भारत सरकार अभिनंदन वर्धमान पाकिस्तान से छुड़ा कर लाई थी. उस समय भारत ने ये साफ-साफ संकेत दिए थे कि अगर पाकिस्तान ने अभिनंदन को नहीं छोड़ा तो भारत इसे बर्दाश्त नहीं करेगा.
आज एक बार फिर उसी तरह से हमारे देश के एक और वीर जवान को छुड़ाने की जरूरत है. हालांकि इस बार हमारे सामने पाकिस्तान नहीं है, बल्कि वो लोग हैं, जो इसी देश का खाते हैं, इसी देश में रहते हैं और इसी देश के नागरिक हैं.
बहुत से लोग ये भी पूछ रहे हैं कि जब सरकार ने विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को सिर्फ 60 घंटों में पाकिस्तान से छुड़ा लिया था तो फिर राकेश्वर सिंह को लेकर इतनी देरी क्यों हो रही है और इसका जवाब वही है, जिसके बारे में हमने कल भी आपको बताया था.
ये लड़ाई अपनों के खिलाफ है और ऐसी लड़ाइयों में सुरक्षा बलों के हाथ मानवाधिकारों की बेड़ियों से बंधे होते हैं क्योंकि, आज अगर सरकार इन नक्सलवादियों पर कोई बड़ी स्ट्राइक करके राकेश्वर सिंह को छुड़ा लेती है तो फिर इसी देश के कुछ लोग सरकार और सुरक्षा बलों के खिलाफ खड़े हो जाएंगे. अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी भारत में मानवाधिकारों को खतरे में बता देंगी और यही हमारे देश का असली दुर्भाग्य है.
सोचिए आज एक जवान पिछले 80 घंटों से ज्यादा समय से नक्सलवादियों के कब्जे में हैं, लेकिन क्या आपने कहीं सुना कि इन संस्थाओं ने इस पर चिंता जताई हो. क्या आपने उन नेताओं को इस पर कुछ कहते हुए सुना, जो इस तरह के हमलों के बाद अक्सर अपनी दुकानें खोल कर बैठ जाते हैं, जो इंटेलिजेंस फेलियर की बातें करते हैं. कड़वी सच्चाई तो ये है कि हमारे देश में सबकुछ तय एजेंडे के हिसाब से होता है. इसलिए आज हम राकेश्वर सिंह को छुड़ाने की मांग करते हैं और राकेश्वर सिंह का परिवार भी यही दुआ कर रहा है.
छत्तीसगढ़ के बीजापुर में 3 अप्रैल को जब नक्सलवादियों ने हमला किया था, तब विजय मांडवी भी वहां मौजूद थे. वो छत्तीसगढ़ पुलिस के डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड की तरफ से इस ऑपरेशन में शामिल थे और इस हमले में उन्हें काफी चोटें आई हैं. अहम बात ये है कि विजय मांडवी पहले खुद एक नक्सलवादी थे, लेकिन वर्ष 2016 में जब उन्होंने सरेंडर किया तो उन्हें डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड के दस्ते में नौकरी मिल गई.
आज जब हमारी टीम ने उनसे बात की, तो उन्होंने हमें बताया कि इस पूरे हमले के दौरान नक्सलवादी माडवी हिडमा खुद वहां मौजूद था और इस हमले का नेतृत्व कर रहा था. हमने आपसे कहा था कि आतंकवादी हाफिज सईद से पहले माडवी हिडमा को पकड़ना बहुत जरूरी है क्योंकि, इस तरह के नक्सलवादी देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है.
आज हम यही चाहते हैं कि राकेश्वर सिंह को नक्सलवादियों से कब्जे से छुड़ाया जाए और इसके लिए जरूरी है घर में छिप कर बैठे इन नक्सलवादियों को घुस कर मारा जाए.