DNA ANALYSIS: जान बचाने वाली व्यवस्था का अपमान क्यों?
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DNA ANALYSIS: जान बचाने वाली व्यवस्था का अपमान क्यों?

Coronavirus Lockdown: कल 19 अप्रैल को दिल्ली से कुछ तस्वीरें आई हैं, जहां  शराब की दुकानों के बाहर लोगों की लम्बी लम्बी लाइनें दिखाई दीं. इन लोगों को जैसे ही ये ख़बर मिली कि दिल्ली में आज रात 10 बजे से एक हफ़्ते के लिए लॉकडाउन लगाया जा रहा है तो ये लोग शराब की दुकानों के बाहर लाइनों में लग गए. 

DNA ANALYSIS: जान बचाने वाली व्यवस्था का अपमान क्यों?

नई दिल्ली: कल 19 अप्रैल को दिल्ली से कुछ तस्वीरें आई हैं, जहां  शराब की दुकानों के बाहर लोगों की लम्बी लम्बी लाइनें दिखाई दीं. इन लोगों को जैसे ही ये ख़बर मिली कि दिल्ली में आज रात 10 बजे से एक हफ़्ते के लिए लॉकडाउन लगाया जा रहा है तो ये लोग शराब की दुकानों के बाहर लाइनों में लग गए. ये जानते हुए कि इस तरह की भीड़ में वो कोरोना वायरस से भी संक्रमित हो सकते हैं.

शराब की दुकान के बाहर लंबी लाइन

आप जब इन दुकानों पर लगी ये कतारें ध्यान से देखेंगे तो आपको एक सीधी लाइन खींची नज़र आएगी. यही है मर्यादा को तोड़ने वाली लाइन, जिसे इन लोगों ने लांघ कर ये बताया कि उनकी प्राथमिकता क्या है, इन लोगों के लिए जान से ज़्यादा क़ीमत शराब का सेवन है. सोचिए जिस देश के लोग ग़लत लाइनों में ही जाकर खड़े हो जाएं तो वो देश कैसे सही लक्ष्यों की तरफ़ बढ़ पाएगा.

कई जगहों पर तो एक किलोमीटर से भी लम्बी लाइनें नज़र आईं. इनमें से कुछ लोगों के चेहरों पर मास्क भी नहीं थे और इस भीड़ में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी करना लगभग नामुमकिन सा है. वैसे तो ये लाइनें कोरोना की वैक्सीन लगवाने के लिए लगनी चाहिए थीं, लेकिन आज दवा पर दारू भारी पड़ गई. आप ये भी कह सकते हैं कि आज दवा हार गई और दारू जीत गई.

आज आप लाइनों में लगे इन लोगों से पूछेंगे कि इन लोगों को वैक्सीन और शराब में से क्या चाहिए तो जवाब यही होगा कि वैक्सीन आप रख लोए हमें शराब दे दो और इससे ही आप हमारे देश के इन लोगों का चरित्र समझ सकते हैं.

सोचिए, ये है हमारा असली देश जहां शराब के लिए लोग जान की बाज़ी लगाने के लिए भी तैयार हैं.

प्रवासी मज़दूरों का पलायन 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आज प्रवासी मज़दूरों से अपील की थी कि वो अपने गांव ना लौटें और ट्रेनों और बसों में भीड़ इकट्ठा न करें. सरकार ने इसके लिए उनकी मदद का भी भरोसा दिया. हालांकि प्रवासी मज़दूरों पर इन सभी बातों का कोई असर नहीं हुआ. दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे पर लोगों की भारी भीड़ दिखी और ये लोग एक दूसरे को धक्का मार कर किसी भी तरह बसों में सवार होने के लिए संघर्ष करते दिखे. ये तस्वीरें बताने के लिए काफी हैं कि हमारे देश के लोग कोरोना वायरस को लेकर कितने गम्भीर हैं. ये वो लोग हैं, जो किसी भी क़ीमत पर अपने घर वापस जाना चाहते हैं.

पुलिस और डॉक्टरों का अपमान क्यों

आप चाहें तो एक और तस्वीर से भी लापरवाही को समझ सकते हैं.18 अप्रैल को एक बदतमीज़ पति-पत्नी ने दिल्ली पुलिस के जवानों के साथ बदसलूकी की. ये दोनों लोग वीकेंड लॉकडाउन के दौरान बाहर निकले हुए थे और इन्होंने मास्क भी नहीं लगाया था. लेकिन जब पुलिस ने उन्हें इसके लिए टोका, तो इन लोगों ने गालियां देनी शुरू कर दीं. इन लोगों ने पुलिस जवानों के लिए अपशब्दों का भी इस्तेमाल किया. 

अब पुलिस ने इस पति पत्नी को गिरफ़्तार कर लिया है और गिरफ़्तारी के साथ ही इनके चेहरों पर मास्क लौट आए हैं. यानी आखिर इन लोगों को मास्क पहनना ही पड़ा. कल जब इस पति पत्नी ने पुलिस के जवानों के साथ बदसलूकी की थी तो इन लोगों ने कई बार पुलिस को डरपोक और कायर बताने की कोशिश की, लेकिन आज हम इस जानकारी को भी सुधारना चाहते हैं.

मार्च 2021 तक अकेले दिल्ली में पुलिस के 7 हज़ार 603 जवान कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और इनमें से 32 जवानों की मौत हो चुकी है और ये जवान इसलिए मर गए क्योंकि, ये उन लोगों के सम्पर्क में आए जो नियमों का पालन करने के लिए तैयार नहीं हैं. अब आप ख़ुद सोचिए कि आपकी रक्षा करने वाले पुलिस के जवान क्या कायर हैं, क्या ये डरपोक हैं.

पुलिस के कंधों पर क़ानून व्यवस्था की ज़िम्मेदारी है; लॉकडाउन का पालन हो, ये देखना भी उसका काम है, लोग मास्क लगाएं, ये भी उसे ही सुनिश्चित करना है और ये सब करते हुए उसे लोगों की गालियां और ग़ुस्सा भी झेलना है.

हालांकि पुलिस का अपमान और उसे गालियां देने वाले इन लोगों को आज हम बताना चाहते हैं कि इसी दिल्ली पुलिस ने कोरोना से संक्रमित 35 मरीज़ों की जान बचाई. ये मरीज़ जिस अस्पताल में भर्ती थे, वहां ऑक्सीजन सिलिंडर ख़त्म होने वाले थे और जब अस्पताल ने ये जानकारी पुलिस को दी तो पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए ऑक्सीजन के 35 सिलिंडर अस्पताल भिजवा दिए, जिससे इन मरीज़ों की जान बच सकी. लेकिन इसके बावजूद हमारे देश में पुलिस को क्या मिलता है. उत्तर प्रदेश के आगरा से ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं, जहां एक दुकानदार ने एक पुलिसकर्मी की वर्दी फाड़ दी क्योंकि, ये पुलिसकर्मी उसे लॉकडाउन के दौरान दुकान बन्द रखने के लिए कह रहा था.

दिल्ली और आगरा की इस घटना में एक बात जो समान है, वो ये कि ये लोग न तो नियमों को मानने के लिए तैयार हैं और न ही पुलिस का इनमें कोई डर है और न ही कोरोना से ये लोग डर रहे हैं. हालांकि दिल्ली वाले मामले में अब पति पत्नी की सोच बदल गई है और पिछले 24 घंटों में मास्क को लेकर उनके होश ठिकाने आ गए हैं.

पुलिस की तरह ही डॉक्टरों के साथ भी हमारे देश में बहुत से लोग बुरा व्यवहार कर रहे हैं. कल्पना कीजिए अगर आज इस दुर्व्यवहार की वजह से पुलिस और डॉक्टरों ने अपना काम बंद कर दिया तो फिर क्या होगा. फिर हमारे देश में लोग डॉक्टरों को बुरा भला कहना शुरू कर देंगे. लोग कहेंगे कि देखो मरीज़ मर रहे हैं और डॉक्टरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

लेकिन जब यही डॉक्टर मरीजों का इलाज करते हुए मर जाते हैं, तो इनकी कोई बात नहीं करता. पिछले एक साल में कोरोना वायरस की वजह से 174 डॉक्टर, 116 नर्स और 199 स्वास्थ्यकर्मियों की मौत हो चुकी है और इसके बावजूद हमारे डॉक्टर अस्पतालों में मरीज़ों की जान बचाने के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन जब इन डॉक्टरों के साथ बदसलूकी होती है, इन्हें अपमानित किया जाता है, डराया और धमकाया जाता है तो सोचिए इन पर क्या बीतती होगी.

हालांकि डॉक्टरों के सामने एक यही चुनौती नहीं है. एम्स भुवनेश्वर के रेज़िडेंट डॉक्टरों ने वीआईपी कल्चर से परेशान होकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखी है. इस चिट्ठी में उन्होंने कहा है कि सरकारी अस्पतालों में नौकरशाहों, राजनेताओं और राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ताओं को इलाज में मिलने वाली प्राथमिकता को खत्म किया जाना चाहिए. चिट्ठी में लिखा गया है कि सभी लाइफ सपोर्ट और आईसीयू सेवाओं को वीआईपी लोगों के लिए बुक किया जा रहा है और इससे आम लोग बिना इलाज के ही मर रहे हैं.

आज भले ये कड़वा सच किसी को ना दिखे, लेकिन हकीकत यही है कि अस्पतालों में न सिर्फ़ इलाज का बल्कि ठमके काए ऑक्सीजन का और दवाइयों का बंटवारा हो चुका है.

अब हम आपको देश में गहराए ऑक्सीजन संकट के बारे में बताते हैं. इस समय कई राज्यों में ऑक्सीजन के लिए लोगों की लम्बी-लम्बी लाइनें लगी हैं और इसे आप इन तस्वीरों से समझ सकते हैं.

 ऑक्सीजन सि​लिंडर की कालाबाज़ारी

आज ऑक्सीजन सि​लिंडर की कालाबाज़ारी हो रही है और 10 लीटर का एक सिलिंडर ब्लैक में 12 हज़ार रुपये तक का बेचा जा रहा है, जबकि इसकी क़ीमत 4 से 5 हज़ार रुपये है. अगर इस हिसाब से देखें तो एक लीटर ऑक्सीजन की क़ीमत लगभग 1200 रुपये होती है. सोचिए एक लीटर पानी की बोतल की क़ीमत है, 20 रुपये और ऑक्सीजन की क़ीमत है, 1200 रुपये यानी आज ऑक्सीजन के लिए लोगों को पैसे भी खर्च करने पड़ रहे हैं और कई लोगों को तो पैसे ख़र्च करने के बाद भी ऑक्सिजन नहीं मिल रही.

बचपन से हमें ऑक्सीजन मुफ़्त में मिलती आई है. पेड़ हमें ऑक्सीजन तो देते हैं, लेकिन हमने उनका कभी धन्यवाद नहीं दिया, बल्कि भारत में हर साल लाखों पेड़ काट दिए जाते हैं. राज्य सभा में दी गई जानकारी के मुताबिक़, 2016 से 2019 के बीच देश में लगभग 70 लाख पेड़ काटे गए. यानी आप कह सकते हैं कि इंसान अपनी सांसों को ख़ुद ही काट रहा है.

एक स्टडी के मुताबिक़ शहरों में फुटपाथ पर जो पेड़ लगे होते हैं उनकी उम्र औसतन 20 वर्ष होती है. ये पेड़ हर साल हमें 117 लीटर ऑक्सीजन देता है यानी 20 साल तक 2 हज़ार 340 लीटर ऑक्सीजन हवा में छोड़ता है, लेकिन इसके बावजूद हम पेड़ों को काट देते है. ये ठीक वैसा ही है, जैसे हम मदद करने वाले हाथों को ही काट दें.

हालांकि केन्द्र सरकार की तरफ़ से कहा गया है कि देश में ऑक्सीजन की कमी नहीं है. सरकार ने बताया है कि भारत में इस समय फिलहाल ऑक्सीजन का भंडार 50 हज़ार मीट्रिक टन से भी ज़्यादा है और अभी हर दिन अधिकतम 3 हजार मीट्रिक टन की ही खपत हो रही है.

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