Coronavirus Vaccine: देश में 3 प्रतिशत लोगों ने वैक्सीन की एक डोज के लिए 2000 रुपये से भी ज्यादा की रकम खर्च की है. इससे ये बात तो स्पष्ट है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन्स से प्राइवेट अस्पताल खूब मुनाफा कमा रहे हैं.
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नई दिल्ली: आज हम DNA में कोरोना वैक्सीन की प्राइसिंग पॉलिसी का DNA टेस्ट करेंगे. भारत में इस समय दो वैक्सीन उपलब्ध हैं.
एक है कोविशील्ड और दूसरी है कोवैक्सीन. इस हिसाब से देखें तो वैक्सीन की सिर्फ दो कीमतें होनी चाहिए, लेकिन ऐसा है नहीं. दरअसल, इस समय भारत में इन वैक्सीन्स की विभिन्न स्तर पर 20 से ज्यादा अलग अलग कीमतें हैं.
सोचिए दो वैक्सीन और उनकी 20 से ज्यादा अलग अलग कीमतें. भारत में बाकी विषयों की तरह इस पर भी खूब राजनीति हो रही है. लेकिन आज हम राजनीति की बात नहीं करेंगे. हम वैक्सीन को लेकर कीमतों की नीति की बात करेंगे और आपको बताएंगे कि भारत में एक देश, एक विधान और एक संविधान का विचार अधिक प्रासंगिक क्यों नहीं है.
लेकिन पहले हम आपको वैक्सीन पर सबसे बड़ी ख़बर के बारे में बताते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल 4 जून को देश में वैक्सीनेशन को लेकर एक उच्च स्तरीय बैठक की. इस बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल, सूचना-प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी, कैबिनेट सेक्रेटरी और हेल्थ सेक्रेटरी समेत कई बड़े अधिकारी मौजूद रहे.
इस बैठक में प्रधानमंत्री को देश में चल रहे टीकाकरण अभियान को लेकर तमाम जानकारियां दी गईं. प्रधानमंत्री को बताया गया कि देश में कितनी वैक्सीन उपलब्ध हैं और वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को सरकार से क्या मदद उपलब्ध कराई गई है. इस बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के कई राज्यों में अब भी बड़ी मात्रा में वैक्सीन की बर्बादी हो रही है और इसे रोकने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे.
अब आपको ये बताते हैं कि देश में वैक्सीन की कीमतें अलग-अलग क्यों हैं?
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोविशील्ड की एक डोज केंद्र सरकार को 150 रुपये में उपलब्ध करा रही है. ठीक इतनी ही कीमत एक डोज के लिए कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक केंद्र सरकार से ले रही है.
केंद्र सरकार को ये वैक्सीन मिल रही है, 150 रुपये में और सरकार ये वैक्सीन देशभर के सरकारी अस्पतालों में 45 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों को मुफ्त में लगा रही है. अब यही दोनों वैक्सीन 18 से 44 वर्ष की उम्र के लोगों को भी लगाई जा रही है, लेकिन इनकी कीमतें बिल्कुल अलग हैं.
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोविशील्ड की एक डोज राज्य सरकारों को 300 रुपये में दे रही है. जबकि भारत बायोटेक की कोवैक्सीन की एक डोज के लिए राज्य सरकारों को 400 रुपये देने पड़ रहे हैं.
ये प्राइस टैग सिर्फ राज्य सरकारों के लिए है. प्राइवेट अस्पतालों के लिए तो ये कीमत और भी ज्यादा है. 18 से 44 साल की उम्र के लोगों के लिए सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोविशील्ड की एक डोज पर 600 रुपये ले रहा है. जबकि भारत बायोटेक कोवैक्सीन की एक डोज के लिए 1200 रुपये ले रही है.
यानी वैक्सीन तो दो हैं, लेकिन इन दो वैक्सीन की अलग अलग कई कीमतें हैं.
केद्र सरकार के लिए दोनों वैक्सीन की प्रति डोज की क़ीमत 150 रुपये है. राज्यों सरकारों के लिए कोविशील्ड की कीमत 300 और कोवैक्सीन की कीमत 400 रुपये है और प्राइवेट अस्पतालों को यही वैक्सीन 600 और 1200 रुपये में मिल रही है.
ये बात तो हुई वैक्सीन की कीमतों की. अब आपको ये बताते हैं कि इन वैक्सीन्स के लिए लोगों को कितने रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं.
45 साल से ऊपर के लोगों के लिए वैक्सीन की कीमत क्या है, पहले वो आपको बताते हैं. इस श्रेणी के लोग अगर सरकारी अस्पतालों में वैक्सीन लगवाते हैं तो उनसे कोई पैसा नहीं लिया जाता है. ये वैक्सीन उनके लिए मुफ्त है. हालांकि एक मई से पहले प्राइवेट अस्पतालों में इस श्रेणी के लोगों से एक डोज के लिए 250 रुपये लिए जा रहे थे.
अब आपको ये बताते हैं कि 18 से 44 वर्ष की उम्र के लोगों को वैक्सीन के लिए कितने रूप खर्च करने पड़ रहे हैं. वैसे तो अधिकतर राज्य सरकारें इस श्रेणी के लोगों को मुफ्त में वैक्सीन लगवा रही हैं. यानी कोई पैसा नहीं देना होता. लेकिन अगर इस श्रेणी के लोग प्राइवेट अस्पतालों में वैक्सीन लगवाते हैं तो उनसे एक डोज के लिए 1800 रुपये तक लिए जा रहे हैं और कहीं कहीं ये कीमत 2000 रुपये तक भी है.
18 से 44 वर्ष की उम्र के लोगों के लिए प्राइवेट अस्पतालों में कोविशील्ड की एक डोज 600 रुपये से 1000 रुपये में उपलब्ध है. जबकि प्राइवेट अस्पतालों में कोवैक्सीन की एक डोज के लिए 1250 से 1800 रुपये कीमत ली जा रही है.
अब सवाल है कि एक वैक्सीन की इतनी सारी कीमतें क्यों? जब देश एक है, बीमारी एक है, कंपनी भी एक ही वैक्सीन बना रही है तो फिर ऐसा क्यों है? इसे आप एक सर्वे के नतीजों से समझ सकते हैं-
ये सर्वे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Local Circles ने किया है. सर्वे में ये बात सामने आई कि भारत में 23 प्रतिशत लोगों ने कोविशील्ड वैक्सीन की एक डोज के लिए एक हजार रुपये से ज्यादा पैसे दिए और कोवैक्सीन के लिए 1500 रुपये से दो हजार रुपये तक दिए.
इसके अलावा 3 प्रतिशत लोगों ने वैक्सीन की एक डोज के लिए 2000 रुपये से भी ज्यादा की रकम खर्च की है. इससे ये बात तो स्पष्ट है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन्स से प्राइवेट अस्पताल खूब मुनाफा कमा रहे हैं.
सरल शब्दों में कहें, तो कोरोना की वैक्सीन, हमारे देश के बहुत से प्राइवेट अस्पतालों के लिए मुनाफा बनाने की वैक्सीन साबित हो रही है.
इसी सर्वे में 91 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो ये चाहते हैं कि राज्य सरकारें प्राइवेट अस्पतालों में वैक्सीन की अधिकतम कीमतें तय कर दे. कहने का मतलब ये है कि राज्य सरकारें इसे लेकर कदम उठा सकती हैं. स्वास्थ्य यानी हेल्थ केंद्र सरकार का नहीं, राज्य सरकारों का विषय होता है और राज्य सरकारें चाहें तो वो वैक्सीन को लेकर अधिकतम कीमतें प्राइवेट अस्पतालों के लिए तय कर सकती हैं, इससे होगा ये कि वैक्सीन के लिए किसी को ज्यादा पैसे नहीं देने पड़ेंगे.
इसके बाद केंद्र सरकार भी वैक्सीन कंपनियों से चर्चा करके इनकी कीमतें एक समान रखने के लिए विचार कर सकती है, जिससे राज्य सरकारों को भी फायदा होगा और लोगों पर भी वैक्सीन के खर्च का बोझ कम होगा. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने भी इस पर सरकार का रूख स्पष्ट किया.
अब आपको ये बताते हैं कि वैक्सीन की कीमत को लेकर दूसरे देशों में क्या स्थिति है?
-भारत में इस्तेमाल हो रही कोविशील्ड वैक्सीन, कई देशों में एस्ट्राजेनेका के नाम से लगाई जा रही है. लेकिन हर देश के लिए इसकी एक डोज की कीमत अलग है. एस्ट्राजेनेका की एक डोज ब्रिटेन को 225 रुपये में, यूरोपियन यूनियन को 162 रुपये में, अमेरिका को 300 रुपये में और दक्षिण अफ्रीका को 394 में मिल रही है.
-कोविशील्ड की तरह फाइजर वैक्सीन की एक डोज ब्रिटेन को 1500 रुपये में, यूरोपियन यूनियन को 1060 रुपये में, अमेरिका को 1427 रुपये में और इजरायल को 200 रुपये में ये कंपनी दे रही है.
-मॉडर्ना की वैक्सीन की एक डोज ब्रिटेन को 2400 से 2800 रुपये में, यूरोपियन यूनियन को 1300 रुपये में, अमेरिका को 1 हजार 86 रुपये में और इजरायल 1760 रुपये में मिल रही है. कहने का मतलब ये है कि इस समय दुनिया में कोरोना की जितनी वैक्सीन मौजूद हैं, उनसे कई गुना अलग अलग कीमतें उनकी हैं.
इस समय दुनिया के अधिकतर देशों में लोगों को कोरोना की वैक्सीन लगाई जा रही है.
-पूरी दुनिया में अब तक वैक्सीन की 205 करोड़ डोज लग चुकी हैं.
-अमेरिका में हर 100 लोगों पर 90 डोज लग चुकी हैं.
-ब्रिटेन में हर 100 लोगों पर 99 डोज लग चुकी हैं.
-चीन में हर 100 लोगों पर 52 डोज लग चुकी हैं.
-और भारत में हर 100 लोगों पर 16 डोज लग चुकी हैं.
ज्यादातर वैक्सीन्स अमीर देशों जैसे अमेरिका, कनाडा और यूरोप में लगी हैं. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अब तक दी गई कुल वैक्सीन्स में से लगभग 25 प्रतिशत अमीर देशों में रहने वाले लोगों की मिली हैं जबकि गरीब देशों में रहने वाले लोगों को 0.3 प्रतिशत वैक्सीन लग पाई हैं.
यही नहीं, इन कुछ मुट्ठीभर अमीर देशों ने वैक्सीन की जमाखोरी भी कर रखी है. इन देशों ने वैक्सीन कंपनियों के साथ एडवांस कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिए हैं, जिसके तहत दुनिया में वैक्सीन के कुल उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा वर्ष 2023 तक इन देशों को ही मिलता रहेगा.
-जैसे यूरोपियन यूनियन ने फाइजर के साथ जो करार किया है, उसके तहत उसे वर्ष 2023 तक 180 करोड़ डोज मिलेंगी. हैरानी की बात ये है कि यूरोपियन यूनियन में कुल 27 देश हैं, जिनकी कुल आबादी 45 करोड़ है. इस हिसाब से सभी लोग, जिनमें बच्चे भी हैं, उन्हें अगर दो डोज लगीं तो 90 करोड़ डोज वहां लगाई जाएंगी. लेकिन यूरोपियन यूनियन ने 180 करोड़ वैक्सीन का करार करके वैक्सीन की जमाखोरी कर ली है.
-इस सूची में कनाडा भी है, जिसने फाइजर के साथ साढ़े 12 करोड़ वैक्सीन का करार किया है. कनाडा की आबादी लगभग साढ़े तीन करोड़ है. उसे 7 करोड़ डोज की आवश्यकता है. यानी लगभग 5 करोड़ डोज की वो जमाखोरी करने वाला है.
-इसके अलावा अमेरिका ने भी 100 करोड़ डोज का करार फाइजर के साथ किया है. ये वैक्सीन की Potential Doses हैं. यानी अमेरिका 100 करोड़ वैक्सीन नहीं खरीदेगा, लेकिन कमी होने पर उसने इतनी वैक्सीन को लॉक कर दिया है.
ये सारी बातें हम आपको इसलिए बता रहे हैं क्योंकि, इन्हीं की वजह से वैक्सीन की कीमतें शेयर बाजार की तरह ऊपर नीचे जा रही हैं और भारत में तो लोग अब प्राइवेट अस्पतालों में एक डोज के लिए 1800 रुपये तक दे रहे हैं.