अगर किसी इंसान पर सीधे बिजली गिरे तो वो बिजली के डिस्चार्ज चैनल का हिस्सा बन जाता है. सरल शब्दों में कहें तो इस स्थिति में वो इंसान बिजली के लिए शॉर्ट सर्किट का काम करता है. ऐसा तब होता है जब वो इंसान बिजली गिरने की जगह के एक या दो फुट के अंतर पर होता है.
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नई दिल्ली: आज हम बादलों की बात करेंगे, जो इन दिनों उत्तर भारत में बारिश तो नहीं करा रहे, लेकिन इनसे बिजली बहुत कड़क रही है और आसमान से गिरने वाली बिजली की वजह से उत्तर भारत में कई लोगों की जान भी चली गई है.
जयपुर में आमेर के किले पर आसमान से बिजली गिरने की वजह से 12 लोगों की मौत हो गई. रविवार होने की वजह से वहां कई लोग घूमने और पिकनिक मनाने के लिए पहुंचे हुए थे और इस दौरान वहां बारिश भी हो रही थी, लेकिन इसके बावजूद लोग आमेर की पहाड़ियों से नीचे नहीं उतरे और कुछ लोग सेल्फी लेने के लिए आमेर महल के वॉच टावर तक पहुंच गए.
ये लोग जब बारिश और आसमान में बिजली कड़कने के साथ सेल्फी ले रहे थे, उसी समय आसमान से बिजली नीचे गिरी और वॉच टावर पर चढ़े 12 लोगों की मौत हो गई. यानी सेल्फी के चक्कर में इन लोगों ने खतरे को हल्के में लिया और इनकी जान चली गई.
जयपुर की इस घटना में 30 लोगों के घायल होने की खबर है और बताया जा रहा है कि बिजली गिरने की वजह से कई लोग पहाड़ियों से नीचे गिर गए हैं, जिन्हें अब भी ढूंढने का काम हो रहा है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में भी बिजली गिरने से 40 लोगों की मौत हुई है और मध्य प्रदेश में भी इससे 11 लोगों की जान गई है.
NCRB की एक रिपोर्ट कहती है कि प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतों में से एक-तिहाई से ज़्यादा मौतें आसमान से बिजली गिरने की वजह से होती हैं. इसके अलावा कई रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि इनमें से ज्यादातर मौतें इसलिए होती हैं क्योंकि, इसे लेकर लोगों में जागरूकता की कमी है और उन्हें ये नहीं पता कि बिजली गिरने पर वो अपनी जान कैसे बचा सकते हैं. इसलिए आज हम आपको इसके बारे में संक्षेप में जानकारी देंगे.
सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि आसमान से बिजली कैसे गिरती है?
बिजली चमकना एक प्राकृतिक क्रिया है. जब ज्यादा गर्मी और नमी मिलती है तो बिजली वाले खास तरह के बादल 'Thunder Clouds' बन जाते हैं और ये तूफान का रूप ले लेते हैं. इससे होता ये है कि जमीन की सतह से लगभग 8 से 10 किलोमीटर ऊंचे इन बादलों के नीचे वाले हिस्से में निगेटिव और ऊपर वाले हिस्से में पॉजिटिव चार्ज ज्यादा रहता है, लेकिन अगर इन दोनों के बीच ये अंतर कम हो जाए तो तेजी से होने वाला डिस्चार्ज बिजली कड़कने के रूप में सामने आता है.
बादलों के बीच बिजली कड़कना एक प्राकृतिक क्रिया है और उससे कोई नुकसान भी नहीं है. नुकसान तो तब होता है जब बादलों से बिजली जमीन पर आती है. ऐसी स्थिति में एक साथ भारी मात्रा में ऊर्जा धरती के एक छोटे से हिस्से पर गिरती है और ये इंसानों के लिए जानलेवा होती है.
अगर किसी इंसान पर सीधे बिजली गिरे तो वो बिजली के डिस्चार्ज चैनल का हिस्सा बन जाता है. सरल शब्दों में कहें तो इस स्थिति में वो इंसान बिजली के लिए शॉर्ट सर्किट का काम करता है. ऐसा तब होता है जब वो इंसान बिजली गिरने की जगह के एक या दो फुट के अंतर पर होता है. बिजली की डायरेक्ट स्ट्राइक खुले इलाकों पर होती है.
बारिश के दौरान पेड़ के नीचे खड़े लोगों पर बिजली गिरने का ज्यादा खतरा होता है. इस घटना को 'साइड फ्लैश' कहते हैं. ऐसा तब होता है जब बिजली किसी व्यक्ति के नजदीक की किसी लंबी चीज पर गिरती है और करंट उससे होते हुए उस व्यक्ति तक पहुंच जाता है, लेकिन ये बात लोगों को पता नहीं होती और वो पेड़ के नीचे जाकर खड़े हो जाते हैं और बिजली की चपेट में आ जाते हैं.
मौसम विभाग के मुताबिक, भारत में बिजली गिरने से एक-चौथाई मौतें पेड़ के नीचे या उसके आसपास खड़े लोगों की होती हैं. पिछले साल देश में 1771 लोगों की मौत बिजली गिरने से हुई थी. हालांकि इसमें एक जानकारी ये भी है कि भारत सरकार और अधिकतर राज्य आसमान से गिरने वाली बिजली को आपदा नहीं मानते. केवल बिहार, झारखंड, केरल और ओडिशा में इसे आपदा माना गया है.
हम आपको पांच पॉइंट्स में बताते हैं कि आप इससे कैसे बच सकते हैं?
पहला पॉइंट बारिश के दौरान अपने घरों के टीवी, रेडियो, कंप्यूटर जैसे उकरणों के पावर प्लग निकाल दें.
दूसरा पॉइंट इससे बचने के लिए अपने घरों की छत पर लाइटनिंग स्ट्राइक लगवा सकते हैं. ये एक प्रकार का एंटीना होता है, जो बिजली गिरने के दौरान अर्थिंग का काम करता है और इस तरह की घटनाओं को रोकता है.
तीसरा पॉइंट आसमान में बिजली कड़कड़ाते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें.
चौथा पॉइंट नंगे पैर फर्श या जमीन पर न चलें.
और पांचवां पॉइंट गलती से भी बारिश के दौरान पेड़ के नीचे और खुले मैदान में खड़े न हों.