स्कूली शिक्षा के एक युग का हुआ अंत, कोरोना काल में कितने बदल गए स्कूल
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स्कूली शिक्षा के एक युग का हुआ अंत, कोरोना काल में कितने बदल गए स्कूल

स्कूल में अब बच्चों को डांट भी इसलिए नहीं पड़ती कि वो होम वर्क की कॉपी लाना भूल गए. अब डांट इस बात पर पड़ती है कि बच्चे मास्क लगाना भूल गए. अब आधे बच्चे क्लास में हैं और आधे बच्चे डिजिटल तरीके से घरों से क्लास अटेंड कर रहे हैं.

स्कूली शिक्षा के एक युग का हुआ अंत, कोरोना काल में कितने बदल गए स्कूल

नई दिल्ली: हम एक ऐसी खबर के बारे में आपको बताएंगे, जो हमारे देश में स्कूल जाने वाले 30 करोड़ बच्चों और उनके माता पिता से जुड़ी है. आज से देश के 9 राज्यों में अलग-अलग कक्षा के बच्चों के लिए स्कूल खुल गए हैं. दिल्ली और राजस्थान में जहां 9वीं से 12वीं कक्षा के बच्चे अब स्कूल जा सकते हैं तो उत्तर प्रदेश में अब पहली कक्षा से पांचवीं कक्षा तक के छोटे बच्चों ने भी स्कूल जाना शुरू कर दिया है. हालांकि, बुधवार सुबह-सुबह जब ये बच्चे स्कूल पहुंचे तो इनके लिए पहला जैसा कुछ भी नहीं था.

  1. लॉकडाउन के बाद खुल गए स्कूल
  2. पहले से काफी बदला पढ़ाई का अंदाज
  3. बच्चों को स्कूल भेजने में कितना रिस्क?

छात्रों के लिए बदल गए स्कूल

आज जब छात्र स्कूल पहुंचे तो उन्हें एहसास हुआ कि स्कूल कितने बदल चुके हैं और अब पहले जैसा कुछ नहीं रहा. नियम बदल चुके हैं, रिश्ते बदल चुके हैं, क्लास में पढ़ने की पद्धति बदल चुकी है, कोरोना की वजह से स्कूलों में अब ना तो डेस्क शेयर करने वाला कोई साथी है क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना है और ना ही बच्चे एक-दूसरे के साथ खाना शेयर कर सकते हैं और ना ही एक दूसरे के साथ कॉपी-किताबें शेयर कर सकते हैं.

स्कूल में अब बच्चों को डांट भी इसलिए नहीं पड़ती कि वो होम वर्क की कॉपी लाना भूल गए. अब डांट इस बात पर पड़ती है कि बच्चे मास्क लगाना भूल गए. आज आधे बच्चे क्लास में हैं और आधे बच्चे डिजिटल तरीके से घरों से क्लास अटेंड कर रहे हैं.

कोरोना ने बदला पढ़ाई का तरीका

पिछले डेढ़ सालों में जब से कोरोना वायरस आया है, तब से स्कूलों में होने वाली पढ़ाई के तौर तरीके बदल गए हैं. अब ना तो स्कूल वैसे रहे हैं, जैसे आज से डेढ़ साल पहले हुआ करते थे और ना ही छात्रों और शिक्षकों के बीच का रिश्ता वैसा रहा है, जैसा पहले होता था.

कोरोना काल से पहले स्कूलों को सिर्फ शिक्षा का मन्दिर नहीं माना जाता था बल्कि स्कूल किसी भी बच्चे के शुरुआती विकास में सबसे बड़ा रोल निभाते थे. बच्चे स्कूलों में  सोशल इंटरेक्शन (Social Interaction) सीखते थे. जैसे मिल जुल कर पढ़ना हो, एक साथ बैठ कर खाना खाना हो, खेलना-कूदना हो या अपनी चीजें एक दूसरे के साथ बांटना हो.

मोबाइल से पहले थी दूरी, अब है जरूरी

बच्चे स्कूल में ये सब काम पढ़ाई के साथ-साथ सीखते थे. लेकिन कोरोना काल में स्कूलों के बन्द होने से ये व्यवस्था बदल गई. अब बच्चे ऑनलाइन पढ़ते हैं और कई बार बहुत से बच्चों को अपने साथी छात्रों का नाम तक मालूम नहीं होता. पहले स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का मोबाइल फोन देखना बुरा माना जाता था. अगर कोई दोस्त या टीचर किसी बच्चे के घर पर शिकायत कर देता था कि वो मोबाइल फोन लेकर स्कूल आया है तो ये बड़ी बात होती थी.

ऐसे स्थिति में माता-पिता को स्कूल में जवाब देना पड़ता था और ऐसे बच्चों के साथ सख्ती भी बरती जाती थी. माता-पिता ये भी कहते थे कि ये मोबाइल फोन आंखों को कमजोर कर देगा. लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब पढ़ाई के लिए मोबाइल फोन होना सबसे ज्यादा जरूरी है. आज कई माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी पढ़ाई के लिए महंगे स्मार्ट फोन तक दिलाते हैं.

टीचर्स से बच्चों का रिश्ता बदला

पहले स्कूलों में बच्चों को क्लास वर्क और होम वर्क मिलता था. आपको शायद याद हो कि कॉपी किताबों पर CW और HW लिखा होता था. होम वर्क पूरा नहीं करने पर टीचर्स सजा भी देते थे. कई बार तो होम वर्क पूरा नहीं होने पर कुछ बच्चे बहाने बना कर छुट्टी ले लेते थे और टीचर्स उनके माता-पिता को फोन कर देते थे. लेकिन अब ऑनलाइन पढ़ाई के दौर में क्लास वर्क और होम वर्क के मायने बदल गए हैं. अब बच्चे ऑनलाइन पढ़ते हैं और होम वर्क नहीं करने पर टीचर्स उन्हें वैसी पनिशमेंट भी नहीं दे पाते.

पिछले डेढ़ वर्षों में टीचर्स और छात्रों का रिश्ता भी बदल गया है. पहले बच्चे कोई गलती करते थे तो उसके लिए टीचर्स को भी उतना ही जिम्मेदार माना जाता था, जितने जिम्मेदार माता-पिता होते थे. यानी बच्चों के जीवन में उनके अध्यापकों का बड़ा रोल होता था. कई बार तो लोग ये भी कहते थे कि मास्टर साहब आपने इसे क्या सिखाया है? और शायद इसीलिए कई टीचर्स बच्चों को लेकर सख्त होते थे और उन्हें कई तरह की सजा देते थे.

लेकिन अब ये रिश्ता काफी बदल चुका है. अब ऐसे कई ऐप्स आ गए हैं, जिनमें बच्चों को नहीं पता होता कि उनकी क्लास आज कौन सा टीचर लेगा और टीचर को नहीं पता होता कि उसकी क्लास में कौन बच्चे होंगे.

पढ़ाई अब कमर्शियल एक्टिविटी

कहने का मतलब ये है कि ऑनलाइन माध्यम ने इस रिश्ते की गर्माहट को कम किया है. हम ये नहीं कह रहे कि सारे टीचर्स ऐसे ही होते हैं, आज भी कई टीचर्स ऐसे हैं, जो अपने छात्रों की पूरी जानकारी रखते हैं और उन पर ध्यान देते हैं. लेकिन ये भी सच है कि अब पढ़ाई एक कमर्शियल एक्टिविटी हो गई है और स्कूल की जगह एजुकेशन के शोरूम खुल गए हैं, जहां आप अपने बजट के हिसाब से अलग-अलग टीचर्स की क्लासेज ले सकते हैं और पढ़ सकते हैं.

पहले क्लास में बैक बेंचर्स होते थे, जिनका दिमाग पढ़ाई में कम और खेल-कूद और दूसरी चीजों में ज्यादा होता था. टीचर्स के सामने वाले बेंच पर वो बच्चे बैठते थे, जो पढ़ने में होनहार होते थे और क्लास का एक मॉनिटर भी होता था, जो सभी बच्चों को अनुशासन में रखता था.

लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई में बैक बेंचर्स, फ्रंट बेंचर्स और मॉनिटर जैसा कुछ नहीं है. अब बच्चे कैमरा ऑफ करके सो भी जाएं तो कई बार टीचर्स को कुछ पता नहीं चलता जबकि पहले टीचर क्लास में सो जाने वाले बच्चों की स्केल से पिटाई करते थे. ऐसे बच्चों को कहा जाता था कि उनका सारा ध्यान सोने में है और वो जिन्दगी भर सोते ही रह जाएंगे.

स्कूली शिक्षा के एक युग का अंत

यानी अब पढ़ाई भी वर्चुअल हो गई है, छात्र भी वर्चुअल हो गए हैं और शिक्षक भी वर्चुअल हो गए हैं. इसलिए आप इसे स्कूली शिक्षा के एक युग का अंत भी कह सकते हैं. एक युग वो था, जब बच्चे स्कूलों में टाट पट्टी पर बैठ कर पढ़ते थे और अपने साथ स्लेट और चॉक लाते थे. फिर स्कूलों में ब्लैक बोर्ड पर बच्चों को पढ़ाने की शुरुआत हुई और अब ब्लैक बोर्ड से ये पढ़ाई मोबाइल फोन की छोटी सी स्क्रीन पर शिफ्ट हो गई है.

अब बहुत सारे पैरेंट्स पूछ रहे हैं कि उन्हें अपने बच्चों को अभी स्कूल भेजना चाहिए या नहीं? दुनिया के ज्यादातर देशों में प्राइमरी तक के स्कूल कोविड के दौरान भी बंद नहीं किए गए थे क्योंकि एक्सपर्ट्स का मानना है कि छोटे बच्चों में संक्रमण का खतरा कम होता है.

पैरेंट्स ध्यान रखें ये बातें

भारत के एक्सपर्ट्स का भी मानना है कि सरकारों को पहले छोटी कक्षा तक के स्कूल खोलने चाहिए थे और बाद में बड़ी कक्षा तक के स्कूल खोलने पर फैसला लेना चाहिए था. एक बड़ी समस्या ये है कि स्कूल अब बच्चों को ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं दे रहे हैं क्योंकि इससे संक्रमण फैलने का खतरा है. इसलिए अब पैरेंट्स को खुद ही अपने बच्चों को स्कूल छोड़ना होगा और स्कूल से वापस लाना होगा.

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कुल मिलाकर अब ये आपको सुनिश्चित करना है कि आपका बच्चा जिस स्कूल में जाता है वहां कोविड प्रोटोकॉल का पालन हो रहा है या नहीं. यानी आपको सुनिश्चित करना है कि आपके बच्चे के स्कूल में उसके स्वास्थ्य का ख्याल रखने के सारे इंतजाम हों. इसके अलावा आप ये भी पता कर सकते हैं कि आपके बच्चे को पढ़ाने वाले टीचर्स को कोरोना की वैक्सीन लग चुकी है या नहीं. सबसे ज़रूरी बात कि स्कूल में हर कीमत पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो और आपको अपने बच्चे को भी ये बात समझानी होगी.

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