DNA ANALYSIS: Presidential Debate में निजी हमले, क्या दुनिया यही सुनने का इंतजार कर रही थी?
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DNA ANALYSIS: Presidential Debate में निजी हमले, क्या दुनिया यही सुनने का इंतजार कर रही थी?

अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. सबसे मजबूत सैन्य शक्ति है. पूरी दुनिया अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में दिलचस्पी लेती है.

DNA ANALYSIS: Presidential Debate में निजी हमले, क्या दुनिया यही सुनने का इंतजार कर रही थी?

नई दिल्ली: वर्ष के 365 दिनों के दौरान विश्व में हर समय किसी न किसी देश में चुनाव होते रहते हैं, लेकिन जब अमेरिकी राष्ट्रपति (US Election 2020) का चुनाव होता है तो दुनिया की नजरें उस पर होती हैं. मतदान से पहले वर्तमान राष्ट्रपति और विपक्ष के उम्मीदवार के बीच प्रेसि​डेंशियल डिबेट्स (US Presidential Debates)  का दौर चलता है.

अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. सबसे मजबूत सैन्य शक्ति है. पूरी दुनिया अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में दिलचस्पी लेती है और नजर रखती है कि रेटिंग्स और पॉइंट्स में कौन आगे है.

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट कल 30 सितंबर को ओहियो के क्लीवलैंड शहर में हुई. पूरी दुनिया में इस डिबेट का लाइव टेलीकास्ट हुआ. करोड़ों लोगों ने डिबेट देखी. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump) और डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडेन (Joe Biden) के बीच डिबेट हुई.

सार्वजनिक मंचों पर बहस का गिरता स्तर
इस बहस के दौरान लायर, क्लाउन, पुतिन्स पपी और शट अप जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया. एक दूसरे पर निजी हमले किए गए. बहस के दौरान यही हेडलाइंस इस डिबेट से निकलीं. सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया तक यही चर्चा हो रही है. यहां सवाल ये भी है कि क्या दुनिया यही सब सुनने के लिए इस बहस का इंतजार कर रही थी. सार्वजनिक मंचों पर बहस के गिरते स्तर की चर्चा जैसे हम अपने देश में करते हैं, वो क्या अब विश्व का न्यू नॉर्मल बन चुका है.

अब यहां आपको ये बताना जरूरी है कि इस डिबेट के कुछ नियम बनाए गए थे. बहस 90 मिनट तक होनी थी. डिबेट के लिए 6 विषय तय थे जिन पर दोनों कैंडीडेट्स को अपना पक्ष रखना था. हर विषय को 15 मिनट दिए गए थे.

इन 6 विषयों पर डिबेट
-दोनों उम्मीदवारों का कामकाज कैसा है

-कोरोना महामारी

-अर्थव्यवस्था

-अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट

-चुनावी अखंडता

-अमेरिकी शहरों में हुई जातीय हिंसा

ये वो मुद्दे हैं जिनका अमेरिकी जनता से सरोकार है. इन मुद्दों पर सार्थक बहस होती तब अमेरिकी वोटर किसी कैंडिडेट के प्रति अपनी राय बना पाता. लेकिन जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल 74 वर्षीय ट्रंप और 77 वर्ष के बाइडेन के बीच 90 मिनट तक हुआ उससे साफ होता है कि किसी की बात सुनने की सहनशक्ति हम खोते जा रहे हैं.

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