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नई दिल्ली: देश में लगातार बढ़ते कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron) सबकी चिंता बढ़ा दी. ओमिक्रॉन के मामले एक दिन में 33 फीसदी के हिसाब से बढ़ रहे हैं. ओमिक्रॉन के मामले एक दिन में 33 फीसदी के हिसाब से बढ़ रहे हैं. अब तक देश में 415 मामलों की पुष्टि हो चुकी है. ऐसे में एक्सपर्ट्स कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जता रहे हैं. अगले साल के शुरू में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) समेत 5 राज्यों में विधान सभा के चुनाव होने हैं. इस बीच कोरोना के खतरे को देखते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और चुनाव आयोग (Election Commission) से चुनावों को टालने का आग्रह किया है.
इस पर मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने कहा कि हम अगले हफ्ते यूपी जाएंगे और वहां की स्थिति की समीक्षा करेंगे और फिर उचित निर्णय लेंगे. सुप्रीम कोर्ट में भी चुनावी रैलियों और जमावड़ों पर रोक लगाने की मांग करती हुए एक याचिका दायर हुई है. वहीं बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी यूपी चुनाव टालने की आशंका जताई है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि क्या सच में चुनावों को टाला जा सकता है. अगर चुनाव टलते हैं तो क्या होगा?
यूपी समेत अन्य राज्यों के चुनाव टाले जाएंगे या नहीं ये तो चुनाव आयोग समीक्षा के बाद तय करेगा. लेकिन ये जानना जरूरी है कि चुनाव कब और कैसे टाले जा सकते हैं. आखिर इसको लेकर क्या नियम है. आपको बता दें, पिछली साल कोरोना को देखते हुए चुनाव आयोग ने कई राज्यों के पंचायत चुनाव और विधान सभा और लोक सभा के उप चुनावों को टाल दिया था. संविधान के आर्टिकल 324 के तहत चुनाव आयोग चुनाव कराने के लिए स्वतंत्र है. इसके अलावा प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 52, 57 और 153 में चुनावों को रद्द करने या टालने की बात कही गई है.
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लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 52 में एक खास प्रावधान किया गया है. इसके तहत अगर चुनाव का नामांकन भरने के आखिरी दिन सुबह 11 बजे के बाद किसी भी समय किसी उम्मीदवार की मौत हो जाती है, तो उस सीट पर चुनाव टाला जा सकता है. लेकिन इसके लिए भी कुछ नियम हैं. चुनाव केवल तब टलेगा जब कैंडिडेट का पर्चा सही भरा गया हो. उसने चुनाव से नाम वापस न लिया हो. मरने की खबर वोटिंग शुरू होने से पहले मिल गई हो. मरने वाला कैंडिडेट किसी मान्यता प्राप्त पार्टी से हो. मान्यता प्राप्त पार्टी का मतलब है ऐसी पार्टी, जिन्हें पिछले विधान सभा या लोक सभा चुनाव में कम से कम छह फीसदी वोट हासिल हुए हों.
उदाहरण के तौर पर, 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान की 200 में से 199 सीटों पर ही चुनाव हुए थे. रामगढ़ सीट पर बीएसपी उम्मीदवार की मौत वोटिंग से पहले हो गई थी तो चुनाव बाद में कराए गए.
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 57 में इस बारे में ये प्रावधान है. अगर चुनाव वाली जगह पर हिंसा, दंगा या प्राकृतिक आपदा हो, तो चुनाव टाला जा सकता है. इस बारे में फैसला मतदान केंद्र का पीठासीन अधिकारी ले सकता है. हिंसा और प्राकृतिक आपदा अगर बड़े स्तर पर हो यानी पूरे राज्य में हो, तो फैसला चुनाव आयोग ले सकता है. अभी के हालात आपदा वाले ही हैं. कोरोना वायरस के चलते भीड़ इकट्ठी नहीं हो सकती. ऐसे में कई चुनाव आगे बढ़ाए जा चुके हैं.
उदाहरण के तौर पर, 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के मामलों को लेकर एक आदेश भी दिया था. यह मामला किशन सिंह तोमर बनाम अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का था. इसमें कोर्ट ने कहा था कि प्राकृतिक आपदा या मानव निर्मित त्रासदी जैसे दंगा-फसाद में हालात सामान्य होने तक चुनाव टाले जा सकते हैं.
किसी मतदान केंद्र पर मत पेटियों या वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़ किए जाने पर भी वोटिंग रोकी जा सकती है. हालांकि आजकल ज्यादातर चुनावों में ईवीएम ही काम में ले जाती है. अगर चुनाव आयोग को लगे कि चुनाव वाली जगह पर हालात ठीक नहीं है या पर्याप्त सुरक्षा नहीं है तो भी चुनाव आगे बढ़ाए जा सकते हैं या फिर चुनाव रद्द किया जा सकता है. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 58 में यह प्रावधान है.
अगर किसी जगह पर पैसों का दुरुपयोग हो रहा है या वोटर्स को घूस दी जा रही है तो ऐसी स्थिति में चुनाव को टाला या रद्द किया जा सकता है. संविधान के अनुच्छेद 324 में ये प्रावधान है.
उदहारण के तौर पर, जैसे साल 2019 में तमिलनाडु की वेल्लौर लोकसभा सीट पर चुनाव रद्द करना या साल 2017 में भारी मात्रा में कैश बरामद होने पर तमिलनाडु की राधाकृष्णानगर विधानसभा सीट के उपचुनाव को रद्द करना.
बूथ कैप्चरिंग के हालात में भी चुनाव की नई तारीख का ऐलान किया जा सकता है. इसके लिए रिटर्निंग अधिकारी फैसला लेता है. वो ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर नई तारीख पर मतदान के लिए कह सकता है. ये आदेश भी लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 58 के तहत दिया जाता है. बता दें, 1991 में पटना लोकसभा का चुनाव इसी के चलते कैंसिल कर दिया गया था. तब जनता दल के टिकट पर इंद्र कुमार गुजराल को लालू यादव चुनाव लड़ा रहे थे.
चुनाव आयोग को अगर लगे कि किसी सीट पर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं है, तो वह चुनाव रद्द या टाल सकता है. इस तरह का मामला साल 2017 में आया था. महबूबा मुफ्ती ने अनंतनाग की लोकसभा सीट छोड़ दी थी. वो मुख्यमंत्री बन गई थीं. ऐसे में उपचुनाव के लिए चुनाव आयोग ने सुरक्षाबलों की 750 कंपनियां मांगी. लेकिन सरकार ने 300 कंपनियां ही दीं. लेकिन चुनाव आयोग ने बाद में अनंतनाग के हालात खराब बताते हुए चुनाव रद्द कर दिए थे.
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कोरोना के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से राजनीतिक रैलियों पर रोक लगाने और चुनाव टालने को कहा है. इसके अलावा संक्रमण बढ़ने के बाद यूपी में पाबंदियां भी लगनी हो गई है. राजनीतिक कार्यक्रमों पर भी रोक लगा दी गई है. साथ ही नाइट कर्फ्यू भी लागू कर दिया गया है. इसको देखते हुए यूपी चुनाव टालने का फैसला किया जा सकता है. कोरोना महामारी को देखते हुए पिछली साल भी कई राज्यों के चुनावों का टाला गया था.
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