इमरजेंसी के 21 महीनों को भारतीय लोकतंत्र का का सबसे स्याह दौर कहा जाता है. उस विवादित दौर में चुनाव पर पाबंदी लगा दी गई. नागरिक मूल अधिकार निलंबित कर दिए गए. अब सवाल उठता है कि लोकतांत्रिक देश में इस तरह के अलोकतांत्रिक कदम को क्यों थोपा गया?
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आपातकाल (इमरजेंसी) की घोषणा के 44 साल पूरा होने पर पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा है कि उन लोगों को सलाम जिन्होंने निडर होकर अथक इमरजेंसी का विरोध किया. इसके चलते निरंकुश मानसिकता वाली शक्तियों की पराजय हुई और लोकतांत्रिक मूल्यों की विजय हुई. इमरजेंसी के 21 महीनों को भारतीय लोकतंत्र का का सबसे स्याह दौर कहा जाता है. उस विवादित दौर में चुनाव पर पाबंदी लगा दी गई. नागरिक मूल अधिकार निलंबित कर दिए गए. अब सवाल उठता है कि लोकतांत्रिक देश में इस तरह के अलोकतांत्रिक कदम को क्यों थोपा गया? उसको समझने के लिए अतीत के आईने पर आइए डालते हैं एक नजर:
इंदिरा युग
भारतीय राजनीति में 'गूंगी गुड़िया' के नाम से सियासी आगाज करने वाली इंदिरा गांधी को 1971 के चुनाव में 'गरीबी हटाओ' के नारे के साथ प्रचंड बहुमत (518 में से 352 सीटें) हासिल हुआ. उसी साल के अंत में पाकिस्तान के साथ युद्ध में पटखनी दी और बांग्लादेश का उदय हुआ. इंदिरा गांधी भारत की 'आयरन लेडी' बनकर उभरीं. बस यहीं से इंदिरा युग का आगाज हुआ और उनके पर्सनालिटी कल्ट की शुरुआत हुई.
इंदिरा सरकार, न्यायपालिका और प्रेस पर नियंत्रण की कोशिश में भी लग गई. 1967 में गोलकनाथ केस में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था देते हुए कहा कि संविधान के बुनियादी तत्वों में संशोधन का अधिकार संसद के पास नहीं है. इस फैसले को बदलवाने के लिए 1971 में 24वां संविधान संशोधन पेश किया गया. इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सरकार की यह कोशिश भी उस वक्त विफल हो गई जब केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 7-6 बहुमत के आधार पर 1973 में फैसला दिया कि संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. न्यायपालिका के साथ कार्यपालिका का विवाद इस हद तक बढ़ गया कि एक जूनियर जज को कई वरिष्ठ जजों पर तरजीह देते हुए चीफ जस्टिस बना दिया गया. नतीजतन कई सीनियर जजों ने इस्तीफा दे दिया.
छात्र आंदोलन
1973 में अहमदाबाद में एलडी इंजीनियरिंग कॉलेज में हॉस्टल मेस के शुल्क में बढ़ोतरी के बाद छात्रों ने आंदोलन शुरू कर दिया. राज्य के शिक्षा मंत्री के खिलाफ शुरू हुए इस नव निर्माण आंदोलन ने बाद में भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट के खिलाफ उग्र रूप धारण किया और इसका नतीजा यह हुआ कि मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल को इस्तीफा देना पड़ा और राज्य में राष्ट्रपति लगाना पड़ा.
India salutes all those greats who fiercely and fearlessly resisted the Emergency.
India’s democratic ethos successfully prevailed over an authoritarian mindset. pic.twitter.com/vUS6HYPbT5
— Narendra Modi (@narendramodi) June 25, 2019
इसी तरह उसी दौर में बिहार छात्र संघर्ष समिति के आंदोलन को गांधीवादी समाजवादी चिंतक जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने समर्थन दिया. 1974 में जेपी ने छात्रों, किसानों और लेबर यूनियनों से अपील करते हुए कहा कि वे अहिंसक तरीके से भारतीय समाज को बदलने में अहम भूमिका निभाएं. इन सब वजहों से इंदिरा गांधी की राष्ट्रीय स्तर पर छवि प्रभावित हुई.
राज नारायण केस
समाजवादी नेता राज नारायण ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव (1971) में जीत को चुनौती दी. इंदिरा गांधी ने 1971 के चुनाव में राज नारायण को रायबरेली से हराया था. राज नारायण ने आरोप लगाया कि चुनावी फ्रॉड और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के चलते इंदिरा गांधी ने वह चुनाव जीता. इस पर 12 जून, 1975 को फैसला देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध ठहरा दिया. इंदिरा गांधी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 24 जून, 1975 को जस्टिस वीके कृष्णा अय्यर ने इस फैसले को सही ठहराते हुए सांसद के रूप में इंदिरा गांधी को मिलने वाली सभी सुविधाओं पर रोक लगा दी. उनको संसद में वोट देने से रोक दिया गया. हालांकि उनको प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की छूट दी गई.
'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'
25 जून, 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी ने इंदिरा गांधी के पद नहीं छोड़ने की स्थिति में उनके खिलाफ अनिश्चितकालीन देशव्यापी आंदोलन का आह्वान करते हुए रामधारी सिंह दिनकर की मशहूर कविता की पंक्तियों को दोहराया-'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है.' उसी रात 'आंतरिक अशांति' का हवाला देते हुए देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई. इसके तहत तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन 'आंतरिक अशांति' के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की. 26 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक की 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल था. स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह अब तक का सबसे विवादित दौर माना जाता है.