'फ्री बी' पर अदालती डंडा, सुप्रीम कोर्ट ने एमपी-राजस्थान सरकार से पूछ लिया सवाल
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'फ्री बी' पर अदालती डंडा, सुप्रीम कोर्ट ने एमपी-राजस्थान सरकार से पूछ लिया सवाल

Free Bee Issue in Supreme Court:  फ्री बी यानी मुफ्त में रेवड़ियां बांटना, इस मुद्दे को लेकर हमेशा से विवाद रहा है. जब कोई दल सत्ता में होता है तो वो इसे जनकल्याणकारी योजना का हिस्सा बताता है लेकिन विपक्ष को सियासी फसल काटने की कोशिश नजर आती है. इन सबके बीच मध्य प्रदेश और राजस्थान की सरकार ने जब कुछ ऐलान किए तो मामला अदालत तक पहुंच गया.

'फ्री बी' पर अदालती डंडा, सुप्रीम कोर्ट ने एमपी-राजस्थान सरकार से पूछ लिया सवाल

Free Bee Case:  उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनावों(rajasthan assembly elections 2023) से पहले ‘मुफ्त की रेवड़ियां’ बांटने का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर दोनों राज्य की सरकारों से शुक्रवार को जवाब मांगा हैं. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने जनहित याचिका पर केंद्र, निर्वाचन आयोग तथा भारतीय रिजर्व बैंक को भी नोटिस जारी किया. याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि दोनों राज्य की सरकारें मतदाताओं को प्रलोभन देने के लिए करदाताओं के पैसों का दुरुपयोग कर रही हैं.

फ्री बी के खिलाफ याचिका

याचिकाकर्ता की पैरवी करने वाले वकील ने कहा कि चुनाव से पहले सरकार द्वारा नकदी बांटने से ज्यादा खराब और कुछ नहीं हो सकता. हर बार यह होता है और इसका बोझ आखिरकार करदाताओं पर आता है. पीठ ने कहा कि ‘नोटिस जारी करिए. चार सप्ताह के भीतर जवाब दीजिए. न्यायालय ने भट्टूलाल जैन( bhattulal jain) की जनहित याचिका पर सुनवाई की और इसे मामले पर लंबित एक अन्य याचिका के साथ नत्थी करने का आदेश दिया. याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में कहा कि राज्य सरकारों को जनहित योजनाओं को चलाने से कौन रोक रहा है. लेकिन चुनाव से ऐन पहले जिस जरह से मतदाताओं(elections 2023) को लुभाने की कोशिश की जाती है उसका असर तो आम जनता पर ही पड़ता है. ऐसे में न्यायालय के अलावा वो और कहां जाकर अपनी बात रखें.

क्या कहते हैं जानकार

याचिकाकर्ता  ने कहा कि चुनावी साल में राज्य सरकारें जिस तरह से धड़ाधड़ ऐलान करना शुरू कर देती हैं उसका असर तो सरकारी खजाने पर ही पड़ता है. जब सरकारी खजाने से जनता के पैसे का दोहन होना शुरू हो जाता है तो उसका असर करदाताओं पर होने लगता है. कुल मिलाजुला कर नुकसान आम जनता का ही होता है. इस विषय पर जानकार कहते हैं कि यह मामला बेहद पेंचीदा है, सरकारें स्पष्ट तौर पर कहती हैं कि वो संवैधानिक दायर में रहकर ही फैसला करती हैं ऐसे में सवाल उठाना सही नहीं होगा, इन सबके बीच बड़ा सवाल यही है कि हर वो दल जब विपक्ष में होता है तो सवाल खड़े करता है लेकिन सरकार में आते ही सुर बदल जाता है.

(एजेंसी इनपुट-भाषा)

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