नजरिया: ये गांधी हैं या कोई गोरखधंधा है?
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नजरिया: ये गांधी हैं या कोई गोरखधंधा है?

एक बार किसी अंग्रेज ने गांधी जी को अपमानित करने वाला एक पत्र भेजा. गांधी जी ने पत्र के पन्नों में लगी पिन को निकालकर अपनी डिबिया में रख लिया और पत्र फाड़कर डस्टबिन में फेंक दिया.

दुनिया मोहन दास करमचंद गांधी की 150वीं जयंती मना रही है.

नई दिल्ली: दुनिया मोहन दास करमचंद गांधी की 150वीं जयंती मना रही है. उनके निधन को भी करीब 70 वर्ष हो गए हैं. इतने वर्ष बीतने के बाद भी अधिकांश लोगों के लिए गांधी एक पहेली की तरह ही हैं. जब लगता है कि गांधी की प्रासंगिकता खत्म हो गई है, तभी गांधी एक नए रूप में हमारे सामने आ जाते हैं. तो सवाल ये है कि आखिर गांधी हैं कौन?

वो पहुंचे हुए राजनेता भी हैं, और अनासक्त महात्मा भी.
कांग्रेस के प्राण हैं, लेकिन कांग्रेस के मेंबर नहीं.
अहिंसा में  दृढ़ विश्वास है, और ब्रिटेन को युद्ध में सहायता भी देते हैं. 
उनकी रग-रग में हिंदू बसा है, लेकिन हिंदुत्व के आलोचक हैं.
अत्यधिक कंजूस हैं, लेकिन उनसे बड़ा उदार भी कोई नहीं. 
कुरूप हैं, लेकिन उनसे बड़ा तेजस्वी कोई नहीं. 
अच्छे वक्ता नहीं है, फिर भी उनकी बातों में जादू है.
ग्राम स्वराज की बात करते हैं, और रहते बिड़ला के घर में हैं.

ऊपर लिखे विरोधाभास तो एक बानगी भर हैं. उनका पूरा जीवन ऐसे विरोधाभासों से भरा हुआ है. शायद ही ऐसा विरोधाभास किसी दूसरे नायक के व्यक्तित्व में दिखाई दे. ऐसे में कोई भी पूछ सकता है कि ये गांधी हैं या कोई गोरखधंधा है.

पश्चिम की नजर में गांधी

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महात्मा गांधी के बारे में ब्रिटिश वायसराय लार्ड विलिंग्डन ने कहा था - 'वह इतने चतुर हैं, बोलने में इतने मीठे हैं, उनके शब्द इतने द्विअर्थी होते हैं कि जब तक मैं उनकी बातों में पूरा फंस न जाऊं, तब तक मुझे पता भी नहीं लगेगा कि मैं फंस गया हूं.'

अमेरिका के प्रसिद्ध लेखन जॉन गन्थर ने लिखा था - 'महात्मा गांधी में ईसामसीह, चाणक्य और बु्द्ध का अद्भुत सम्मिश्रण है. उनसे अधिक पेंचदार व्यक्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती.'

महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था, 'आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था.'

गांधीजी की नजर में गांधी
ऐसे में सवाल वही है कि आखिर गांधी हैं क्या? स्वयं महात्मा गांधी अपने बारे में कहते हैं - 'मेरा जीवन क्या है- यह तो सत्य की एक प्रयोगशाला है. मेरे सारे जीवन में केवल एक ही प्रयत्न रहा है - वह है मोक्ष की प्राप्ति, ईश्वर का साक्षात दर्शन. मैं चाहें सोता हूं या जागता हूं, उठता हूं या बैठता हूं, खाता हूं या पीता हूं, मेरे सामने यही एक ध्येय रहता है. उसी को लेकर मैं जिंदा हूं.'

तो क्या भारत की आजादी का आंदोलन भी उनके लिए मोक्ष प्राप्ति का साधन था. गांधी जी तो यही कहते थे.

अत्यंत दृढ़ और उतने ही उदार

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गांधी जी अपने विचारों पर अत्यंत दृढ़ थे और दूसरी सभी विचारधारओं के प्रति बहुत अधिक उदार थे. उन्होंने कहा था, 'मैं नहीं चाहता कि मेरा घर चारो ओर दीवारों से घेरा जाए और मेरी खिड़कियां बंद कर दी जाएं. मैं चाहता हूं कि सारे भू-भागों की सांस्कृतिक बयार मुक्त रूप से मेरे घर में बहे. लेकिन मैं नहीं चाहता कि कोई मेरी आत्म-अनुभूति को फूंक मारकर उड़ा दे.'

उनकी इस बात का व्यवहार में एक उदाहरण देखिए- एक बार किसी अंग्रेज ने गांधी जी को अपमानित करने वाला एक पत्र भेजा. गांधी जी ने पत्र के पन्नों में लगी पिन को निकालकर अपनी डिबिया में रख लिया और पत्र फाड़कर डस्टबिन में फेंक दिया.

हर जगह है गांधी की छाप

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महात्मा गांधी के करीबी और उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला कहते हैं, 'गांधी जी ने सत्य की साधना की है. अहिंसा का आचरण किया है. ब्रह्मचर्य का पालन किया है. भगवान की भक्ति की है. हरिजनों की सेवा की है. दरिद्रनारायण की पूजा की है. स्वराज्य के लिए युद्ध किया है. खादी को आंदोलन बनाया है. हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रयास किए हैं. प्राकृतिक चिकित्सा के प्रयोग किए हैं. गोवंश के उद्धार की योजना बनाई है. इस सारी चीजों का एकीकरण जिसमें समाप्त होता है, वह गांधी हैं.'

सुभाषचंद्र के राष्ट्रपिता गांधी
सुभाष चंद्र बोस ने रंगून से एक रेडियो संदेश में महात्मा गांधी के बारे में कहा था, 'वे (गांधी) ही भारतवर्ष के जनगण का उत्थान करने वाले हैं. ब्रिटिश साम्राज्यवाद के समक्ष प्रथम सत्याग्रह करने वाले वे ही हैं. खंड-खंड हो चुके भारतवासियों को एक प्राण की एकता सूत्र में बांधने वाले वे ही हैं. जनता के मन में आजादी की मंशा उन्होंने ही जगाई. निहत्थे भारतवासियों के मन में शूरता और दुखों को झेलने की हिम्मत उन्होंने ही संचालित की. राष्ट्र को गांधीजी ने ऐसा नवजीवन दिया था. वे राष्ट्रपिता हैं.'

गांधी, भारत के श्रेष्ठ मानव
एक अन्य मौके पर सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी से अपने मतभेदों के बारे में कहा, 'लौकिक विषयों के कई क्षेत्रों में महात्मा गांधीजी के साथ एकमत नहीं हो पा रहा हूं फिर भी उनके व्यक्तित्व के बारे में मेरा आदर किसी से कम नहीं है. मेरे बारे में गांधीजी का अभिप्राय क्या है यह मैं नहीं जानता हूं. उनका मत चाहे जो भी हो, परन्तु मेरा लक्ष्य तो हमेशा उनका विश्वास जीतना ही रहा है. इसका एकमात्र कारण है कि बाकी सभी का विश्वास प्राप्त करने में सफल हो जाऊं और भारत के श्रेष्ठ मानव (गांधी) का विश्वास न पा सकूं तो वह मुझे कचोटता रहेगा.'

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